रांची : झारखंड में बिजली आपूर्ति की व्यवस्था लचर है. सुधार के लाख दावों के बावजूद आज भी बिजली की आंंख-मिचौली बदस्तूर जारी है. गुजरे वर्षों से तुलना करें तो हालात बहुत बेहतर नहीं हुए हैं. राज्य के किसी भी हिस्से में 24 घंटे निर्बाध बिजली की आपूर्ति नहीं हो रही है.
राजधानी रांची के लोगों के लिए तो ‘जीरो पावर कट’ सपना ही है. हालांकि मंत्री से लेकर विभाग के अिधकारी आश्वासन देते रहे हैं.फिलहाल, राजधानी में 19 से 21 घंटे ही बिजली मिलती है. राज्य के अन्य इलाकों में औसतन 15 से 20 घंटे से ज्यादा बिजली नहीं मिल रही है. गरमी के मौसम में लगातार पावर कट से लोग परेशान हैं. बताया जा रहा है कि ट्रांसफारमर और तार की क्षमता इतनी नहीं है कि गरमी में बिजली की फुल लोड आपूर्ति की जा सके. स्थानीय स्तर पर खराबी की वजह से समय-समय पर बिजली कटती रहती है. राज्य में हर रोज चार से नौ घंटों तक बिजली काटी जा रही है.
अब तक शुरू नहीं हुआ अंडरग्राउंड केबलिंग का काम : राज्य में बिजली व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए ठोस कदम अब तक नहीं उठाये गये हैं. झारखंड गठन के समय अंडरग्राउंड केबलिंग की योजना बनी थी, लेकिन वह काम अब तक धरातल पर शुरू नहीं होसका है. हालांकि, पिछले एक वर्ष में व्यवस्था सुधारने के गंभीर प्रयास शुरू हुए हैं, लेकिन इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर काम होना बाकी है. राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के तहत लगभग 17 हजार गांवों का विद्युतीकरण किया गया. पर वहां बिजली मिले, इसकी समुचित व्यवस्था नहीं की जा सकी है.
ट्रांसफारमर जलने पर गांवों में महीनों गुल रहती है बिजली : अब भी गांवों में एक बार ट्रांसफारमर जल जाने पर महीनों तक गांव में बिजली गुल रहती है. शहर में बारिश के होते ही ग्रिड फेल हो जाते हैं. सरकार के पास बैकअप में ट्रांसफारमर नहीं है. दूसरी ओर, गढ़वा जिला आज भी बिजली के लिए यूपी-बिहार पर ही निर्भर है. दुमका समेत संताल परगना में पूरी व्यवस्था बिहार व एनटीपीसी के कहलगांव पावर प्लांट पर टिकी है. इसे ललपनिया और पतरातू से जोड़ने का काम आज तक नहीं हो सका है. पूरे राज्य में जीरो कट बिजली की आपूर्ति नहीं की जाती. ग्रामीण इलाकों में आज भी औसतन 15 से 17 घंटे ही बिजली मिलती है. वहीं शहरी इलाकों में मुश्किल से 18-20 घंटे बिजली की अापूर्ति की जा रही है.