नई दिल्ली। बढ़ते एनपीए के बोझ और घटते मुनाफे से परेशान सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में केंद्र सरकार ने वायदे के मुताबिक तकरीबन 23 हजार करोड़ रुपये की पूंजी बढ़ा दी है। वित्त मंत्रालय की तरफ से बताया गया है कि 13 बैंको को 22,915 करोड़ रुपये की राशि बतौर पुनर्पूंजीकरण दी गई है। इस राशि से बैंकों के लिए विभिन्न वैधानिक मानकों को बनाये रखने में मदद मिलेगी।
सबसे ज्यादा भारतीय स्टेट बैंक को 7575 करोड़ रुपये की राशि दी गई है। जबकि सबसे कम इलाहाबाद बैंक को 44 करोड़ रुपये की राशि दी गई है। राजग सरकार ने पिछले वर्ष इंद्रधनुष कार्यक्रम के तहत यह एलान किया था कि सरकारी बैंकों को अगले चार वर्षों में 70 हजार करोड़ रुपये की राशि केंद्रीय खजाने से दी जाएगी। जारी की गई यह धनराशि दूसरी किस्त है।
सरकारी बैंकों को केंद्रीय खजाने से पूंजी देने की परंपरा बीच में बंद हो गई थी लेकिन वर्ष 2009-10 से यूपीए के कार्यकाल में फिर से शुरू की गई। वर्ष 2009-10 से 2015-16 के बीच विभिन्न सरकारी बैंकों को 1.02 लाख करोड़ रुपये की राशि दी गई है। पिछले वर्ष सरकार ने कहा था कि सिर्फ प्रदर्शन में बेहतर सुधार करने वाले बैंकों को ही खजाने से मदद मिलेगी लेकिन अब यह विचार त्याग दिया गया है। यही वजह है कि इस बार बहुत ही खराब प्रदर्शन करने वाले बैंक को भी राशि आवंटित की गई है। इसके साथ ही वित्त मंत्रालय ने यह भी कहा है कि अगर जरूरत हुई तो वित्त वर्ष के दौरान और राशि सरकारी बैंकों को दी जाएगी।
फिलहाल बैंकों को आवंटित राशि का 75 फीसद ही दिया जाएगा लेकिन बाद में इन बैंकों के वित्तीय प्रदर्शन को देखते हुए शेष राशि दी जाएगी। फंसे कर्जे पर काबू पाने, कारोबार की लागत घटाने और कर्ज की रफ्तार बढ़ाने को देखते हुए अतिरिक्त राशि देने का फैसला किया जाएगा। पिछले वर्ष भी सरकारी बैंकों को 25 हजार करोड़ रुपये की राशि दी गई थी।
रिजर्व बैंक की तरफ से जो जोखिम संबंधी नये मानकों के हिसाब से माना जाता है कि सरकारी क्षेत्र के बैंकों को पांच लाख करोड़ रुपये की जरूरत होगी। पिछले वर्ष केंद्र सरकार ने बैंकों की फंड की जरूरत को पूरा करने के लिए इंद्रधनुष नीति लागू की है। इसके तहत चार वर्षों में सरकारी खजाने से 70 हजार करोड़ रुपये और बाहरी स्त्रोतों से 1.10 लाख करोड़ रुपये जुटाने की बात है। लेकिन बैंकिंग क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि बैंकों की जरूरत इससे काफी ज्यादा की है। जिन बैंकों में केंद्र की हिस्सेदारी ज्यादा है उसे वह घटाकर 51 फीसद लाने का फैसला कर चुकी है। लेकिन अभी बैंकों की वित्तीय स्थिति इतनी खराब है कि उनमें हिस्सेदारी शेयर बाजार के जरिये नहीं बेची जा सकती।