देवभोग। जिंदगी अब खत्म कर देने की सोच रहा हूं। शासन-प्रशासन से भी इच्छामृत्यु मांगी थी, लेकिन वहां से भी कोई जवाब नहीं आया। मदद की उम्मीद अब शासन-प्रशासन से करना ही बेकार है। पांच सालों से बिस्तर पर पड़े-पड़े किसी तरह जिंदगी जी रहा हूं। आज जिंदगी को थामकर चलाने वाले मेरे पिता ने भी जिंदगी से हार मान ली और फांसी लगा ली। ये शब्द नम आंखों से लाटापारा निवासी अशोक सोनी का है।
अशोक ने पिता की मृत्यु के बाद शासन-प्रशासन को जमकर कोसा। अशोक की मानें तो उसके पिता चंद्रध्वज सोनी उसके इलाज के लिए शासन-प्रशासन से मदद की आस लिए बैठे थे, जब उनकी उम्मीद टूटी तो उन्होंने जीने का आस भी छोड़ दिया और मौत को गले लगाना ही उचित समझा। वहीं अब पिता की मृत्यु के बाद अशोक ने शासन-प्रशासन से अपील की है कि अब इस जिल्लत भरी जिंदगी से मुझे छुटकारा दिलवा दीजिए। मुझे और मेरी मां को इच्छामृत्यु दे दीजिए।
केवल आश्वासन से टूटे मेरे पिताजी
अशोक सोनी बताता है कि उसके इलाज के लिए उसके मां-बाप ने अपनी पूरी संपत्ति बेच डाली। इसके बाद भी पैसे की कमी हो गई। इसके बाद पिताजी ने हर जगह आवेदन डालकर सरकारी मदद के लिए जिम्मेदारों से गुहार लगाई। जब हर जगह से उम्मीद की किरण खत्म हो गई तो पिताजी मेरी स्थिति देखकर टूट गए। अशोक बताता है कि पिछले कुछ दिनों से उसके पिताजी उसकी स्थिति को लेकर बहुत ज्यादा चितिंत थे। अशोक उन्हें समझाता भी था लेकिन वे अशोक का दर्द देख नहीं पाते थे।
पिता ही चलाते थे परिवार
अशोक सोनी की स्थिति को देखकर मां बाप ने बच्चे को बेहतर इलाज देने के लिए अपनी 2 एकड़ खेत को बेचने का निर्णय लिया। इसके बाद खेत बेचकर अशोक का इलाज चलता रहा। इस दौरान पैसे खत्म हो जाने के चलते मां-बाप ने भी हाथ खड़ा कर लिया। किसी तरह अशोक के पिता ही जीविका चलाते थे। अब पिता के जाने के बाद अशोक के सामने जीविका चलाने की परेशानी आ खड़ी है।