पूरे देश में कुकुरमुत्तों की तरह उगे निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों मे तकनीकी शिक्षा का बुरा हाल है। हाल ही में एक जांच में उत्तर प्रदेश के 608 इंजीनियिरिंग व मैनेजमेंट कॉलेजों में लगभग बीस हजार शिक्षक फर्जी पाए गए हैं। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय में लगभग इकतालीस हजार शिक्षण नियुक्त हैं। एक जांच में पता चला कि इनमें से लगभग बीस हजार शिक्षक फर्जी हैं। यह सही है कि विश्वविद्यालय इस दिशा में आवश्यक कदम उठा रहा है, लेकिन असली सवाल यह है कि तकनीकी शिक्षा की गिरती साख को बचाने के प्रयास क्यों नहीं हो रहे हैं।
हमें रुक कर सोचना होगा कि इंजीनियर तैयार करने की हड़बड़ी में कहीं हम बेरोजगारी की समस्या को बढ़ा तो नहीं रहे हैं? हालांकि अब इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रम से विद्यार्थियों का मोहभंग होने लगा है। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में इंजीनियरिंग कॉलेजों के लिए संपन्न हुई राज्य प्रवेश परीक्षा में बीटेक पाठ्यक्रम के लिए 1.42 लाख अभ्यर्थी शामिल हुए। यह आंकड़ा पिछले साल के मुकाबले काफी कम है। साल-दर-साल इस परीक्षा में शामिल होने वाले अभ्यर्थियों की संख्या कम होती जा रही है। पिछले दिनों अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआइसीटीइ) के पास देश भर के अनेक तकनीकी शिक्षण संस्थानों ने आवेदन किया था कि उन्हें ये संस्थान बंद करने की इजाजत दी जाए।
उत्तर प्रदेश तो एक उदाहरण भर है, इस समय अनेक राज्यों में इन संस्थानों को प्रबंधन और इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों के लिए छात्र नहीं मिल पा रहे हैं। इस समय देश में पैंतीस सौ से अधिक प्रबंधन संस्थान और चार हजार से अधिक इंजीनियरिंग कॉलेज हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पिछले कुछ सालों से इंजीनियरिंग तथा मैनेजमेंट कॉलेजों की सीटें नहीं भर रही हैं और ये संस्थान अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रहे हैं। ऐसे में यह विचार करना जरूरी है कि इंजीनियरिंग तथा मैनेजमेंट की डिग्रियों से छात्रों का मोहभंग क्यों हुआ है?
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