सबसे तेज अर्थव्यवस्था के कुछ कड़वे सच- राजीव मिश्र

पिछले सप्ताह रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने वाशिंगटन में जो बयान दिया, उसे भारत में कई लोग नहीं पचा पाए। पहली नजर में यह बयान कुछ अनावश्यक-सा दिखता है। खासकर तब, जब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष साल 2016-17 के वित्तीय वर्ष के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर का अनुमान विश्व में सबसे ज्यादा 7.5 बता रहा हो और कई जगह भारत को चमकता सितारा माना जा रहा हो।

ऐसे में, राजन का यह कहना कि भारतीय अर्थव्यवस्था ‘अंधों में काना राजा’ है, कुछ अनर्गल लगता है। लेकिन यह एक कड़वी बात है और अर्थव्यवस्था की वास्तविक तरक्की चाहने वालों को ऐसी कड़वी बातें सुनने की आदत डाल लेनी चाहिए। वैसे भी, मीठी बातें भविष्य की राह पर बहुत काम नहीं आतीं। रघुराम राजन की हद से हद इस बात के लिए आलोचना हो सकती है कि उन्होंने यह बात कहने के लिए विदेशी मंच को चुना।

विदेशी पूंजी निवेश के मामले में धारणा यह है कि यहां हमारा मुकाबला चीन के साथ है। वास्तविकता काफी अलग है। 2014 में चीन में प्रति व्यक्ति 1,531 अमेरिकी डॉलर का विदेशी पूंजी निवेश हुआ था, जबकि भारत में यह निवेश मात्र 183 अमेरिकी डॉलर था। 2015 में स्थिति कुछ बेहतर अवश्य हुई, लेकिन चीन की तुलना में हम कहीं नहीं हैं। अर्थव्यवस्था की मजबूती आंकने का एक और मापदंड है- नई खोज और पेटेंट। ‘वर्ल्ड इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गेनाइजेशन’ के आंकड़ों के अनुसार, 2013 में अमेरिका ने 2,43,986 पेटेंट पंजीकृत कराए थे और 1,54 ,485 आंकड़े के साथ दूसरे नंबर पर था। भारत की तरफ से वर्ष 2013 में महज 4,388 पेटेंट पंजीकृत हुए। 2014 और 2015 में भी कहानी ऐसी ही रही है।

दूसरा महत्वपूर्ण मापदंड है- ‘मेजरिंग रेग्यूलर क्वालिटी ऐंड एफिशियंसी’। इनमें 11 क्षेत्रों, विषयों की गहराई से जांच की जाती है, जिसमें व्यवसाय की शुरुआत करने के नियम, कर-प्रणाली से लेकर उत्पादन, वितरण व अन्य सभी तरह की सुविधाओं के आकलन के बाद देश की ‘रैंकिंग’ की जाती है। विश्व बैंक इसके तहत 189 देशों का आकलन करता है। भारत 2015 में इसमें 142वें पायदान पर था। 2016 में हमारी स्थिति थोड़ी बेहतर हुई है और हम अब 130वें पायदान पर हैं।

 

अगले कुछ वर्षों में नरेंद्र मोदी की इच्छा इसे 50वें पायदान पर पहुंचाने की है। लेकिन क्या यह व्यावहारिक है? जिन 11 क्षेत्रों, विषयों का आकलन या जांच विश्व बैंक करता है, उनमें से ज्यादा क्षेत्र या विषय राज्य सरकारों के पास हैं। जीएसटी के मामले में जिस तरह से केंद्र सरकार को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, उसे देखते हुए भी इसे लेकर संदेह है। दूसरी तरफ, तरक्की में सबसे बड़ा योगदान देने वाले बैंक खुद परेशानी में हैं। हम अर्थव्यवस्था के तुलनात्मक अच्छेपन को तो देख रहे हैं, मगर उसे समस्या मुक्त करने के कदम नहीं उठा रहे।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

 

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