छह राष्ट्रीय दलों को आरटीआई कानून के दायरे में लाए जाने के तीन वर्ष बाद कांग्रेस ने सोमवार (20 जून) को केन्द्रीय सूचना आयोग से कहा कि उसके 2013 के पूर्ण पीठ के आदेश को निरस्त किया जाए। पार्टी ने कहा कि वह न तो कोई अदालत है और न ही ऐसा समुचित प्राधिकार है जिसके अधिकारक्षेत्र को चुनौती नहीं दी जा सके तथा उसका आदेश ‘मनमाना एवं गैरकानूनी’ है।
कांग्रेस के वकील के सी मित्तल ने सोमवार (20 जून) को आयोग की पूर्ण पीठ से कहा कि राजनीतिक दलों को आरटीआई कानून के दायरे में लाने के उसके आदेश को निरस्त करने के लिए एक याचिका दी गयी है। पीठ उस शिकायत की सुनवाई कर रही है जिसमें कहा गया है कि राजनीतिक दल उनको मिले चंदे, चुनाव एवं अन्य संबंधित मुद्दों के बारे में दी गयी आरटीआई अर्जियों का जवाब नहीं देते। कांग्रेस के कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा ने 17 जून को दी अपनी दलील में कहा, ‘यह स्थापित है कि सीआईसी न तो अदालत है और न ही उसका अधिकार क्षेत्र ऐसा है जिसको चुनौती न दी जा सके। उसे इतने भी अधिकार नहीं है कि उसके अधिकार क्षेत्र का निर्णय किया जा सके अथवा कानून एवं उसकी परिभाषा की समीक्षा की जा सके।’
दिलचस्प है कि कांग्रेस नीत सरकार के शासनकाल में ही 2005 में यह महत्वपूर्ण पारदर्शिता कानून पारित किया गया था। कांग्रेस ने कहा कि आवेदक (एसोएिसशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स एवं एस सी अग्रवाल) अपने मामले को पुष्ट करने में विफल रहा है तथा रिकॉर्ड में कोई दस्तावेज/साक्ष्य नहीं है जिससे यह पता चलता हो कि राजनीतिक दलों को सरकार से खासा वित्त पोषण मिलता है। इसलिए राजनीतिक दलों को सरकार द्वारा खासा वित्त पोषण मिलने के रूप में घोषित करना मनमाना एवं गैर कानूनी है।