जमुई जिले के इस गांव में जब कोई गंभीर रूप से बीमार पड़ जाता है, तो उसे अस्पताल ले जाने में लोगों की सांस अटक जाती है। इलाज के अभाव में कई लोग असमय दम तोड़ देते हैं। यह गांव है जिला मुख्यालय से महज तीन किलोमीटर दूर पर बसा लठाने नीचली टोला। पीड़ा यह कि गांव तक जाने के लिए पक्की सड़क तो छोड़िये, कच्ची सड़क भी नहीं है। तीन ओर से यह टोला किऊल नदी से घिरा है।
बारिश के दिनों में गांव टापू बन जाता है और गांव से बाहर जाना लगभग मुश्किल हो जाता है। ऐसे में यदि कोई बीमार पड़ जाए, तो झोलाछाप डाक्टर ही भगवान बन जाते हैं। सड़क न होने के चलते इस गांव में लोग अपनी बेटियों को ब्याहने से भी हिचकते हैं। कई बार कई लड़कों की तय शादियां टूट जाती हैं। यही कारण है कि गांव के कुंआरे दुल्हन के इंतजार में अपनी उम्र पार कर रहे हैं।
जमुई सदर प्रखंड के थेगुआ पंचायत के लठाने गांव और जिला मुख्यालय के बीच किऊल नदी पड़ती है लेकिन उससे भी बड़ी बात है कि गांव से बाहर निकलने के लिए खेत ही सहारा है। जब बारिश होती है तो खेतों से होकर गांव से बाहर जानेवाला कच्चा रास्ता डूब जाता है और आवागमन ठप सा हो जाता है। लगभग 200 घरों वाले इस गांव में सभी वर्ग के लोग रहते हैं। इस गांव की आबादी लगभग ढाई हजार की है। ग्रामीणों की द्वारिका मंडल, मोहन मंडल, शंकर शर्मा, विनेश्वर यादव, वासुकी पासवान, गजाधर मंडल अदि मानें तो सड़क के लिए स्थानीय मुखिया, विधायक, सांसद के अलावा जिला प्रशासन से गुहार लगाकर वे लोग थक चुके हैं।
ग्रामीण गजाधर मंडल कहते हैं कि जिले के दो विधायक, एक सांसद और दो-दो मंत्री हैं, लेकिन गांव अछूत बना हुआ है। ग्रामीण बिनोद कुमार ने बताया कि लठाने पूरा गांव पहले सड़क से वंचित था। हाल के दो माह पूर्व लठाने ऊपरी टोला तक के लिए सड़क का निर्माण कार्य चल रहा है लेकिन निचली टोला जाने के लिए कोई सुविधा नहीं है।