दिशा तो सही लेकिन कुछ जरूरी बातों की अनदेखी – डॉ. भरत झुनझुनवाला

बजट में कई अच्छी घोषणाएं की गई हैं जैसे ग्रामीण विद्युतीकरण एवं सड़कों में निवेश में वृद्धि, गरीबों को गैस सिलेंडर उपलब्ध कराना, जिले स्तर पर डायलिसिस की व्यवस्था करना, नए कर्मियों के लिए कंपनियों को प्रॉविडेंट फंड में अनुदान देना, हाईवे, रेल, पोर्ट एवं एयरपोर्ट में निवेश बढ़ाना इत्यादि। वित्त मंत्री ने इनकम टैक्स में छूट दी है, जबकि एक्साइज ड्यूटी में वृद्धि की है। यह कदम सही दिशा में है। इनकम टैक्स में छूट के कारण करदाता के हाथ में आय अधिक होगी। एक्साइज ड्यूटी में वृद्धि के कारण बाजार में माल के दाम बढ़ेंगे और खपत कम होगी। करदाता की प्रवृत्ति निवेश अधिक और खपत कम करने की होगी, जो सही दिशा में है। इनकम टैक्स में छूट देने से सरकार की आय में गिरावट आएगी, जबकि एक्साइज ड्यूटी में वृद्धि से सरकार को अधिक राजस्व मिलेगा। इन दोनों के सम्मिलित प्रभाव से सरकार को 19,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आमदनी की आशा है। वित्तमंत्री ने तमाम घोषणाएं की हैं, जैसे विद्युतीकरण, ग्राम सड़क योजना तथा सड़क, रेल, पोर्ट एवं एयरपोर्ट में निवेश में वृद्धि। जब आय में कुल वृद्धि 19,000 करोड़ रुपये है, जबकि वेतन आयोग आदि का बोझ 200 लाख करोड़ से अधिक है तो इन योजनाओं के लिए धन कहां से आएगा?

वित्त मंत्री अभी भी विश्व बैंक द्वारा बढ़ाए गए वित्तीय घाटे के मंत्र को पकड़े हुए हैं। विश्व बैंक का उद्देश्य विकसित देशों में बैठे अपने आकाओं के स्वार्थों को बढ़ावा देना है। विश्व बैंक लगातार प्रयास करता रहा है कि विकासशील देशों की सरकारें जरूरी हो तो भी निवेश घटाएं, परंतु हर हाल में अपने कुल खर्चों को घटाएं। विश्व बैंक का कहना है कि सरकारी निवेश में कटौती की भरपाई निजी निवेश में वृद्धि से हो जाएगी। वैश्विक तेजी के समय यह फॉर्मूला कतिपय सफल हो सकता था। बहुराष्ट्रीय कंपनियां अगर मालामाल हों तो भारत में निवेश को आ सकती थीं। पर वैश्विक मंदी के माहौल में यह फॉर्मूला घातक होगा। वित्तीय घाटे पर नियंत्रण के चक्कर में सरकारी निवेश में कटौती होगी। वैश्विक मंदी के चलते विदेशी निवेश भी नहीं आएगा।

वित्तीय घाटे पर नियंत्रण का एक उद्देश्य महंगाई पर काबू पाना है। किंतु महंगाई पर नियंत्रण करते हुए सरकारी निवेश बढ़ाना संभव था। एक उपाय था कि सातवें वेतन आयोग के कारण बढ़े हुए वेतन को इंफ्रास्ट्रक्चर बांड के रूप में दिया जाता। कर्मियों को बढ़ा वेतन मिल जाता और और देश को इंफ्रास्ट्रक्चर। दूसरा उपाय था कि विश्व बैंक तथा न्यू डेवलपमेंट बैंक जैसी संस्थाओं से अधिक मात्रा में ऋण लेकर सड़क, रेल, पोर्ट तथा एयरपोर्ट में निवेश किया जाता।

वित्त मंत्री ने घोषणा की है कि सार्वजनिक उद्योगों के पास उपलब्ध सरप्लस जमीन की बिक्री करके नए प्रोजेक्टों में निवेश को धन एकत्रित किया जाएगा। हमारे पूर्वजों ने अपनी गाढ़ी कमाई से इन सार्वजनिक इकाइयों को स्थापित किया था। सार्वजनिक इकाइयों ने भ्रष्टाचार, नौकरशाही एवं अकुशलता में इस पूंजी को बर्बाद कर दिया। यह बर्बादी अनवरत चालू रहे इसलिए वित्त मंत्री चाहते हैं कि जमीन बेचकर इनके खर्चों को पोषित किया जाता रहे। इसी प्रकार सरकारी बैंकों में व्याप्तभ्रष्टाचार के कारण इनके द्वारा दिए गए लोन बड़ी मात्रा में खटाई में पड़ गए हैं। इस समस्या का वित्त मंत्री ने उपाय निकाला है कि इन बैंकों में सरकार और निवेश करे जिससे भ्रष्टाचार अनवरत चलता रहे। वित्त मंत्री को चाहिए था कि कुछ संवेदनशील क्षेत्रों को छोड़कर सभी सरकारी उपक्रमों तथा बैंकों की आमूल बिक्री कर देते। निजीकरण से मिली रकम का उपयोग सड़क आदि में नए निवेश करने को किया जा सकता था।

वित्त मंत्री ने घोषणा की है कि प्लान और नॉन प्लान में सरकारी खर्चों के वर्गीकरण को समाप्त कर चालू तथा पूंजी खर्चों में वर्गीकरण किया जाएगा। प्लान और नॉन प्लान के वर्गीकरण के कारण नए प्रोजेक्टों को धन का आवंटन किया जाता था, क्योंकि नए प्रोजेक्ट प्लान खर्च में गिने जाते हैं। पुराने प्रोजेक्टों की देखरेख पर खर्च कम किया जाता था, क्योंकि ये नॉन प्लान में गिने जाते थे। अत: इस वर्गीकरण को समाप्त करना सही है। लेकिन चालू तथा पूंजी खर्चों के वर्गीकरण में भी यही समस्या है। जैसे प्राइमरी हेल्थ सेंटर में दवा को उपलब्ध कराना चालू खर्च में जाता है, जबकि नए प्राइमरी हेल्थ सेंटर को स्थापित करना पूंजी खर्चों में गिना जाता है। सरकार द्वारा गठित विजय केलकर कमेटी ने सुझाव दिया था कि वर्गीकरण प्राइवेट तथा पब्लिक गुड्स में किया जाना चाहिए। जैसे शिक्षा, इंदिरा आवास, स्वास्थ्य उपचार आदि प्राइवेट गुड्स हुए। इन सुविधाओं को व्यक्ति बाजार से व्यक्तिगत स्तर पर हासिल कर सकता है। लेकिन पुलिस, सड़क, रक्षा, मेट्रो तथा मलेरिया पर रिसर्च को व्यक्तिगत स्तर पर हासिल नहीं किया जा सकता है। सरकार का पहला काम पब्लिक गुड्स को मुहैया कराने का है। सड़क उपलब्ध होगी तो व्यक्ति की आय बढ़ेगी और वह इंग्लिश मीडियम स्कूल में बच्चे को स्वयं भेज सकता है। वित्त मंत्री को चाहिए था कि इस वर्गीकरण को अपनाते। अगर अर्थव्यवस्था के मूल बिंदुओं पर ध्यान दिया जाता तो सोने में सुहागा होता।

(लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं

 

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