रायपुर। शिक्षाकर्मियों की स्थानांतरण नीति से प्रदेश में दस हजार से ज्यादा जोड़े परेशान हैं। केंद्रीय सरकार के उपक्रमों, निजी कंपनियों में नौकरी करने वाले या खुद का व्यवसाय अथवा खेती करने वालों ने अगर शिक्षाकर्मी से विवाह किया है तो सरकार उनका मिलन नहीं कराएगी। राज्य सरकार ने हाल ही में शिक्षाकर्मी पति-पत्नी के स्थानांतरण के लिए जो नीति जारी की है उसके तहत सिर्फ राज्य सरकार के विभागों व निगम मंडलों में कार्यरत कर्मचारियों के प्रकरणों पर ही विचार किया जाना है।
ऐसे में जिन लोगों ने यह सोचकर शादी की थी कि आज नहीं कल पत्नी का स्थानांतरण मायके से ससुराल हो जाएगा वे निराश हैं। स्थानांतरण नीति के फंदे में फंसे कई जोड़े ऐसे हैं जिनके परिवार बिखर गए हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जो इस डर से परिवार नहीं बढ़ा रहे हैं कि दोनों अलग-अलग रहेंगे तो बच्चे की देखभाल कैसे होगी।
नईदुनिया से कई पीड़ित पतियों ने अपनी व्यथा सुनाई है, हालांकि सरकार का साफ कहना है कि शिक्षाकर्मी सरकारी कर्मचारी नहीं हैं और उनका स्थानांतरण नहीं किया जाएगा। राज्य सरकार के कर्मचारियों के लिए भी शिक्षाकर्मी पति या पत्नी को अपनी पदस्थापना वाले स्थान पर स्थानांतरित कराने का यह अंतिम अवसर है।
शिक्षाकर्मियों ने बताया कि सरकार हर बार स्थानांतरण की गाइड लाइन जारी करती है लेकिन आम तौर पर स्थानांतरण नहीं हो पाता है। दरअसल इसमें शर्तें जटिल होती हैं। जैसे इस बार सिर्फ राज्य सरकार के कर्मचारियों को यह सुविधा मिली है कि वे पत्नी या पति का अपनी पदस्थापना वाले स्थान पर स्थानांतरण करवा सकते हैं। इसके लिए 20 अप्रैल तक की तिथि तय की गई है। इसके बाद मामला संबंधित जिला पंचायतों की सामान्य सभा में जाएगा। बताया जाता है कि स्थानांतरण के आवेदनों को आमतौर पर जिला पंचायत से सहमति नहीं मिलती है। हालांकि जिन लोगों ने निजी काम या केंद्र सरकार की नौकरी करते हुए शिक्षाकर्मी से शादी की है उनके लिए यह अवसर नहीं है।
जिले के अंदर स्थानांतरण नहीं
अभी पति पत्नी प्रकरण में स्थानांतरण के लिए जो नीति जारी की गई है उसमें दूसरे जिले के अभ्यर्थी ही पात्र माने गए हैं। एक ही जिले के अंदर अगर पति पत्नी दो अलग-अलग विकासखंडों में पदस्थ हैं तो उन्हें राज्य सरकार की नौकरी में रहने के बाद भी अलग-अलग ही रहना होगा। हालांकि निजी काम करने वालों को इस स्थानांतरण नीति का कोई फायदा नहीं हो रहा। साल 2011 तक शिक्षाकर्मियों के आपसी स्थानांतरण हो जाते थे। नवंबर 2011 में सरकार ने नई नीति जारी की। इसके बाद से स्थानांतरण बंद हो गए।
केस 1- बेटी का कैसे प़ढ़ाऊं
जांजगीर-चांपा जिले के अनुसूचित जाति समुदाय के बीरबल कुमार बर्मन नवागढ़ में रहते हैं और दूसरों के खेतों में मजदूरी कर मां-बाप की देखभाल करते हैं। 5 साल पहले उनकी पत्नी की नौकरी शिक्षाकर्मी वर्ग-2 में लगी। पत्नी की पदस्थापना गांव से 70 किलोमीटर दूर जैजेपुर में है। उनकी एक 21 महीने की बेटी है। मां के न रहने पर बेटी उदास हो जाती है। वे सवाल उठाते हैं कि ऐसे में कैसे बेटी पढ़ाऊं?
केस 2- मां बाप बीमार बेटा परेशान
रायपुर केखोमेंद्र देशमुख ने चार साल पहले राजनांदगांव में शादी की थी। उनकी पत्नी वहीं शिक्षाकर्मी हैं। दोनों के अभी कोई बच्चे नहीं हैं लेकिन खोमेंद्र के माता-पिता बेहद बुजुर्ग हैं और जब वे अपने काम पर चले जाते हैं तो घर की देखभाल करने वाला कोई भी नहीं रहता। खोमेंद्र डॉक्यूमेंटरी मेकर हैं और अक्सर बाहर रहते हैं। वे चार साल से परेशान हैं लेकिन पत्नी का स्थानांतरण नहीं हो रहा है। एक अन्य मामले में दुर्ग के भूपेंद्र बेलचंदन खुद जनपद सदस्य हैं लेकिन वे अपनी शिक्षाकर्मी पत्नी का स्थानांतरण नहीं करा पा रहे हैं।
शिक्षाकर्मियों के स्थानांतरण के लिए अभी जो कार्रवाई चल रही है वह अंतिम अवसर है। इसके बाद शिक्षाकर्मियों के स्थानांतरण नहीं होंगे। हमारे पास दस हजार से ज्यादा आवेदन लंबित हैं पर हम कुछ नहीं कर सकते। सरकार शिक्षाकर्मियों को सरकारी कर्मचारी नहीं मानती इसलिए समस्या है। – पीसी मिश्रा, सचिव, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग