दिल्ली को सड़क हादसों की राजधानी भी कह सकते हैं। यहां हर दिन औसतन पांच लोग सड़क हादसों में जान गंवा रहे हैं। पिछले तीन साल में हिट एंड रन के 12% हादसों में इजाफा हो गया। ऐसे अधिकतर मामलों में पुलिस के हाथ खाली रह जाते हैं।
पिछले साल राजधानी में सड़क हादसों में 1622 लोग मारे गए थे। रफ्तार के चलते हर साल बढ़ रहे हिट एंड रन के मामले भी दिल्ली को भारी दर्द दे रहे हैं। ऐसे मामलों में पिछले साल करीब 830 लोगों की मौत हुई है। खास बात है कि ऐसे मामलों में पुलिस के हाथ लंबे समय तक कोई सबूत भी हाथ नहीं लगता। इनमें से 70 फीसदी हादसे रात में हुए हैं।
बता दें तीन वर्ष पहले करीब 38 फीसदी जानलेवा हादसे हिट एंड रन की वजह से हुए थे, अब वह 50 फीसदी के पार हो गई है। एक तरफ दिल्ली पुलिस यह दावा करती है कि रात में उनकी सैकड़ों पीसीआर वैन सड़कों पर होती हैं। दूसरी ओर ट्रैफिक पुलिस भी अपनी सक्रियता को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करती है। ट्रैफिक पुलिस के अफसर कहते हैं कि हमारे जवान रात में एक बजे तक ड्यूटी देते हैं।
हकीकत यह है कि रात नौ बजे के बाद कहीं-कहीं पर ही कोई ट्रैफिक पुलिसकर्मी नजर आता है। यह जरूर है कि दिल्ली के सभी बॉर्डर स्थित चेक प्वाइंट पर ट्रैफिक पुलिस वाले अच्छे-खासे सक्रिय दिखते हैं।
पीसीआर सिर्फ कॉल आने पर ही अपनी जगह से मौके पर जाती हैं। उनके सामने से ओवरस्पीड में गाड़ियां निकलती रहती हैं, लेकिन वे न तो खुद मामला भांपने का प्रयास करते हैं और न ही वायरलैस पर दूसरे कर्मियों को सचेत करते हैं।