अम्बुरे का दावा है कि इसके छिड़काव से कीट प्रकोप कम होंगे और पैदावार ज्यादा होगी। इससे फसल में डाली जाने वाली दवाई की मात्रा भी कम हो जाएगी। इस तरह फसल की पैदावार बंफर होगी। राज्य के 30 हजार से ज्यादा हेक्टेयर पर प्रतिवर्ष 586 हजार मैट्रिक टन बैगन का उत्पादन होता है। इस तरह देश में पश्चिम बंगाल, ओडिशा, गुजरात, बिहार, आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के बाद आठवें स्थान पर छत्तीसगढ़ का स्थान आता है।
नौ तरह के ट्रीटमेंट के बाद मिली सफलता
रिसर्चर कृष्ण गनपत राव अम्बुरे ने बताया कि बैगन में तना व फल छेदक की बीमारी बहुत सामान्य है। इससे बचने के लिए किसान महंगी दवाइयां छिड़कता है तब यह जाकर काबू होता है। लेकिन पैदावार घट जाती है। उन्होंने बताया कि विवि में ही इस बीमारी के दूर करने के लिए नौ तरह के ट्रीटमेंट किए। इसलिए दिसंबर 2015 से 9 प्लाट में बैगन की खेती की। सबमें अलग-अलग तरह के एक्सपेरीमेंट किए गए।
जैसे गुड़ का पानी, कोको कीट, बोरस पाउडर, केले का पाउडर, नीम, एश पाउडर, केमिकल फ्लूबेनडिएमिड और एक प्लाट में कुछ नहीं डाला गया था। इस तरह तना छेदक को रोकने के लिए सबसे कारगर फ्लूबेनडिएमिड केमिकल का हुआ। इसके बाद केले के पत्ते के पाउडर में सबसे ज्यादा असर देखने को मिला। इस तरह 7 महीने के रिसर्च में अम्बुरे को यह सफलता मिल गई है।
तना छेदक की बीमारी इस तरह
बैगन के पेड़ में ल्यूकिनोडस ओरबोनेलिस नामक मादा कीड़ा कोमल फूल व शाखाओं पर अंडे देती है। इस तरह यह दिनोंदिन खतरनाक होते जाते हैं। जब फल आते हैं तो उस पर छेद करते हैं या फिर तने को प्रभावित करते हैं। इन अंडों को सूक्ष्म आंखों से नहीं देखा जा सकता।