निश्चित रूप से खतरे की घंटी है। लेकिन इन आंकड़ो के बावजूद संतोषजनक ये है मीडिया चाहे तो इसमें बदलाव ला सकता है। यूनिसेफ के डिप्टी रिजनल डायरेक्टर फिलिप कोरी ने रिपोर्ट स्टाप स्टंटिंग इन साउथ एशिया जो कि मातृ एवं बाल पोषण पर अंतरर्राष्टीय जरनल का विशेष अंक है, को जारी करते हुए कहा कि ‘‘मीडिया नियम तय कर सकती है। और इसकी बदौलत समुदाय तक संदेश पहुंचेगा और यह पता चल सकता है कि उस समूह तक इसका कितना लाभ पहुंचा जिन्हे इसकी वास्तव में जरूरत है। जैसा कि ज्ञात है कि ज्यादातर स्टंटिंग के मामले जन्म के 1000 दिन के भीतर ही देखे जाते हैं अर्थात गर्भधारण से दो वर्ष की उम्र तक। यह वह समय है जब बच्चों के विकास पर पोषाहारों की कमी और पर्यावरण के दबाव का विशेष प्रभाव होता है। इन दिनों में स्तनपान के महत्व पर विशेष जोर देने की आवश्यकता है। ऐसे हालात में मीडिया की भूमिका पर जोर देते हुए कोरी कहते हैं कि,‘‘ जब एक ग्रामीण महिला खेत में काम करते हुए लगातार रेडियो पर नवजात शिशु को स्तनपान कराने के फायदे के विषय में सुनती है, तो निश्चित तौर पर उसपर इसका प्रभाव होता है। ” या फिर जब मीडिया द्वारा स्टंटिंग से प्रभावित बच्चों के दिमाग के विकास को रेखांकित किया जाता है या इसकी तस्वीर दिखाई जाती है तो इसके जरिए समाज को इस समस्या से अवगत होने और इस कमी को दूर करने के लिए जोर-शोर से काम करने में मदद मिलता है।”
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