बालश्रमः मुरझाने न पाए पौध

रोचिका शर्मा : 

बाल मजदूरी हमारे देश की एक बड़ी समस्या है। दुनिया में सबसे ज्यादा बाल मजदूर भारत में हैं। छोटे शहरों में बच्चे जहां अपने पारिवरिक धंधों में लगे हैं वहीं बड़े शहरों में हर गली-मुहल्ले में या नुक्कड़ पर गांवों से लाए गए बच्चे या शहर की ही गरीब बस्तियों के बच्चे होटलों, घरों, लघु-उद्योगों आदि में बर्तन धोते, साफ-सफाई करते या सिलाई-बुनाई करते नजर आ जाते हैं। एक तरफ तो हम विकास की बातें करते हैं, दूसरी तरफ हमारे देश का भविष्य कहलाने वाले ये बच्चे स्वेच्छा से या मजबूरी के चलते बाल मजदूरी की गर्त्त में धकेले जा रहे हैं। इनमें कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जो उन उद्योगों में लगे हैं जहां काम करने से उनके स्वास्थ्य को खतरा और जान को जोखिम है।

ऐसे कार्यों में बच्चों को काम पर रखने पर पाबंदी है लेकिन फिर भी उन बच्चों की मजबूरी का फायदा उठा कर चोरी-छुपे उन्हें इन कामों में लगा दिया जाता है। इनमें से कुछ कामों में इन्हें अमानवीय परिस्थितियों में 14-16 घंटे लगातार काम कराया जाता है। बीड़ी उद्योग, पटाखा उद्योग, कालीन उद्योग आदि में बच्चे काम में लगे हुए हैं। बच्चों से बाल मजदूरी करवाने के कई कारण हैं। उन्हें कम पैसे देकर ज्यादा काम लिया जा सकता है। बच्चे विरोध भी नहीं कर सकते। गरीब और अशिक्षित लोग न तो बच्चों को स्कूल भेजने के लिए सुविधाएं जुटा पाते हैं और न ही शिक्षा का महत्त्व समझते हैं। कानूनन चौदह साल से कम उम्र के बच्चों को कारखाने में काम करने की मनाही है।

इस कानून में नियम भी है कि किस तरह से और कितने समय के लिए 15-18 वर्ष यानी प्री-एडल्ट उम्र में कारखाने में इन बच्चों से काम करवाया जा सकता है। सरकार ने कानून तो बना दिए, लेकिन इन कानूनों को हमारे देश में कितना लागू किया जा रहा है, यह एक सोचने वाला मुद्दा है। काम देने वाले और बच्चों के माता-पिता दोनों ही कानून का उल्लंघन करते हैं। इसका एक कारण यह भी है कि इन कानूनों में ऐसा प्रावधान भी है कि बच्चे अपने परिवार के काम जैसे दुकान, खेती या अन्य व्यवसाय में हाथ बंटा सकते हैं। तो इस ऐक्ट की आड़ में दोनों पक्ष फायदा उठाते हैं। अब अगर बच्चों से किसी भी तरह बाल मजदूरी छुड़ा भी दी जाए तो दूसरी समस्या आती है इनके पुनर्वासन की।

कहीं इनके माता-पिता इन्हें फिर से मजदूरी न शुरू करा दें। नेपाल और बांग्लादेश में कितने ही बच्चे आर्थिक तंगी के कारण देह व्यापार और तस्करी में लग चुके हैं। इ सलिए आज आवश्यकता है कानून में संशोधन करने की। सोलह वर्ष तक की उम्र तक के सभी बच्चों के लिए मजदूरी पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। पढने-लिखने, खेलने-कूदने और अपना बचपन अपने माता-पिता के साथ बिताने का हक और अधिकार हर बच्चे को है। बाल मजदूरी से निकाले गए हर बच्चे को स्कूल में शिक्षा का प्रावधान होना चाहिए। गरीब लोगों के बच्चों के लिए बालवाड़ी जैसी व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि माता-पिता काम पर जाएं तो बच्चों को वहां छोड़ा जा सकेऔर वहां उन बच्चों के लिए मुफ्त खाने की व्यवस्था भी होनी चाहिए। और इन सब कार्यों के लिए हम नागरिकों को भी मिलजुल कर सहयोग करना चाहिए। बाल मजदूरी के कई दुष्प्रभाव हैं। बाल मजदूरी के कारण इन बच्चों का बचपन छिन जाता है।

पटाखा, बीड़ी, कोयला आदि उद्योगों में काम करने से इन्हें स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो जाती हैं। आर्थिक तंगी और काम के दबाव में बच्चे कुपोषण के शिकार हो जाते हैं, जिस के कारण ज्यादा बीमार पड़ते हैं। सिल्क,जरी, डायमंड उद्योग आदि में ज्यादातर बच्चों को ही काम पर रखा जाता है। वहां इनसे चौदह-सोलह घंटे काम करवाया जाता है जो इनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालते हैं। घरों में काम करने वाले बच्चों और बच्चियों से भी क्षमता से अधिक काम कराया जाता है और भरपेट भोजन भी उन्हें नहीं दिया जाता है। कुल मिलाकर यह उन के शारीरिक और मानसिक विकास में बाधक होता है। फिर ये बच्चे सामान्य बच्चों जैसे नहीं रह पाते और अशिक्षा की वजह से जीवन भर के लिए मजदूर ही बन कर रह जाते हैं।

इन दिनों मनोरंजन उद्योग में काम कर रहे बच्चों को लेकर नई बहस चल रही है कि उन्हें किस तरह की श्रेणी में रखा जाए। जिस तरह किसान या माली मिट्टी में बीज बो कर उस में खाद-पानी डाल कर उसे सींचता है, कटाई-छंटाई करता है, उस के पास उगने वाली खरपतवार काटता है तब कहीं जा कर अच्छी फसल तैयार होती है या खुशबू देने वाले फूल खिलते हैं। उसी तरह बच्चे के वयस्क बनने तक के सफर में कम से कम अठारह वर्ष तक उस के लालन-पालन की जिम्मेदारी उस के माता-पिता की होती है। तब कहीं जा कर वह एक अच्छा नागरिक बनता है। लेकिन अगर माता-पिता उसकी परवरिश करने में असक्षम हों तो उस बच्चे की परवरिश के लिए कुछ नियम कानून होना जरूरी है। और यह जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की ही नहीं हम सब की भी है। वैसे तो कई गैर सरकारी संस्थाएं इसके लिए काम कर रही हैं। फिर भी हम सब भी इसी समाज का हिस्सा हैं। हम सभी को मिल कर कदम उठाने चाहिए कि किसी मजबूरी के चलते कोई बच्चा बाल मजदूर न बन जाए। वृक्ष बनने से पहले कहीं यह पौध मुरझा न जाए-यह खयाल रखना होगा।

                                                                                                      आलेख—— रोचिका शर्मा 

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