संयुक्त राष्ट्र प्रति व्यक्ति वार्षिक सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) के हिसाब से देशों की एक सूची जारी करता है. इसमें भारत 150वें स्थान पर है. हमारी प्रति व्यक्ति सालाना जीडीपी 1,586 डॉलर है.
इसका मतलब यह हुआ कि औसत भारतीय हर महीने 8,800 रुपये मूल्य का सामान और सेवाएं उत्पादित करता है. भारत से निचले स्तर पर खड़े देशों में यमन (1,418 डॉलर), पाकिस्तान (1,358 डॉलर), केन्या (1,358 डॉलर), बांग्लादेश (1,088 डॉलर), जिंबाब्वे (965 डॉलर), नेपाल (692 डॉलर), अफगानिस्तान (688 डॉलर) और कॉन्गो (480 डॉलर) शामिल हैं. सोमालिया 131 डॉलर के साथ सबसे नीचे है.
शीर्ष पर छोटे यूरोपीय देश -मोनाको (18,7,650 डॉलर), लिचटेंस्टाइन (15,7,040 डॉलर) और लक्जमबर्ग (11,6,560 डॉलर)- हैं, जहां धनी लोग रहते हैं.
सिंगापुर (55,910 डॉलर) और अमेरिका (54,306 डॉलर) उच्च आयवाले राष्ट्रों के बेहतर प्रतिनिधि हैं. दक्षिण कोरिया (28,166 डॉलर) जापान (36,298 डॉलर) के नजदीक पहुंच रहा है, जबकि जर्मनी (47,966 डॉलर) और ब्रिटेन (46,461 डॉलर) लगभग बराबर हैं.
ये आंकड़े अच्छे सूचक हैं, पर हमें सिर्फ इन्हें ही नहीं देखना चाहिए. मध्यम आय यानी कुल आय के औसत की जगह आय सूची के मध्य में स्थित व्यक्ति की आय के लिहाज से पाकिस्तान भारत से आगे है. इसका अर्थ यह है कि भारतीयों से कम होने के बावजूद पाकिस्तानियों की आय बेहतर तरीके से वितरित है और भारत की तुलना में पाकिस्तान आर्थिक रूप से कम विषम है.
यह जानना कई पाठकों के लिए दिलचस्प हो सकता है कि जांबिया (1,715 डॉलर), वियतनाम (2,015 डॉलर), सूडान (2,081 डॉलर) और भूटान (2,569 डॉलर) जैसे देश भारत से आगे हैं. श्रीलंका (3,635 डॉलर) की प्रति व्यक्ति जीडीपी भारत की तुलना में दोगुने से भी अधिक है. यह तथ्य उन लोगों के लिए आश्चर्यजनक नहीं होगा, जिन्होंने वहां जाकर देखा है कि किस तरह लोग भारतीयों से अधिक समृद्ध हैं.
ऐसी तुलनाएं करते समय हमें देश के आकार, आय के स्रोत और अन्य संबद्ध कारकों का भी संज्ञान लेना चाहिए. लेकिन इन आंकड़ों से यह अंदाजा मिलता है कि हम किस मुकाम पर खड़े हैं. और, तब शायद हम यह भी विचार कर सकते हैं कि भारत को एक विकसित देश बनाने के लिए हमें क्या करना है.
िवश्व बैंक ने अब ‘विकासशील देश’ टर्म का इस्तेमाल नहीं करने का निर्णय लिया है और अब वह प्रति व्यक्ति जीडीपी के आधार पर देशों का वर्गीकरण करेगा. भारत एक निम्न-मध्य आय वाला देश है.
इसका पैमाना यह है कि जिन देशों में प्रति व्यक्ति एक हजार डॉलर से कम आय है, वे निम्न आय वाले देश हैं. 1,000 से 4,000 डॉलर के बीच निम्न-मध्य आय वाले देश हैं. 4000 से 12,000 डॉलर के बीच उच्च-मध्य आय वाले देश हैं. इससे अधिक आय वाले देश ही उच्च आय वाले देश हैं. यूरोप के अधिकतर देश उच्च आय वाले देश हैं. मेरी जानकारी के मुताबिक सर्बिया ही एक ऐसा देश है, जिसकी आय 6000 डॉलर है, जो सबसे कम है.
हाल ही में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर रघुराम राजन ने बताया कि ‘यदि भारत को गरीबी दूर करनी है, तो यहां सालाना कितनी प्रति व्यक्ति आय की जरूरत हाेगी. यह एक मुश्किल काम है, दुनिया का कोईभी देश पूरी तरह से गरीबी को दूर नहीं कर सकता. राजन ने कहा कि एक स्तर पर हम 1,500 डॉलर प्रति व्यक्ति आयवाली अर्थव्यवस्था हैं. सिंगापुर की आय प्रति व्यक्ति 1,500 डॉलर से 50,000 डॉलर है. हमें यहां तक पहुंचने के लिए अभी बहुत कुछ करना है.
अपेक्षाकृत हम अब भी एक गरीब अर्थव्यवस्था वाला देश हैं. हमें 6,000 से 7,000 डॉलर प्रति व्यक्ति आय करने की जरूरत होगी, इस देश के हर आंख से आंसू पोंछने के लिए. अगर प्रति व्यक्ति तक यह आय पहुंचने लगे, तो हम गरीबी से मुकाबला कर सकते हैं. इस स्थिति तक पहुंचने के लिए हमें बीस साल तक काम करना होगा.’
चीन की प्रति व्यक्ति सालाना आय 7,600 डॉलर है, इसका अर्थ यह है कि रघुराम राजन भारत के इसी आय तक पहुंचने की बात कर रहे हैं. जो लोग चीन जा चुके हैं, वे जानते होंगे कि चीन में विकास का पैमाना भारत से बिल्कुल अलग है, इसलिए इन दोनों देशों की तुलना करना उचित नहीं होगी. दोनों देश एक-दूसरे से बहुत अलग हैं. मुझे नहीं लगता कि हमारे जीवन में यह मुमकिन हो पायेगा यानी अगले 30 वर्षों में हमारे लिए चीन की विकास रफ्तार को पकड़ना मुश्किल है.
तो फिर 1,500 डॉलर प्रति व्यक्ति आय से 6,000 डॉलर यानी चार गुना वृद्धि के लिए भारत को क्या करने की जरूरत होगी? देश में यही बहस जारी है कि हमारी सरकार इस मामले में क्या कर सकती है और उसे क्या करना चाहिए. सोच यह है कि इसके लिए हमें ज्यादा और अच्छे कानूनों की जरूरत है, आर्थिक सुधार के जरिये, जैसे कि एकीकृत सामानों और सेवा कर (जीएसटी). और दूसरी बात यह है कि हमें भ्रष्टाचार-मुक्त और प्रभावी प्रशासन वाले गुड गवर्नेंस की जरूरत है. जिस देश में भ्रष्टाचार और अक्षमता उसकी संस्कृति का हिस्सा हो, वहां दूसरी बात संभव है.
इसमें मैं यह भी जोड़ूंगा कि ये दोनों चीजें भी काफी नहीं हैं. हमें जिसकी जरूरत है, ये उसके बड़े हिस्से भी नहीं हैं. उच्च आय वाले देशों में जो लोग जा चुके होंगे, उन्होंने यह महसूस किया होगा कि वहां के समाज के काम करने का तरीका भारत से अलग है. वहां लोगों और अजनबियों का सम्मन होता है.
उन देशों में जो सद्भाव है, वह हमारे देश में दिखायी नहीं देता, यहां तक कि हमारे अच्छे शहरों में भी नहीं. सरकार सुधार से ज्यादा समाज सुधार देशों में प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाता है और देश को अमीर बनाता है. कहने का अर्थ है कि जब तक हम सरकारों के अंदर सुधार की बात करते रहेंगे, हम धीमी गति से ही बढ़ते रहेंगे.