कल मैं यह सुनकर दंग रह गया कि कुछ लोग जगदलपुर के नजदीक रह रही मेरी सहोयगी बेला भाटिया के निवास के पास जमा हुए और पड़ोसियों को उनके खिलाफ भड़काने लगे. एकदम फिल्मी तर्ज पर इन लोगों ने उनके घर के नजदीक ही प्रदर्शन किया और "बेला भाटिया मुर्दाबाद" तथा "बेला भाटिया बस्तर छोड़ो" जैसे नारे लगाये.
इन लोगों ने एक पर्चा भी बांटा जिसमें हम दोनों के बारे लिखा था कि ये दोनों नक्सलवादी हैं और "देश को तोड़ना" चाहते हैं. प्रदर्शनकारियों में से कुछ ने बेला की मकान मालकिन से उसे निकाल बाहर करने को कहा. सौभाग्य से, बेला के पड़ोसी और मकान-मालकिन उसकी बहुत कद्र करते हैं और उन्होंने प्रदर्शनकारियों को तवज्जो नहीं दी.
जो कोई बेला और मुझे नक्लसलवादी मानता है वह निश्चित ही सच्चाई से कोसों दूर है. स्थानीय मीडिया (कैच न्यूज में भी) में प्रकाशित एक बयान में बेला इन आरोपों को खारिज करते हुए बस्तर के अपने काम की प्रकृति के बारे में स्पष्ट कर चुकी हैं. मेरे खुद के विचार और काम भी एक खुली किताब की तरह हैं. अगर प्रदर्शनकारियों ने इन बातों को जानने खोजने की जहमत उठायी होती तो वे ऐसा आरोप लगाने से पहले कई दफा सोचते.
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