मानव संसाधन विकास मंत्रालय की समिति ने कहा है कि ‘ढीले और भ्रष्ट’ व्यवस्था से निजी कॉलेज फल-फूल रहे हैं। जिनका शिक्षा से कोई लेना-देना नहीं है उन पैसेवाले प्रभावशाली लोगों के संरक्षण में ये खराब ढांचावाले कॉलेज चल रहे हैं। समिति ने कहा है कि ‘शिक्षा की ऐसी दुकानों’ पर पाबंदी लगाने के लिए तुरंत कदम उठाने की जरूरत है।
शिक्षा मंत्रालय की समिति ने नई शिक्षा नीति बनाने की सिफारिश की है। साथ ही उसने निजी उच्च शिक्षा संस्थानों में अपारदर्शी वित्तीय प्रबंधन की भी आलोचना की है। उसका कहना है कि इससे समानांतर अर्थव्यवस्था चलाने को बढ़ावा मिलेगा।
पूर्व कैबिनेट सचिव टी एस आर सुब्रमण्यन ने कहा कि कई निजी विश्वविद्यालय और कॉलेज पैसेवाले प्रभावशाली लोगों के संरक्षण में चल रहे हैं। ऐसे संस्थान शिथिल और भ्रष्ट नियामक वातावरण का फायदा उठाते हैं।
समिति का कहना है कि मौजूदा व्यवस्था निजी शिक्षण संस्थानों में भ्रष्ट वित्तीय प्रबंधन को बढ़ावा देगी। अपनी रिपोर्ट में इसने कहा है कि मौजूदा व्यवस्था में कोई तंत्र नहीं है जो शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ा सके और इन दोयम दर्जे के संस्थानों पर कोई लगाम लगा सके।
समिति ने कॉलेजों में शिक्षकों के खाली पदों और कुछ राज्यों द्वारा उन्हें नियमित तौर पर भरने की अनिच्छा पर भी संज्ञान लिया है। ये संस्थान पूर्णकालिक शिक्षकों के वेतन के खर्चे से बचने के लिए ऐसा करते हैं।
समिति का कहना है कि तदर्थ और अतिथि शिक्षकों पर अतिनिर्भरता से शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होती है और सुझाव दिया कि पूर्णकालिक शिक्षक नहीं रखने पर ऐसे संस्थानों को मान्यता देते समय इन पर नजर रखी जानी चाहिए।