आजादी के बाद पहली बार इस गुमनाम गांव ने डाला वोट

कोलकाता। गुरुवार को पांच राज्‍यों में चुनाव के नतीजे आए। पश्चिम बंगाल में एक बार फिर ममता बनर्जी ने शानदार जीत दर्ज की और मुख्‍यमंत्री बनने जा रहीं हैं। बंगाल के इस महासमर में जहां पूरे राज्‍य ने मतदान किया वहीं एक गांव ऐसा भी था जिसके बाशिंदों ने आजादी के बाद पहली बार वोट डाला। यह गांव है कूचविहार जिले का मशाल डांगा गांव।

भारत बांग्‍लादेश सीमा पर बसे इस गांव के लोग जब मतदान करने पहुंचे तो उनकी आंखों में नमी थी। और हो भी क्‍यों ना आखिरकार इतने सालों में पहली बार उन्‍हें पहचान मिली है और उन्‍होंने एक राज्‍य की सरकार के लिए मतदान किया। दरअसल मशाल डांगा वही गांव है जो पिछले भारत-बांग्‍लादेश के बीच हुए सीमा समझौते के बाद भारत की सीमा में आ गया।

इससे पहले तक यह गांव पिछले 41 साल से उस जमीन पर बना था जो ना तो भारत की सीमा में थी और ना बांग्‍लादेश की। दो देशों के बीच बनी जमीन पर बसे इस गांव में ना तो किसी के घर का पता था, ना पहचान और ना ही राष्‍ट्रीयता। आलम यह था कि इस गांव के बाशिंदों को दूसरे शहरों में जाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता था क्‍योंकि पहचान पत्र ना होने की वजह से ट्रेनों में टिकट तक नहीं मिल पाता था।

इस गांव के रहने वाले एक व्‍यक्ति के अनुसार अब तक हमारी कोई पहचान नहीं थी। कही पर आना-जाना मुश्किल था। अगर परदेस जाते तो वापस आना मुश्किल हो जाता। जो जाते उनकी चिट्ठी का इंतजार करते रह जाते क्‍योंकि हमारे गांव का कोई पता नहीं था इसलिए डाकिया भी नहीं आता था।

एक अन्‍य नागरिक के अनुसार भारत में 1952 से चुनाव हो रहे हैं लेकिन हमने कभी वोट नहीं डाला। 5 मई को पहली बार जब वोट के लिए मशीन का बटन दबाया तो आंखें छलछला गईं। ऐसा लगा जैसे सही मायने में हिन्‍दूस्‍तान की हवा में सांस ली है। गांव के लोग बड़े तैयार होकर मतदान करने गए। जब कतार में लगे थे तो ऐसा लगा जैसे हज पर आ गए हों।

यही नहीं गांव के जो लोग दूसरे राज्‍यों में काम करने गए थे वो भी वोट डालने आए क्‍यों‍क‍ि उनके लिए यह एतिहासिक दिन था। वोट डालते हुए हाथ कांप रहे थे की कहीं गलती ना हो जाए। बहरहाल इस गांव के लोगों ने तो लोकतंत्र के महायज्ञ में आहूती डाल दी अब जिम्‍मेदारी सरकार की है वो इसका विकास करे। गांव में स्‍कूल, अस्‍पताल जैसी सुविधाएं नहीं है जो सरकार को उपलब्‍ध करानी है।

 

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