भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन के 11 मई, 2010 को रिटायर होने के बाद, अनुसूचित जाति के किसी भी जज को सुप्रीम कोर्ट का जज नहीं बनाया गया है। साथ ही, वर्तमान के सभी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों में कोई भी अनुसूचित जाति से नहीं है, जबकि देश की कुल जनसंख्या का 16 प्रतिशत अनुसूचित जाति में आता है। अनसूचित जनजातियों की स्थिति भी ऐसी ही है। पिछले 10 सालों में सर्वोच्च अदालत के जजों के नाम की सिफारिश करने वाले सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने सिर्फ तीन महिला उम्मीदवारों को चुना है। इनमें से दो- जस्टिस ज्ञान सुधा मिश्रा और जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई रिटायर हो चुकी हैं, जबकि जस्टिस आर बानुमठी अदालत में हैं.
इसी महीने, तीन हाईकोर्ट जजों- एएम खानविल्कर (मध्य प्रदेश), डीवाई चंद्रचूड़ (इलाहाबाद) और अशोक भूषण (केरल) को जस्टिस टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाले कोलेजियम की सिफारिश पर सुुप्रीम कोर्ट जज बनाया गया है। सुप्रीम कोर्ट के लिए जजों के नामों की सिफारिश करने वाले कोलेजियम के फैसलों से जुड़े नियम और योग्यताओं पर कोई साफ राय नहीं है। वर्तमान सुप्रीम कोर्ट में आठ हाईकोर्ट का कोई प्रतिनिधित्व ही नहीं हैं, जबकि कुछ को बाकियों से बहुत ज्यादा प्रतिनिधित्व दिया गया है। देश का सबसे बड़ा हाईकोर्ट- इलाहाबाद हाईकोर्ट जिसके जजों की स्वीकृत संख्या 160 है, मगर सुप्रीम कोर्ट में सिर्फ दो ही जज इलाहाबाद कोर्ट के हैं- जस्टिस आरके अग्रवाल और जस्टिस अशोक भूषण। इसके उलट 94 स्वीकृत जजों वाले बॉम्बे हाईकोर्ट के पांच जज सुप्रीम कोर्ट में हैं।
85 स्वीकृत जजोें वाले पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के दो जज, 75 स्वीकृत जजोें वाले मद्रास हाईकोर्ट के तीन जज सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश हैं। 60 स्वीकृत जजोें वालेे दिल्ली हाईकोर्ट के तीन जज देश की सबसे बड़ी अदालत में हैं, जबकि कलकत्ता के 58 स्वीकृत जजोें में सिर्फ एक और 53 स्वीकृत जजोें वाले मध्य प्रदेश हाईकोर्ट से दो प्रतिनिधि सुप्रीम कोर्ट में हैं। बड़े हाईकोर्ट में से, राजस्थान का कोई भी जज सुप्रीम कोर्ट में नहीं है। जबकि झारखंड, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय और सिक्किम हाईकोर्ट का कोई भी जज देश की सबसे बड़ी अदालत में नहीं है। इसके उलट 24 स्वीकृत जजोें वाले गौहाटी हाईकोर्ट से दो जज सुप्रीम कोर्ट के पैनल में शामिल हैं।