मुंबई। सरकार व महाराष्ट्र पुलिस ने मिलकर राज्य के शिक्षा विभाग में चल रहे बड़ी जालसाजी का भंडाफोड़ किया है। पिछले पांच वर्षों में केंद्र सरकार की छात्रवृत्ति योजना के तहत वितरित किए गए 222 करोड़ रुपए से अधिक की राशि धन की हेराफेरी के आरोपों की जांच करने के लिए 64 सरकारी ऑडिटर की मदद से पुलिस ने पूरे राज्य में बड़े स्तर पर जांच शुरू किया है।
महाराष्ट्र पुलिस को यह संदेह था कि सरकार द्वारा प्रदान किए जा रहे छात्रवृत्ति योजना का पिछले पांच सालों से दुरुपयोग किया जा रहा है, इसके तहत अनेकों आवेदक ऐसे हैं जो योग्यता के पैमाने पर खरा नहीं उतरते और उन्हें छात्रवृत्ति दी गयी।
अल्पसंख्यक समुदाय व आदिवासी समुदाय- अनुसूचित जाति, विमुक्त जाति व अन्य पिछड़ी जातियों के गरीब छात्रों के लिए, इस योजना की शुरुआत जून 2006 में किया गया था।
पुलिस सूत्रों ने कहा कि पिछले साल गढचिरौली पुलिस के पास 9 ऐसे मामले दर्ज हुए जिससे इस संदिग्ध स्कैम का पता चला। और इसके बाद सोशल वेलफेयर डिपार्टमेंट के असिस्टेंट कमिश्नर और इंटीग्रेटेड ट्राइबल डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के प्रोजेक्ट ऑफिसर्स को इस योजना के फंड का दुरुपयोग करने के लिए गिरफ्तार किया गया।
जांच के दौरान सबसे पहले सोशल वेलफेयर और आइटीडीपी अधिकारियों के बारे में पता चला जिन्होंने सरकार के 3.39 करोड़ और 13 करोड़ रुपए की धोखेबाजी की। इसके पीछे बड़े घोटाले का संदेह करते हुए मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने उच्चस्तरीय जांच का आदेश दिया।
इस साल 15 जनवरी को एडीशनल डीजीपी के वेंकटेशम और एसआइटी के नेतृत्च में एक इंक्वायरी शुरू की गयी। एसआइटी में कुछ रिटायर सरकारी अधिकारियों को भी शामिल किया गया। महाराष्ट्र पुलिस ने 64 स्थानीय फंड ऑडिटर्स की भी मदद ली।
ऑडिटर्स ने दो आइटीडीपी अधिकारियों को इस मामले में गिरफ्तार किया। इनमें से एक भंडारा जिले का है जिसने 15 शिक्षण संस्थानों में 2013 से 2016 के बीच 2,27,480 रुपए की धोखाधड़ी की। और दूसरा यावतमल के पंढरकवाडा से है, जिसने इसी अवधि के दौरान 20 संस्थानों से 5,57,375 रुपये गायब कर दिए। अब तक केवल दो ऑडिटर ने रिपोर्ट दी है, शेष 62 की रिपोर्ट का अभी इंतजार है।
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एसआइटी के गठन के बाद कई विभागों और शिक्षण संस्थानों ने बचे फंड की वापसी सरकार के कोष में करना शुरू कर दिया। पूरे राज्य से 70.59 करोड़ रुपए की वापसी हुई।