रीवा। ब्यूरो। आने वाले पचास साल में जिले की उपजाऊ धरती बंजर हो सकती है। इस तथ्य का खुलासा हाल ही में प्रयोगशाला में हुई मिट्टी की जांच से हुआ है। जांच में पता चला है कि मिट्टी में जिंक की कमी के साथ लगातार नाइट्रोजन फॉसफोरस, पोटास की अधिकता बनी हुई है। मिट्टी जांच प्रयोगशाला के वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी का दावा है कि इसी तरह यदि जिंक की कमी बनी रही तो 50 साल में यह खेती योग्य जमीन बंजर सी हो जाएगी। यह तथ्य भी इसलिए पहली बार सामने आ पाया है क्योंकि कृषि विभाग ने मिट्टी की जांच को मुफ्त कर दिया है।
पांच हजार सेंपलों की जांच
जिले के 9 ब्लॉकों के कुल 36 हजार से अधिक खेतों की मिट्टी के नमूने टेस्ट के लिए लैब में लाया गया था। विभिन्न् ब्लॉकों के कुल 5 हजार से अधिक सेम्पलों की जांच के यह खुलासा हुआ है। किसानों के लिए यह चिंता का विषय है। इसकी पूर्ति के लिए मिट्टी जांच प्रयोगशाला ने किसानों से अपील की है कि वे जुताई के समय 25 किलो जिंक प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल कर इसकी पूर्ति कर सकते हैं।
मिट्टी में जिंक की कमी से फसल और पौधे होते हैं कमजोर
सवाल यह उठता है कि जिंक का मिट्टी से संबंध क्या है। वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. अखिलेश कुमार बताते हैं कि जिंक की कमी से वहां बोई जाने वाली फसल या मिट्टी में उगने वाले पौधे बेहद कमजोर होते हैं। जहां धान में इसका असर खैरा नाम की बीमारी के रूप में दिखता है तो गेहूं में इसे कंडमा बीमारी के नाम से जाना जाता है। उस मिट्टी में अन्य पौधे जैसे आम, बबूल व इमारती पौधे भी बेहद कमजोर होते हैं। जिसमें दीमग लगने तथा असमय सूखने की समस्या सामने आती है।
रासायनिक खाद का असर
कृषि वैज्ञानिक डॉ.आरपी जोशी के मुताबिक लगातार रसायनिक खादों के इस्तेमाल से मिट्टी में नाईट्रोजन, फास्फोरस व पोटास की अधिकता बनी हुई है। सीधे किसान की भाषा में कहें तो जिंक का घटना तथा इन तत्वों का बढ़ना अम्लीय व क्षारीय गुण को दर्शाता है। जहां जिंक की कमी से अम्ल की कमी दर्शाता है वहीं पोटास की कमी से क्षारीय कमी देखी जाती है।
ऐसे खेतों में रसायनिक खाद से मुख्य पोषक तत्व व सूक्ष्म पोषक तत्वों को लेवल में रखा जाता है। जैविक खाद के इस्तेमाल से मिट्टी में पोषक तत्वों को कन्ट्रोल में रखा जाता है। इसीलिए शासन व कृषि वैज्ञानिकों द्वारा लगातार किसानों को जैविक खाद इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है। जिससे मिट्टी के पोषक तत्व बरकरार रहें।
बारिश भी जिम्मेदार
भू-गर्भ शास्त्री डॉ.रवीन्द्र तिवारी की मानें तो मिट्टी के पोषक तत्वों में आ रही कमी के लिए बारिश भी जिम्मेदार है। तेज बारिश मिट्टी की ऊपरी सतह को बहाकर नदी, नालों के जरिए समुद्र तक पहुंचा रही है। मिट्टी की सबसे उपजाऊ सतह ऊपरी सतह मानी जाती है। किसी भी खेत में अगर उपजाऊ मिट्टी की बात की जाए तो उसकी गहराई दो से ढाई फीट ही होती है। उसके बाद मिट्टी काली, दोमट व शैलों का रूप धारण कर लेती है।