इस लेख को लिखते हुए मुझे दुख होता है, लेकिन लिखना जरूरी है, क्योंकि जिस तरह अरुण शौरी ने पिछले सप्ताह मोदी सरकार की आलोचना की, वह मुझे निजी तौर पर बुरा लगा। मैंने जब से पत्रकारिता की दुनिया में पहला कदम रखा, तब से मैं शौरी साहिब का सम्मान करती आई हूं। संयोग से मुझे अखबार में पहली नौकरी इमरजेंसी लगने से एक महीना पहले मिली थी। उस दौर में अखबारों में सच बोलने पर इतना सख्त प्रतिबंध लगा कि राजनीतिक पत्रकारिता तकरीबन बंद हो गई थी। तब अरुण शौरी ने फासीवाद पर ऐसा लेख लिखा कि इंदिरा गांधी चाहतीं, तो उन्हें जेल भेज सकती थीं। हमने उस लेख को न सिर्फ पढ़ा, बल्कि गर्व से लोगों में चुपके से बांटने का काम भी किया।
दशकों से शौरी साहिब भारतीय पत्रकारिता के चमकते सितारे रहे हैं। कुछ समय तक इंडियन एक्सप्रेस में वह मेरे संपादक भी रहे, और मुझे गर्व होता था कि इतने ईमानदार, दिलेर व्यक्ति के साथ काम करने का मुझे अवसर मिला था। पत्रकारिता छोड़कर जब वह राजनेता और मंत्री बने, तो मेरा सम्मान उनके लिए कम नहीं हुआ, बल्कि बढ़ा ही। राजनीति में शौरी साहिब ने उसी ईमानदारी और साहस का परिचय दिया, जो पत्रकारिता में उनकी पहचान बन गई थी। सो पिछले सप्ताह जब करण थापर के शो में उनकी बातें सुनीं, तो बहुत दुख हुआ, क्योंकि उनकी आलोचना सच्ची कम, और निजी कड़वाहट से ज्यादा रंगी दिखी। कड़वाहट के कारण हम सब जानते हैं। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बन जाने के बाद शौरी साहिब को इतना यकीन था कि उनको या तो वित्त मंत्री बनाया जाएगा या रक्षा मंत्री। उन्होंने कई टीवी पत्रकारों के सामने इसका खुलकर इशारा भी किया था। मंत्री नहीं बनाए जाने के कारण ही शौरी साहिब प्रधानमंत्री के आलोचक बन गए थे, पर पहले उनकी आलोचना रचनात्मक लगती थी। अब उनकी आलोचना इतनी निराधार हो गई है कि उनकी बातों को मोदी के दुश्मन भी शायद गंभीरता से नहीं लेंगे।
उनका कहना है कि नरेंद्र मोदी ने पिछले दो वर्षों में एक भी अच्छा काम नहीं किया है। वह मानते हैं कि केंद्र सरकार के स्तर पर भ्रष्टाचार कम हुआ, पर भाजपा की राज्य सरकारों में अभी तक भ्रष्टाचार कम होने के आसार नहीं दिखते। क्या इसका दोष भी मोदी के सिर लगता है? आगे वह कहते हैं कि ‘घर वापसी’ और ‘लव जेहाद’ जैसी बातें सिर्फ इसलिए की जाती हैं कि चुनाव से पहले हिंदू-मुस्लिम तनाव बढ़े। इन चीजों को वह एक सोची-समझी साजिश का हिस्सा मानते हैं। क्या वह भूल गए हैं कि संघ के हिंदुत्व के सिपाही ये तमाम चीजें दशकों से करते आए हैं?
शौरी साहिब का सबसे संगीन आरोप है कि मोदी तानाशाह बन गए हैं और बिना किसी से सलाह लिए नीतियां बनाते हैं। सो उनकी विदेश नीति भी बेकार है, उनकी आर्थिक नीतियां बेअसर। जब मैंने उन्हें यह कहते सुना कि मोदी राज में लोगों के बुनियादी अधिकार कुचले जा रहे हैं, तब फासीवाद पर उनका वह लेख याद आया। क्या उन्हें वह दौर याद नहीं है, जिससे यह देश गुजरा है, जब इसदेश को दुनिया वाले भूखे-नंगों का देश कहते थे? माना कि मोदी सरकार ने गलतियां की हैं, माना कि अच्छे दिन अभी आए नहीं हैं, पर क्या इतना भी कहना मुश्किल था कि दिशा तो कम से कम ठीक है? साफ है कि जब विचारों में कड़वाहट आ जाती है, तो अच्छे-अच्छे बुद्धिजीवी भी बेकार हो जाते हैं।