उन्होंने आगे कहा कि आर्थिक रिकवरी की रफ्तार को लेकर काफी निराशा है। इसके लिए उन्होंने दो बार सूखा, कमजोर ग्लोबल इकोनॉमी और ब्रेक्जिट के चलते पड़ने वाले बाहरी प्रभाव को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि इतनी बाधाओं के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था ने काफी बेहतर प्रदर्शन किया है। साथ ही अच्छा मानसून, संरचनात्मक सुधार और व्यापक आर्थिक स्थिरता अर्थव्यवस्था को बढ़ने में और गति देगा। संवाददाताओं से बातचीत में राजन ने वित्तीय समावेशन समेत कई मुद्दों पर बात की। बोले, प्रत्येक गांव के अंदर बैंक शाखा होना इसलिए संभव नहीं है क्योंकि यह काफी खर्चीला है।
आरबीआइ अन्य विकल्प जैसे मोबाइल ब्रांच और मिनी या माइक्रो ब्रांच पर विचार कर रहा है। ब्याज दरों को ऊंचा बनाए रखने की वजह से रघुराम राजन को अक्सर उनके आलोचक कठघरे में खड़ा करते हैं। इसके साथ ही आलोचक उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआइ) को लेकर उन्हें आर्थिक वृद्धि में रुकावट के लिए भी जिम्मेदार बताते हैं। राजन ने कहा कि उनकी नीतियों की आलोचना का कोई आर्थिक आधार नहीं होता है। इसके समर्थन में उन्होंने उपभोक्ता मूल्यों पर आधारित मुद्रास्फीति का जिक्र किया, जो लगातार चौथे महीने बढ़ते हुए जून में 5.77 फीसद तक पहुंच गई है। बोले, वास्तव में वह इन बातों पर ध्यान ही नहीं देते हैं।
जो लोग ब्याज दरें कम करने की बात करते हैं, पहले वे इस बात को बताएं कि क्या महंगाई काफी कम हो चुकी है। आंख मूंदकर राहत नहीं बैंकों की उन्हें सीबीआइ, सीवीसी जैसी एजेंसियों की निगरानी से छूट दिए जाने की मांग के बीच राजन ने कहा है कि पूरी तरह आंख मूंदकर तो राहत नहीं दी जा सकती है। लेकिन महसूस किया गया कि कर्ज देने का निर्णय उचित जांच-पड़ताल के बाद किया गया है तो ऐसे मामले में जरूर संरक्षण दिया जाएगा। वह समझते हैं कि बैंकों को फैसले लेने की आजादी मिलनी चाहिए।
इसके बिना बैंकों के खातों को साफ सुथरा कर पाना मुमकिन नहीं होगा। अकादमिक मुद्दों पर लिखेंगे राजन ने यह भी साफ किया कि तत्काल अभी उनकी केंद्रीय बैंक में बतौर गवर्नर अपने अनुभवों पर किताब लिखने की योजना नहीं है। बजाय इसके वह अकादमिक मुद्दों पर लिखेंगे। उनके पूर्ववर्ती डी सुब्बाराव ने रिजर्व बैंक में अपने कार्यकाल के दिनों को किताब की शक्ल दी है। राजन सोमवार को हैदराबाद में एक सेमिनार को संबोधित करेंगे।