कोलकाता। पश्चिम बंगाल के ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाले 80 फीसद मुस्लिम परिवार सिर्फ पांच हजार रुपए प्रतिमाह की मासिक आय पर अपना जीवन गुजारने को मजबूर हैं। यह आबादी गरीबी रेखा के नीचे खड़ी है।
इनमें से भी करीब 38.3 फीसद सिर्फ 2500 रुपए प्रतिमाह ही कमा पाते हैं, जो पांच लोगों के एक परिवार के आधार पर गरीबी रेखा का आधा भर है। यह अध्ययन 325 गांवों और 73 शहरी वार्डों में कुल जनसंख्या के मुकाबले मुस्लिमों की उपस्थिति के आधार पर किया गया है।
अमर्त्य सेन द्वारा स्थापित प्रातिची ट्रस्ट, गाईडेंस गिल्ड और एसोसिएशन स्नैप द्वारा संयुक्त रूप से तैयार की गई रिपोर्ट ‘लिविंग रियलिटीज ऑफ मुस्लिम इन वेस्ट बंगाल’ में कुछ चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं।
यह रिपोर्ट ऐसे समय में सामने आई है, जब पश्िचम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कह चुकी हैं कि उनकी सरकार अल्पसंख्यकों के विकास से जुड़े 99 फीसद काम पहले ही पूरे कर चुकी है। राज्य की मुस्लिम आबादी में 97 फीसद को ओबीसी के तहत पहचान दी गई है। ओबीसी को उच्च शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण है।
रिपोर्ट के कुछ तथ्य ऐसे हैं
पश्चिम बंगाल में रहने वाले सिर्फ 1.5 फीसद ग्रामीण मुसलमानों के पास निजी क्षेत्र में नियमित वेतन वाली नौकरी है।
सार्वजनिक क्षेत्र में नियमित वेतन वाली नौकरी तो और भी कम सिर्फ एक फीसद मुस्लिमों के पास ऐसी नौकरी है।
पूरे राज्य में सिर्फ 12.2 प्रतिशत मुसलमान परिवारों के घरों में जल निकासी की सुविधा है।
मुसलमानों के बीच शहरीकरण की दर 19 फीसद है, जबकि राज्यवार यह स्तर 32 फीसद है