सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को गर्भपात कानून के प्रावधानों को चुनौती देने वाली एक कथित बलात्कार पीड़िता की याचिका पर केंद्र और महाराष्ट्र सरकार से सफाई मांगी। याचिका में कानून के उन प्रावधानों को चुनौती दी गई है जो गर्भधारण के 20 हफ्ते बाद गर्भपात कराने पर रोक लगाते हैं, भले ही मां और उसके भ्रूण को जीवन का खतरा ही क्यों न हो। न्यायमूूर्ति जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने शुक्रवार के लिए नोटिस जारी किया। साथ ही याचिकाकर्ता से कहा कि वह अटॉर्नी जनरल के कार्यालय के माध्यम से इसकी गुरुवार को ही तामील कराए।
महिला की ओर से वकील कोलिन गोंजाल्विस ने कहा कि याचिका में चिकित्सकीय गर्भपात कानून 1971 की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है क्योंकि यह गर्भपात की अनुमति के लिए 20 हफ्ते की सीमा तय करता है। न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ और न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा भी इस पीठ में शामिल हैं। पीठ ने कहा कि वह महिला की हालत पर चिकित्सकीय बोर्ड की रिपोर्ट मांगेगी।
महिला का आरोप है कि उसके पूर्व मंगेतर ने उससे शादी का झूठा वादा कर उससे बलात्कार किया था और वह गर्भवती हो गई। उसने अपनी ताजा याचिका में 20 हफ्ते की सीमा तय करने वाली चिकित्सकीय गर्भपात कानून, 1971 की धारा 3(2) (बी) को निष्प्रभावी किए जाने की मांग की है है क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 14 एवं 21 का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि यह तय सीमा अनुचित, मनमानी, कठोर, भेदभावपूर्ण और समानता और जीवन के अधिकार का उल्लंघन है।
इसमें केंद्र को यह आदेश देने की मांग की गई है कि वह अस्पतालों को चिकित्सकों के एक विशेषज्ञ पैनल का गठन करने का निर्देश दे। यह पैनल गर्भावस्था का आकलन करे और कम से कम उन महिलाओं और लड़कियों के चिकित्सकीय गर्भधारण की व्यवस्था करें जो यौन हिंसा का शिकार हुई हैं और जिन्हें गर्भधारण किए 20 हफ्ते से अधिक हो गए हैं। महिला को गर्भधारण किए 24 हफ्ते हो गए हैं। उसका कहना है कि वह एक गरीब पृष्ठभूमि से संबंध रखती है और उसका भू्रण मस्तिष्क संबंधी जन्मजात विकृति ऐनिन्सफली से पीड़ित है। लेकिन चिकित्सकों ने गर्भपात करने से इनकार कर दिया है। जिसके मद्देजनर गर्भपात की 20 हफ्ते की सीमा के कारण महिला के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य को खतरा है।
याचिका में कहा गया है कि एमटीपी अधिनियम के अनुच्छेद पांच में गर्भवती महिला के जीवन की रक्षा की बात की गई है। इसमें गर्भवती महिला के मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य की रक्षा करने की बात और उन स्थितियों को भी शामिल किया जाना चाहिए जिनमें गर्भधारण के 20वें हफ्ते के बाद भ्रूण में गंभीर विकारों का पता चलता है। अदालत मुंबई के चिकित्सक निखिल डी दातार की याचिका पर पहले ही सुनवाई कर रही है। दातार ने भी 2009 में यही मामला उठाया था और अधिनियम में संशोधन की मांग की थी।