मानसून रहा मेहरबान तो 7.6 फीसद रहेगी रफ्तार

नई दिल्ली। रिजर्व बैंक का मानना है कि अगर मानसून मेहरबान रहा तो चालू वित्त वर्ष 2016-17 में देश की आर्थिक विकास दर 7.6 फीसद तक पहुंच सकती है। आरबीआई ने महंगाई की दर में अगले दो साल में वृद्धि की आशंका भी जताई है। हालांकि इस वर्ष में महंगाई की दर पांच फीसद के स्तर पर बने रहने की ही संभावना है।

चालू वित्त वर्ष की पहली कर्ज नीति का ऐलान करते हुए रिजर्व बैंक ने कहा है कि साल 2015-16 में अर्थव्यवस्था में काफी अनिश्चितता रही। लेकिन इस वर्ष में इसमें काफी सुधार की गुंजाइश दिख रही है। इस बार अभी तक मानसून सामान्य रहने की संभावना है। सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें और वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी) लागू होने के चलते अर्थव्यवस्था में मांग भी बढ़ेगी। यह माहौल आर्थिक रफ्तार बढ़ाने में मददगार रहेगा।

बीते दो साल में मानसून की बेरुखी के बाद रिजर्व बैंक को लगता है कि इस साल मानसून सामान्य रहा तो यह अर्थव्यवस्था को पुष्ट करेगा। ग्रामीण अर्थव्यस्था में मांग बढ़ेगी। कृषि उपज के बेहतर होने से बाजार में कीमतों में वृद्धि का दबाव कम होगा। इसका असर महंगाई की दर पर भी दिखेगा।

हालांकि अर्थव्यवस्था पर कच्चे माल की लागत घटने के बावजूद कॉरपोरेट सेक्टर में बढ़ता दबाव और बैंकिंग व्यवस्था में जोखिम लेने की ताकत कम होने व ग्लोबल विकास की निम्न दर घरेलू अर्थव्यवस्था की रफ्तार पर ब्रेक बनाए रखेगी। वित्त मंत्रालय ने चालू वित्त वर्ष के लिए 7 से 7.75 फीसद की विकास दर का अनुमान लगाया है। जबकि एशियाई विकास बैंक (एडीबी) का अनुमान 7.4 फीसद विकास दर का है।

महंगाई दर की चिंता

रिजर्व बैंक को चालू वित्त वर्ष में तो नहीं, लेकिन अगले दो वित्त वर्ष में महंगाई बढ़ने की चिंता है। केंद्रीय बैंक का आकलन है कि ओआरओपी और वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद बाजार में बढ़ने वाली मांग महंगाई दर को भी प्रभावित करेगी। अगले दो साल में इसके चलते महंगाई की दर में 1.50 फीसद का इजाफा तक देखने को मिल सकता है।

आरबीआई के मुताबिक, हाल की बेमौसम बारिश व जलाशयों के निम्न जल स्तर और तेल के दामों में वृद्धि ने महंगाई की चिंता को फिर से बढ़ाया है। हालांकि केंद्रीय बैंक का मानना है कि इस बार सैलरी संबंधी सिफारिशें लागू होने का प्रभाव महंगाई दर पर उतना नहीं होगा, जितना छठे वेतन आयोग के सुझाव लागू होने के वक्त हुआ था। वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने से सरकार पर 1.02 लाख करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा।

 

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