दरअसल, चोट लगने के पहले भी घर में दादाजी को योगासन करते देख मेरे बालमन पर प्रभाव पड़ा था कि यह अच्छी चीज है, इसे सीखना चाहिए। बाद में जब योगासन से चोट ठीक हो गई तो लगा कि इसे पेशेवर ढंग से सीखना चाहिए। चूंकि योग से मेरा पहला परिचय उपचार पद्धति के रूप में हुआ तो मुझे लगा कि मुझे इसी पर ध्यान केंद्रित करनाा चाहिए। फिर हमने 60 रोगों पर प्रोग्राम बनाया। जैसे रक्तचाप है तो यह योगमुद्रा व प्राणायाम है। भोजन में आंवला, लहसून ले लीजिए, प्याज ले लेंगे तो फायदा होगा। स्वास्थ्य को कायम रखने की तो योग में बात की जाती रही है, लेकिन उपचार पद्धति के रूप में योग की प्रस्तुति नई बात थी।
मुझे एक महिला ने कहा कि उसे घुटनों में लगातार दर्द रहता है। जब महिला मेनोपॉज से गुजरती है तो एस्ट्रोजन हार्मोन खत्म हो जाता है। ग्यारह में से दस महिलाओं को यह समस्या हो सकती है। आप तीन कप दूध पीजिए। हम बारह तरह के आहार बताते हैं। शरीर में केल्शियम आएगा और विटामिन डी यानी धूप ले लीजिए। बादाम खा लीजिए। इससे केल्शियम, प्रोटीन मैग्नेशियम, फास्फोरस बनेगा तो वहां धीरे-धीरे पहुंचेगा और जोड़ों का कड़ापन कम होगा। हमने उन्हें धूप लेने को कहा कि सूरज की रोशनी में सात रंग होते हैं ये जब शरीर में जाएंगे तो सकारात्मकता पैदा होगी। गाड़ी में जा रहे हैं तो हाथ बाहर निकाल लीजिए। शरीर को विटामिन डी मिल जाएगा। इस तरह हम योग से साइंस को जोड़ते हैं। यही हमारा मॉडर्निज्म है।
हाल ही में दुबई में 10 हजार लोगों की वर्कशॉप की थी। अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी उसमें डिमॉन्स्ट्रेटर थीं। हमने दुबई की धरती पर ओम का उच्चारण करवाया। वे बहुत मॉडर्न लोग हैं और सारी चीजों को बहुत सहजता से लेते हैं। फिर हम ‘अर्बन हील योगा’ का विचार लेकर आए कि शहरों में रहते हुए हम योग के माध्यम से किस तरह स्वस्थ रह सकते हैं। हमने परम्परा और आधुनिकता, दोनों का समावेश किया है। मैं योग को सहज जीवनशैली का अभिन्न अंग बनाना चाहता हूं। वैसे वे सुबह मार्शल आर्ट का अभ्यास करते हैं। एक अलग कंसेप्ट हमारा योगा चि का भी है। यह मेडिटेशन जैसी पद्धति है। यह दरअसल आटो सजेशन है। द्वितीय विश्वयुद्ध में जापानी सैनिक घायल हो जाते थे, तो उन्हें मेडिकल उपचार के साथ मन ही मन आटो विजुअलाइजेशन करने को कहा जाता था कि प्राण ऊर्जा उस घाव को ठीक कररही है। यह उसी परंपरा से आई विधि है। खुद को सुझाव देना, बहुत शक्तिशाली ध्यान है।
एक बहुत बड़ी सेलेब्रिटी हैं मैं उनका नाम नहीं लूंगा। उन्हें कब्ज की समस्या थी। वे तीन दिन में एक बार टॉयलेट जाते थे। वे मुझसे मिले। मैंने उनसे कहा कि इसका 90 प्रतिशत कारण मानसिक और सिर्फ 10 फीसदी शारीरिक होता है। जब तनाव होता है तो वह शरीर में जमा हो जाता है और फुर्सत के समय में हमें परेशान करता है। मैंने उन्हें इंडियन स्टाइल के टॉयलेट का इस्तेमाल करने को कहा और कहा कि जब वे बैठें तो कोई पात्र रखकर नल चला दें ताकि पानी बेकार न बहे। यह बहुत पुराना विचार है। मांएं बच्चों को पेशाब कराने के लिए इस्तेमाल में लाती रही हैं और उनकी समस्या हल हो गई। मैं जापान में चार साल रहा हूं। वहां हिंदुस्तान जैसे कमोड ही होते हैं। वे दिन में 15-20 बार ग्रीन टी पी लेते हैं। फिर मेडिटेशन बहुत करते हैं। खाना खाने से पहले, रात में सोने से पहले ध्यान करते हैं।
ग्रीन टी डिटॉक्जीफिकेशन करती है और ध्यान शांति देता है। उनके भीतर आक्रामकता नहीं होती, लेकिन यदि सामने शेर आ जाए तो उठकर भागने की सक्रियता भी चाहिए। संतुलन हमारे सूर्य नमस्कार में होता है। ध्यान के नाम पर भी बहुत से भ्रम है। लोग शिकायत करते हैं कि आंख बंद करके बैठे की विचारों का तूफान आ जाता है और उन्हीं में उलझ जाते हैं। आधे घंटे बाद याद आता है कि हम तो ध्यान में बैठे थे। यह ध्यान नहीं है। इसमें दो बातें हैं, एक तो ध्यान का समय निश्चित होना चाहिए। सुबह चार बजे कर रहे हैं तो चार बजे ही करें। शाम छह बजे कर रहे हैं तो हमेशा छह बजे ही करें। दो, ध्यान का मतलब है जागरूकता। जो भी कर रहे हैं उसके प्रति जागरूक रहना चाहिए। जैसे सांस के आने-जाने के प्रति जागरूक रहकर ध्यान किया जा सकता है। शुरू में इसे एक मिनट करना मुश्किल होता है, लेकिन आप डटे रहें तो करोड़ों विचार से शुरू होकर कम होते-होते आप का ध्यान लगने लगेगा।
स्कूली बच्चों पर नब्बे फीसदी से ज्यादा अंक लाने का दबाव रहता है। परीक्षा परिणाम आने के बाद आत्महत्या की घटनाएं बढ़ रही हंै। ऐसे में हमें बच्चों को स्कूली जीवन से ही योग की आदत डाल देनी चाहिए। शारीरिक आसन हमारी रोग प्रतिरोधक प्रणाली को, प्राणायाम हमारे प्राणकोष को मजबूत बनाता है और ध्यान मानसिक मजबूती देता है। बच्चा बचपन से योगासन कर रहा है तो वह ऐसी जीवनशैली विकसित कर लेता है कि कठिन से कठिन परिस्थिति से भी निपट लेता है। मसलन, प्राणायाम करते हैं तो शरीर में सेरोटोनिन हार्मोन निकलता है, जिससे सकारात्मक दृष्टिकोण आता है। यदि कोई बच्चा रोज ध्यान कर रहा है तो उसका सेरोटोनिन लेवल बढ़ा हुआ रहेगा और विपरीत परिस्थितियों में भी उसकी सोच सकारात्मक ही रहेगी। जब हम सामान्य रूप से सांस लेते हैं तो 500 क्यूबिक सेंटीमीटर हवा को अंदर भरते हैं, लेकिन प्राणायाम में एक बार में हम 3000 क्यूबिक सेंटीमीटर तकहवाअंदर ले सकते हैं। जितनी ऑक्सीजन अंदर जाएगी, हमारी कोशिकाएं (सेल्स) उतनी सक्रिय रहती हैं। कॉर्बन डाइऑक्साइड व विजातीय तत्व बाहर जाएंगे। कम से कम समय में स्वास्थ्य हासिल करना है तो एक तो रोज बारह बार सूर्य नमस्कार जरूर कीजिए। इसमें छह से सात मिनट लगेंगे। इसके बाद पांच मिनट शवासन में लेट जाइए। फिर कीजिए भुजंगासन, जिससे हमारी रीढ़ के 33 कशेरुक (वर्टिब्रा) बिल्कुल ठीक स्थिति में आ जाते हैं। व्यक्ति के निरोग होने का लक्षण ही यह है कि उसकी रीढ़ की हड्डी लचीली है। फिर पांच से सात मिनट इष्ट देव के नाम पर या सांस पर ध्यान कर लेना चाहिए। इन चार चरणों से हमारा हार्मोन सिस्टम, श्वसन, रक्त संचार सब ठीक हो जाता है। इसमें 20-22 मिनट लगेंगे। संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए इतना काफी है।
योग के प्रचार के साथ बिना विचारे योगासन करने की प्रवृत्ति बढ़ी है। हालांकि, आप योगासनों की कोई भी किताब देखें तो उसमें सबसे पहले आसन बताया है, फिर उससे होने वाले फायदे बताए गए हैं और अंत में सावधानियां दी गई हैं। जैसे रक्तचाप व दिल के रोगियों के लिए कई तरह के अासन व प्राणायाम वर्जित हो सकते हैं। ये रोगी यदि भस्त्रिका या कपालभाति प्राणायाम करते हैं तो रक्तचाप बढ़ जाएगा। प्राणायाम में आसन का महत्व है। व्यवस्थित ढंग से बैठकर फिर प्राणायाम किया जाता है। ऐसा नहीं है कि चलते-चलते कर लीजिए या रेलवे स्टेशन पर प्राणायाम कर लीजिए। वहां प्रदूषण होता है, उससे नुकसान हो सकता है।