इससे घास खाने के लिए शाकाहारी जीव आएंगे और उनके कारण तेंदुए को जंगल में ही भोजन मिलता रहेगा। गौरतलब है कि जिले में तीन-चार सालों में करीब पांच तेंदुओं को पकड़कर जिले के बाहरी क्षेत्र के जंगलों में छोड़ा जा चुका है। इस तरह के हालात में तेंदुओं की संख्या कम होती जा रही है। वन्य जीवों की गणना के अनुसार जिले में करीब 21 तेंदुए थे। इस समस्या से निपटने के साथ आम लोगों पर तेंदुए के हमले रोकने के लिए वन विभाग नई पहल करने जा रहा है।
क्या है ग्रास लैंड
जंगल में इस तरह के हालात नहीं रह गए हैं कि खरगोश, हिरण, नीलगाय या अन्य शाकाहारी वन्य जीव जीवित रह सकें। इसकी वजह यह है कि जिस तरह का ग्रास लैंड उन्हें मिलना चाहिए वह नहीं मिल पा रहा है। कभी प्राकृतिक रूप से ही घास के मैदान हुआ करते थे, लेकिन अब ये खत्म हो चले हैं। तेंदुओं को बचाने और उनकी भोज्य श्रृंखला को सुरक्षित रखने के लिए यह कदम उठाया जाएगा।
कृत्रिम रूप से यह ग्रास लैंड तैयार किया जाएगा। इसके लिए विशेष श्रेणी की घास का उपयोग करते हुए उसकी पैदावार ली जाएगी। जहां पानी की उपलब्धता है और बारिश के दिनों में जहां आसानी से घास पैदा की जा सकती है वहां पर यह प्रोजेक्ट लागू किया जाएगा। इसके लिए प्राथमिक रूप से जिले के मांडू सहित आसपास के क्षेत्र में करीब 100 हेक्टेयर जमीन का चयन किया गया है। वन विभाग ने इसके लिए प्रस्ताव बनाकर शासन को भेज दिया है।
क्या है भोज्य श्रृंखला
कभी अलग-अलग श्रेणी के वन्य जीव जंगल में रहा करते थे। ये जीव एक-दूसरे पर भोजन व्यवस्था के तहत निर्भर रहते थे। उदाहरण के तौर पर खरगोश, हिरण, चीतल जैसे शाकाहारी जीव घास-चारा खाकर जीवित रहते थे। इन वन्य जीवों का भक्षण तेंदुए सहित अन्य मांसाहारी जीव किया करते थे। इस तरह एक पूरी भोज्य श्रंखला के तौर पर काम होता था।