अदालतों में तारीख पर तारीख, सौ साल से एक केस में दांव-पेंच

रायपुर (निप्र)। अदालतों में जजों की कमी और मामलों के निपटारे में देरी कोई नई बात नहीं है, लेकिन जमीन-जायदाद के छोटे-मोटे विवाद में सौ बरस में फैसला नहीं हो पाना बड़ी बात है। हालात यह हैं कि अदालतों में ऐसी-ऐसी कानूनी दांव-पेंच और उलझनें हैं कि पीढ़ी दर पीढ़ी मामले चल रहे हैं और नतीजे नहीं निकल पा रहे हैं। अदालत के तारीख पर तारीख के चक्कर में राजधानी का एक परिवार भी ऐसे फंसा है कि 106 साल भी जमीन विवाद पर कानूनी लड़ाई चल रही है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मुरलीधर राठौर के परिवार के इस विवाद पर दो बार हाईकोर्ट और एक बार सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है।

पक्षकार राजदीप राठौर ने बताया कि 1897 में उनके दादा रामरतन राठौर ने कन्हई तेली के साथ मिलकर मथुरा प्रसाद से 3600 वर्गफीट जमीन खरीदी थी, जो राठौर चौक पर स्थित थी। जमीन की डिक्री 1910 में अदालत से हुई। बाद में कन्हई तेली के वारिसानों ने अपने हिस्से की जमीन जयंती लाल को बेच दी।

बेचते समय उन्होंने 1800 की जगह 1920 वर्गफीट जमीन बेच दी। जयंती लाल जमीन खरीदने के बाद 1939 में रायपुर से गुजरात चला गया और जब 1945 में वापस लौटा तो उसके हिस्से की आधी जमीन कन्हई तेली के वारिसानों ने किसी और को बेच दी। उक्त जमीन को दो बार बेच दिया गया।

अकेले राजधानी में लगभग 50 हजार केस लंबित हैं। इसमें से सैकड़ों केस दशकों से चल रहे हैं। केवल पेशी पर पेशी दी जा रही और पक्षकारों का जीवन कचहरी में बीत रहा है। आलम यह है कि पक्षकार की आने वाली पीढ़ी को इसके लिए सफर करना पड़ रहा है। राजधानी का राठौर परिवार इसका एक बड़ा उदाहरण है, जो जमीन विवाद को लेकर 106 साल से अदालत में केस लड़ रहा हैं। महिला उत्पीड़न के प्रकरणों को शीघ्र निराकरण के लिए खोले गए फास्ट ट्रैक कोर्ट में भी नतीजे नहीं आ रहे। पक्षकार और आरोपी कोर्ट के बाहर ही समझौता कर रहे हैं, जिसके चलते फास्ट ट्रैक कोर्ट के उद्देश्य अधूरा रह गया है।

आठ न्यायाधीशों के पद खाली

जिला अदालत में न्यायाधीश के आठ पद खाली हैं। लोवर कोर्ट में पांच और अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के दो पद खाली हैं, जिन पर दो साल से नियुक्ति नहीं हुई है। स्थायी लोक अदालत डेड़ साल से जजविहीन है, जहां आम लोगों के जीवन से जुड़ी समस्याओं को सुना जाता है।

 

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