पानी के लिए पसीना बहा रहे आदिवासी…

खंडवा। भीषण जलसंकट से जूझ रहे लोगों को अपने हिस्से का पानी सहेजने की प्रेरणा नईदुनिया अभियान से मिल रही है। इसी कड़ी में खालवा क्षेत्र के दूरस्थ ग्राम बूटी में आदिवासी तालाब गहरीकरण के लिए श्रमदान में जुटे हैं। स्पंदन समाजसेवा समिति के सीमा प्रकाश ने बताया कि ग्राम बूटी पंचायत धामा का दूरस्थ ग्राम है। यहां 162 घर हैं। आबादी 553 है। इसमें 113 घर कोरकू जनजाति के हैं। ग्राम बूटी में मुख्य जलस्रोत पुराना तालाब है। इसी से अन्य जलस्रोत कुएं और हैंडपंप रिचार्ज होते थे। इस वर्ष दिसंबर में तालाब सूख चुका है।

ग्रामीण पानी की किल्लत से जूझने लगे। उन्हें मवेशियों को पानी पिलाने के लिए तीन-चार किलोमीटर दूर ताप्ती नदी पर ले जाना पड़ रहा है। महिलाओं दूर-दूर भटककर पानी लाती हैं। नईदुनिया अभियान से प्रेरणा लेकर ग्रामीणों ने इस समस्या से निपटने का संकल्प लिया। ग्राम की महिला स्वसहायता समूह ने निर्णय लिया कि वे श्रमदान से गांव के तालाब का गहरीकरण का काम करेंगी।

बुधिया, चिरोंजीलाल, कविता, साबूलाल और पार्वतीबाई नारायण जैसी महिलाओं ने अग्रणी भूमिका निभाई। उन्होंने निर्णय लिया कि इस तालाब का नाम मुठुआ बाबा तालाब होगा। गांव के महिला-पुरुष श्रमदान कर गहरीकरण करेंगे और आने वाले समय में वे इसका सामुदायिक संरक्षण करेंगे। साथ ही आजीविका के लिए मछली पालन भी करेंगे। ग्रामीणों ने सरपंच, उप सरपंच और स्पंदन समाज सेवा समिति से भी इस संबंध में चर्चा की और अपने निर्णय से अवगत कराया।

स्पंदन ने उनके इस स्वैच्छिक प्रयास को प्रोत्साहित करने के लिए स्वयंसेवकों को प्रतिदिन दो किलो चावल, पाव भर दाल और परिवार को कपड़े का सहयोग देने की जिम्मेदारी ली। यह भी स्पष्ट किया कि यह सहयोग कोई मजदूरी भुगतान नहीं है यह स्वैच्छिकता को बढ़ावा देने हेतु छोटा सा सहयोग है। इस कार्य के लिए सामग्री सहयोग गूंज नई दिल्ली से दिया गया है।

ग्राम बूटी में तालाब गहरीकरण का काम शुरू हो गया है। इसमें 35 महिलाएं और 18 पुरुष प्रतिदिन तीन से चार घंटे श्रमदान कर रहे हैं। वे तालाब से निकलने वाली मिट्टी भी संरक्षित कर रहे हैं जो अपने खेतों में डालेंगे। ग्रामीण इस वर्ष परंपरागत अनाज (देशी ज्वार, कुटकी, सावरिया) का रकबा बढ़ाने और फलदार पौधे लगाने की भी योजना बना रहे हैं।

 

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