कुलदीप सिंगोरिया, भोपाल। मोबाइल ऑपरेटर कंपनियों के दबाव में प्रदेश सरकार चार साल बाद अपने ही फैसले को पलटने जा रही है। अब सरकार अस्पताल, स्कूल-कॉलेज और अन्य संस्थाओं के परिसर या इमारत पर मोबाइल टॉवर लगाने की पाबंदी को हटाएगी।
जिन स्कूल-कॉलेजों में अवैध टॉवर लगे हैं, उन्हें भी वैध किया जा सकेगा। । यही नहीं, खुली जगह और सार्वजनिक सुविधाओं के लिए आरक्षित जमीन पर भी मोबाइल टॉवर लग सकेंगे। हालांकि सरकार के इस फैसले से शहरी क्षेत्रों में कॉल ड्राप की समस्या से थोड़ी राहत मिल सकती है।
नगरीय विकास एवं पर्यावरण विभाग ने मप्र नगर पालिका (अस्थाई टॉवर का संस्थापन/सेल्यूलर मोबाइल फोन सेवा के लिए अधोसंरचना) नियम 2012 में बदलाव करने का प्रस्ताव मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पास भेजा है। विभाग के प्रमुख सचिव मलय श्रीवास्तव ने बताया कि मुख्यमंत्री से मंजूरी के बाद संभवत: मई से यह नियम लागू होगा।
गौरतलब है कि रेडिएशन की शिकायत के चलते स्कूल-कॉलेज और अस्पताल आदि स्थानों पर रोक लगाई थी। लेकिन मोबाइल कंपनियों ने कमजोर नेटवर्क और सिग्नल की कमी बताकर कॉल ड्राप की समस्या से निपटने के लिए सभी जगह अनुमति जारी करने का प्रस्ताव दिया था। इसी को आधार बनाकर सरकार ने नए प्रावधान किए हैं।
रेडिएशन की वजह से पहले लगाई थी पाबंदी
साल 2012 से पहले कोई नियम न होने की वजह से हर जगह टॉवर लग जाते थे। तब रेडिएशन की शिकायतें आने के बाद सरकार ने नियम भी बनाया और स्कूल-कॉलेज व हॉस्पिटल आदि में टॉवर्स पर रोक लगा दी थी।
यह हैं नए प्रावधान
– सभी स्थानों पर टॉवर लग सकेंगे। इसके लिए लैंडयूज में बदलाव की जरूरत नहीं होगी।
– 4 जी के लिए वायरलेस आधारित वायस एवं डेटा सेवाएं भी इस नियम के जद में होंगी।
– अफसर यदि टॉवर्स की परमिशन रिन्यू नहीं करता है तो उसे कारण बताना होगा।
– कंपनियां रिन्यूवल कराने में देरी करेंगी तो हर महीने 1 हजार रुपए का जुर्माना लगेगा
– अनुमति से हटकर टॉवर लगाने या सार्वजनिक सुरक्षा के लिए खतरा बने टॉवर्स को हटाने के लिए 90 दिन की बजाए 15 दिन का ही वक्त मिलेगा।
राजधानी में 296 टॉवर अवैध – 2012 में कानून बनने के बाद स्कूल-कॉलेज, हॉस्पिटल और ओपन स्पेस में लगे मोबाइल टॉवर अवैध हो गए थे। इनकी संख्या करीब 296 है। अभी शहर में 700 टॉवर्स स्थापित हैं।