विजय दीक्षित। महंगाई एक ऐसा विषय है जो आम आदमी को जितना प्रभावित करती है, उतना ही सरकार को भी सांसत में डाल देती है। दरअसल, काफी हद तक ये राज्य का दायित्व होता है कि वह जरूरत की वस्तुओं के दामों को नियंत्रित रखे और आम जनता के हित में महंगाई न बढ़ने दे।
मगर ऐसा हो नहीं पाता और सरकारें बिचौलियों, दलालों, कालाबाजारी करने वाले व्यापारियों की कारगुजारियों के आगे बेबस देखती रह जाती है। ऐसे में 70-80 रुपए बिकने वाली दाल सीधे 200 रुपए किलो तक पहुंच जाती है, वहीं एक तरफ किसान प्याज सड़क पर फेंक रहा होता है और बाजार में वही प्याज 15 से 30 रुपए किलो तक मिल रहा होता है।
जब भी महंगाई का प्रश्न उठता है तो ये बात जरूर सामने आती है कि आखिर सरकार नियंत्रण क्यों नहीं कर पाती? इसका सीधा-सा जवाब है कि सरकार के पास ऐसा तंत्र ही नहीं है जो खुदरा बाजार के रोजमर्रा के उतार-चढ़ाव पर नजर रखे और स्थिति बिगड़ते ही तुरंत शिकंजा कस दे।
ये जरूर है कि देश की वर्तमान महंगाई दर दो साल पहले के मुकाबले निचले स्तर पर है, लेकिन इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता। लेकिन अब ऐसा लगता है कि केंद्र की मोदी सरकार ने इस दिशा में एक अच्छी पहल कर दी है। केंद्र ने मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात सहित अन्य बड़े राज्यों को प्राइस कंट्रोल सेल गठित करने को कहा है। सामने आ रहा है कि ये सेल बाजार पर गहरी नजर रखेगी और बाजार में रोज होने वाले उतार-चढ़ाव को सीधे सरकार तक पहुंचाएगी।
वर्तमान आधुनिक समाज में वस्तुओं की मांग वास्तविक पूर्ति से कहीं ज्यादा है। और यह मांग बाजार द्वारा ही भावनाप्रधान, कूटरचित और कैची पंचलाइन वाले विज्ञापनों के जरिए बढ़ाई जाती है। नतीजा, महंगाई बढ़ती है और उसमें आम जनता पिसती है।
महंगाई पर नियंत्रण के लिए लंबे समय से ऐसे किसी संगठन या फोरम के गठन को लेकर बात उठती रही है जो सीधे सरकार द्वारा नियंत्रित हो और उसके जरिए सरकार बाजार पर आवश्यक नियंत्रण रखे। पश्चिमी देशों में इस तरह के संगठन होते हैं जो मूल्य पर नियंत्रण रखते हैं और एक तय सीमा से ज्यादा दाम नहीं बढ़ने देते। भारत जैसे विविध आय वर्ग वाले देश में तो ये और जरूरी हैं। ऐसे में केंद्र ने प्राइस कंट्रोल सेल का गठन करने के निर्देश देकर ऐसा ही कदम उठाया है।
दरअसल, मध्य प्रदेश जैसे विशाल उपभोक्ता संख्या वाले राज्य को महंगाई काफी हद तक प्रभावित करती है। ऐसे में मप्र को तो तुरंत प्राइस कंट्रोल सेल का गठन करना चाहिए। हालांकि फिलहाल ये स्पष्ट नहीं है कि यह सेल रोजमर्रा के खाद्य उपयोग की चीजों पर ही नजर रखेगी या प्रदेश सरकारों को ज्यादा टैक्स दिलाने वाली वस्तुओं पर भी।
(लेखक अर्थशास्त्र के जानकार हैं।)