हिमाचल में बढ़ने लगा विलुप्त हो रहे इस वन्य प्राणी का कुनबा

देशभर में विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुके सफेद गिद्धों की संख्या हिमाचल के वन विभाग ने सामान्य बजट और प्राकृतिक वास में सौ गुना तक बढ़ा दी है। प्रदेश के वन विभाग की इस उपलब्धि के सामने आने के बाद आसपास के प्रदेशों के वन अधिकारी इन पक्षियों के संरक्षण को लेकर संपर्क कर रहे हैं।

हिमाचल वन विभाग ने पहली बार साल 2004 में इनकी गणना शुरू की तो इनके सिर्फ 23 घोंसले मिले। इसके बाद विभाग ने कांगड़ा जिले के कुछ घने जंगली इलाकों में प्राकृतिक वास तैयार कर इन सफेद गिद्धों के संरक्षण का काम शुरू किया। करीब दस साल की मेहनत और निगरानी के बाद विभाग ने जब इनकी गणना की तो इन गिद्धों के घोंसलों की संख्या बढ़कर 288 हो गई। खास बात यह है कि विभाग ने इन पक्षियों को शुरू से ही प्राकृतिक वास में ही संरक्षित किया।

कांगड़ा में शुरू किया गया संरक्षण का काम- गिद्धों को संरक्षित करने के लिए पहली बार साल 2003.04 में प्रदेश के कांगड़ा जिले में शुरुआत की गई। मुख्य वन संरक्षक (वन्य जीव) एआरएम रेड्डी बताते हैं कि गिद्धों के अनुकूल वातावरण बनाने का प्रयास किया गया।

जिस क्षेत्र में यह संरक्षण कार्यक्रम चल रहा है, उसके आसपास के पूरे इलाके को सील कर दिया गया। घने जंगल में ऊंचे दरख्तों पर घोंसले बनाने के लिए उन्हें अनुकूल माहौल दिया गया। खाने-पीने पर भी निगरानी रखी गई। ध्यान रखा गया कि वह प्राकृतिक माहौल में अपनी शैली में जीना और बढ़ना सीख सकें।

हरियाणा के पिंजौर में भी चल रहा है संरक्षण प्रोग्राम- प्रदेश के प्रमुख मुख्य वन संरक्षक (वन्य जीव) एसएस नेगी बताते हैं कि हिमाचल के अलावा हरियाणा के वन विभाग ने बांबे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) के साथ मिलकर गिद्धों के संरक्षण को पिंजौर में जटायु कंजरवेशन ब्रीडिंग सेंटर स्थापित किया है।

हर साल इस पर करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं। इतने प्रयासों के बाद वहां गिद्धों की संख्या बढ़नी शुरू हो गई है, लेकिन प्राकृतिक वास में वहां के गिद्धों को अब तक छोड़ा नहीं जा सका है। यही कारण है कि अब हरियाणा, उत्तर प्रदेश जैसे प्रदेश हमसे काम करने के तरीके की जानकारी लेने को संपर्क कर रहे हैं।

कभी चार करोड़ से ज्यादा थी गिद्धों की संख्या- मुख्य वन संरक्षक वन्य जीव एआरएम रेड्डी बताते हैं कि 1980 के आसपास हर स्क्वायर किलोमीटर इलाके में 15 से 17 गिद्धों की संख्या रहती थी। दस साल पहले तक भारत और नेपाल में गिद्धों की संख्या करीब चार करोड़ से ज्यादा थी। वर्तमान में यह घटकर महज कुछ हजार रह गई है। अब हालात यह हैं कि इनकी साइटिंग होने पर भी उपलब्धि माना जाता है।

डिक्लोफेनिक ड्रग बना विलुप्त होने का कारण- अचानक विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुके गिद्धों की मौत की वजह से पहली बार राजस्थान के भरतपुर स्थित केओलादेओ नेशनल पार्क में सामने आई। यहां कई मरे गिद्धों का पोस्टमार्टम किया गया तो पता चला कि इनके विलुप्त होने का सबसे बड़ा कारण जानवरों के शरीर में होने वाला डिक्लोफेनिक ड्रग बना जो जानवरों को बीमारी के समय दियाजाता था। इसी ड्रग की वजह से गिद्ध जब जानवर के मांस को खाते थे तो उनका लीवर फेल हो जाता था।

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