पिछले हफ्ते भर से देश के अनेक राज्यों में व्यापक ओलावृष्टि व अतिवृष्टि के संदर्भ में यह याचिका और भी प्रासंगिक हो गई है। इस याचिका में स्वराज अभियान ने अनुरोध किया है कि फसल का नुकसान होने पर दिए जाने वाले मुआवजे की व्यवस्था बदली जाए। वर्तमान व्यवस्था में किस किसान को कितना मुआवजा मिलेगा यह पटवारी पर निर्भर है। राहत के आवंटन में बहुत देर व भारी भ्रष्टाचार है। मुआवजे की सरकारी दर इतनी कम है कि उससे किसान के खर्चे का एक छोटा अंश भी नहीं निकल पाता, केंद्र सरकार सिंचित खेती में 5400 रुपये व् असिंचित खेती में 2700 रुपये प्रति एकड़ की दर से मुआवजा देती है। जबकि भारत सरकार के अनुसार धान की फसल की लागत 17,000 रुपये, कपास की फसल की लागत 23000 रुपये, मूंगफली की 20,000 रुपये और सोयाबीन की लागत 11,000 रुपये प्रति एकड़ है। स्वराज अभियान ने सर्वोच्च न्यायालय से प्रार्थना किया है कि मुआवजा कम से कम इतना हो कि फसल की लागत निकल आए।
ये हैं मुख्य विन्दू
– स्वराज अभियान की 12 राज्यों व केंद्र सरकार के विरुद्ध देशव्यापी सूखे के बारे में याचिका पर विचार .
– फसल नुकसान होने पर मुआवजे की राशि बढ़ाकर उसे फसल की लागत से जोड़ने की प्रार्थना
– फसल नुकसान के आंकलन व आवंटन में व्यापक भ्रष्टाचार को रोकने की व्यवस्था बनाने का अनुरोध .
ज्ञात रहे स्वराज अभियान की ओर से जय किसान आंदोलन ने सूखे के सवाल पर अक्टूबर माह में संवेदना यात्रा किया था। योगेंद्र यादव के नेतृत्व में इस यात्रा में 10 राज्यों के सूखाग्रस्त जिलों में सूखे की स्थिति का जायज़ा लिया गया था। स्वराज अभियान ने बुंदेलखंड में सूखे की स्थिति पर विशेष सर्वें भी करवाए हैं। पिछले 4 महीने से चल रहे इस ऐतिहासिक मुकदमे की अंतिम सुनवाई 30 और 31 मार्च को पूरा होने की संभावना है।