बुंदेलखंड: न चारा, न पानी, जानवर बेच रहे हैं किसान

सूखे से झुलस रहे बुंदेलखंड में स्थितियां और भयावह हो चली हैं। हालात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दो वक्त की रोटी के लिए ग्रामीण अपने पशु बेच रहे हैं। पशुओं के खरीदार नहीं मिल रहे हैं, चारे पानी का जबरदस्त संकट है लिहाजा पशुपालक भारी मन से औने-पौने दामों में इनसे पीछा छुड़ा रहे हैं। कई गांव ऐसे भी हैं जहां के लोगों ने अपने पशुओं को आवारा छोड़ दिया है।

केस स्टडी-1
भैंस बेचकर फफक पड़ीं लज्जावती
झांसी। बबीना के खजराहा बुजुर्ग के रामपुर मजरे की लज्जावती बताती हैं कि उनके पास 75 डेसीमल जमीन है, तीन भैंसें थीं। दूध व खेती से होने वाली आय से परिवार का खर्च चलता था। लेकिन चारे की कमी से भैंसों की सेहत गिरने लगी, इसलिए मजबूरी में पैंतीस हजार रुपये में खरीदी भैंस, तेरह हजार रुपये में बेच दी। भैंस बेचते समय लज्जावती फफक – फफक कर रोईं। बाकी बचीं दो भैंसें भी बिकाऊ हैं, लेकिन खरीदार नहीं मिल रहे हैं। यह केवल लज्जावती की आपबीती नहीं है। तीन सौ की आबादी वाले उनके छोटे से मजरे में ही करीब दो दर्जन दुधारू पशु बिक चुके हैं। बाकी बचे ज्यादातर पशु भी बिकाऊ हैं।

केस स्टडी-2
चारे व पानी के अभाव में छोड़े जानवर
ललितपुर। गांव रजवारा में लोगों को पीने के पानी का जुगाड़ बमुश्किल हो पा रहा है। मवेशियों के लिए चारे- पानी का संकट है। पशुओं के खरीदार मिल नहीं रहे हैं, लिहाजा गांव के लोगों ने अपने पशुओं को आवारा छोड़ दिया है। बिजलाल, टंटू, राकेश अहिरवार, हरचरन, प्यारेलाल, कैलाश, संतोष, थोवन, रमेश, फूलचंद, गोविंददास, गोविंददास, ये उन सैकड़ों लोगों में शामिल हैं, जिन्होंने अपने पशु छुट्टा छोड़ दिए।

केस स्टडी-3
केवल दो बार आया टैंकर
झांसी। सूखा प्रभावित गांवों में टैंकरों से पानी की आपूर्ति का शोर लखनऊ से लेकर दिल्ली तक है, जबकि हकीकत कुछ और है। किसान राकेश राजपूत ने बताया कि भीषण गर्मी में उनके मजरे में केवल दो बार ही टैंकर से पानी आया है। कुएं सूखे चुके हैं, पांच में से केवल दो हैंडपंप ही काम कर रहे हैं। इनसे एक बाल्टी पानी भरने के बाद आधा घंटे इंतजार करना पड़ता है।

खरीफ के लिए साहूकार के भरोसे
सूखे से सहारिया आदिवासियों पर सबसे ज्यादा असर पड़ा है। कम जोत के खेतों के मालिक सहारिया आदिवासियों ने परिवार के पोषण करने के लिए शहरों का रुख किया था। अब ये लोग खरीफ की फसल बोने की आस लिए फिर से घर का रुख कर रहे हैं।

ईट भट्ठों, कोयला तोड़ने, सड़क निर्माण के काम से थोड़ा बहुत कमाकर लौटे इन मजदूरों के लिए फिलहाल गांव के साहूकार ही आखिरी सहारा हैं। फसल बोने को जरूरी संसाधन जुटाने के लिए इन लोगों के पास पर्याप्त रकम नहीं है, लिहाजा कर्ज के आसरे ही अगली फसल की बुआई की उम्मीद बाकी है।

ग्राम लड़वारी के दयाली ने बताया कि खरीफ की फसल कम लागत में ज्यादा मुनाफा देती है। अगर यह अच्छी हो जाए तो कई महीनों के लिए जीने का सहारा हो जाएगा। खरीफ की फसल बोने के लिए मंहगे उर्द के बीजके लिए अभी से इन लोगों ने साहूकारों के चक्कर लगाने शुरू कर दिए हैं। बीज लेने पर दुगना लौटाने की शर्त है और रुपए कर्ज लेने पर पांच से दस फीसदी ब्याज भी।

बारिश से भी नहीं है उम्मीद
झांसी। मौसम विभाग ने इस बार सामान्य से अधिक बारिश की घोषणा की है, लेकिन किसान इस खबर को लेकर उत्साहित नहीं हैं। रामपुर के युवा किसान पुष्पेंद्र कहते हैं, ‘‘अगली फसल की बुआई के लिए खाद – बीज की जरूरत होगी, लेकिन इसे खरीदने के लिए हमारे पास अब बचा ही क्या है? बारिश से फायदा तो तभी होगा जब फसल लगाई जाएगी।”

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