जैनरिक दवाओं पर ब्रांड का ठप्पा, मुनाफा मनमाना

ग्वालियर, डॉ.अमरनाथ गोस्वामी। मोटा मुनाफा कमाने के लिए दवा कंपनियों ने बाजार में ब्रांडेड जैनरिक दवाएं उतार दी हैं। ये दवाएं है तो जैनरिक, लेकिन इन्हें एक अलग ब्रांड बनाकर बेचा जा रहा है। ब्रांड का ठप्पा होने के कारण इनके इथिकल या जैनरिक होने की पहचान खत्म हो गई है। इसका खामियाजा आम आदमी को ही भुगतना पड़ रहा है। इन दवाओं की कीमत में औसतन 100 से 150 प्रतिशत का मुनाफा रहता है। यही कारण है कि इनको बेचने मेडिकल स्टोर संचालक व बिकवाने में तमाम डॉक्टर खासी दिलचस्पी ले रहे हैं।

जैनरिक व ब्रांडेड का भेद

जैनरिक- वो दवाएं हैं जिनको निर्माता कंपनी सीधे सॉल्ट के नाम से ही बाजार में बेचती है। इनकी

कीमत ब्रांडेड की तुलना में काफी कम होती है।

ब्रांडेड (इथिकल)- वो दवाएं जो कंपनी एक खास नाम से बाजार में प्रमोट करती है। दर्शाए गए सॉल्ट(दवा) की मात्रा पूरा-पूरा ध्यान रखा जाता है। प्रचार प्रसार पर खासा खर्च करती है।

सारी कंपनियों ने बाजार में ब्रांडेड जैनरिक दवाएं उतार दी हैं। इससे मरीजों को गुमराह किया जा रहा है। जैनरिक दवाओं की एमआरपी और वास्तविक कीमत में भारी अंतर को लेकर हम कई बार विभाग, मंत्रालय को पत्र लिख चुके हैं। – गिरीश अरोरा, अध्यक्ष डिस्ट्रिक, ग्वालियर कैमिस्ट एसोसिएशन

जैनरिक दवा पर ब्रांड नेम का ठप्पा लगाने से रोकने का कोई नियम नहीं है। एमआरपी को लेकर भी हम कुछ नहीं कर सकते। – संजीव जादौन, ड्रग इस्पेक्टर

कीमतों में जमीन आसमान का अंतर

पड़ताल के दौरान नईदुनिया ने मैडले कंपनी की दो दवाओं को खरीदा। ‘एक्लोडाल- पी’ पर एमआरपी 42 रुपए लिखी थी, जैनरिक दवा के होलसेलर ने इसे 18 रुपए में दे दिया। वहीं इसी कंपनी की ब्रांडेड दवा ‘एसीनक-पी’ नाम से खरीदी। यह दर्ज एमआरपी 39 रुपए में ही मिली। दोनों में साल्ट एसीक्लोफेनक व पैरासीटामोल समान मात्रा में है। इसी कंपनी की एक और दवा सीफेक्सिम को हमने चुना।

ब्रांड नेम सीफो- 200 के साथ ये एमआरपी 89 रुपए में ही मिली। ब्रांडेड जैनरिक नाम सी-फी ओ नाम से दर्ज एमआरपी 125 स्र्पए के स्थान पर 38 रुपए में मिली। आमतौर पर उपभोक्ता को ब्रांडेड जैनरिक भारी मुनाफा कमाते हुए एमआरपी पर या कुछ डिस्काउंट देकर बेच दी जाती है।

पहचान खत्म : ब्रांडेड और जैनरिक में साल्ट का फार्मूला समान होने लेकिन कीमत में अंतर होने के कारण सरकार डाक्टरों को जैनरिक दवाएं लिखने पर ही जोर देती है। ब्रांडेड की कीमत पर जैनरिक बेचने के लिए ही यह तीसरी खास वैरायटी ब्रांडेड जैनरिक ईजाद की गई है। कोई डॉक्टर या नया मेडिकल स्टोर संचालक भी इनमें फर्क नहीं कर सकता।

फायदा किसको : दवा व्यवसायियों के अनुसार तमाम डॉक्टर, नर्सिंग होम, अस्पताल संचालक अपने यहां आने वाले मरीजों को ब्रांडेड जैनरिक दवा लिखते हैं। सामान्य तौर पर यह दवा मरीज को कहीं और उस नाम से मिलती नहीं हैं। ऐसे में चिन्हित मेडिकल स्टोर व डॉक्टर के बीच होने वाली कमाई का बंटवारा हो जाता है।

साल्ट के नाम से हो जाती थी बचत : यदि डॉक्टर सीधे-सीधे दवा(साल्ट) का नाम लिख दे तो मरीज उसे ब्रांडेड या जैनरिक में खरीदने का निर्णय कर सकता है। जैनरिक दवाओंकी जानकारी होने पर मरीज बचत भी कर सकता है। लेकिन ब्रांडेड जैनरिक के नए फंडे से मरीज का उलझना तय है।

 

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