जेब में पैसा तो बाजार में रौनक – हर्षवर्धन नेवतिया

मोदी सरकार कोई दो साल से सत्ता में है और अर्थव्यवस्था को विकास के पथ पर अग्रसर करने की उसकी प्रतिबद्धता पर संदेह नहीं किया जा सकता। कारोबारी वर्ग ने भी सरकार के सुधारवादी कदमों को सराहा है। लेकिन अब जरूरत इस बात की है कि हम यह आकलन करें कि सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न् कदमों से हमें कितना लाभ हुआ है। यह सच है कि अर्थव्यवस्था में निरंतरता लाना एक लंबी प्रक्रिया का हिस्सा है और यह एक-दो दिन में नहीं हो सकता, इसके बावजूद कुछ हद तक सुधारों का असर तो नजर आने लगा है। अर्थव्यवस्था का माहौल सुधरा है और मेक इन इंडिया व डिजिटल इंडिया जैसे कार्यक्रमों से निवेशकों में उत्साह का संचार हुआ है। प्रशासनिक बाधाओं से निजात पाने की कोशिशें सरकार की तरफ से की जा रही हैं, जो कि सराहनीय है। ईज ऑफ डुइंग बिजनेस पर सरकार का खासा जोर है और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में साफ इजाफा हुआ है।

आज बहुप्रतीक्षित आम बजट संसद में पेश किया जाएगा। बजट-पूर्व परामर्शों और सुझावों का परंपरागत दौर भी पूरा हो चुका है। बजट में कई बिंदुओं पर ध्यान रहेगा, लेकिन कुछ खास बिंदुओं को मैं रेखांकित करना चाहूंगा।

हमारी अर्थव्यवस्था एक दुष्चक्र में फंसी हुई है, जिसका नाम है कम निवेश-कम मांग-कम विकास। ब्याज दरें कारोबारियों के लिए चिंता का अहम विषय रही हैं और इसी को दृष्टिगत रखते हुए रिजर्व बैंक ने अभी तक रेपो रेट में 125 बेसिक प्वॉइंट्स की कटौती की है। इसके बाद बैंकों ने भी अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए बेस रेट्स में कटौती की। लेकिन इतना ही काफी नहीं। सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों के लिए रीकैपिटलाइजेशन योजनाओं को गति देने की जरूरत है ताकि बैंक अपने ग्राहकों के लिए प्रभावी रूप से पॉलिसी रेट कट कर सकें। इसके अलावा सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों की संकटग्रस्त संपत्तियों के बारे में विचार करना होगा। क्यों ना एक राष्ट्रीय संपत्ति प्रबंधन कंपनी (नाम्को) का गठन किया जाए, जो कि एनपीए के संकट से जूझ रही बैंकों की बैलेंस शीट का हिसाब ले सके। एनपीए के कारण बड़ी मात्रा में पैसा अनुत्पादक रूप से फंसा हुआ है, यह निकलेगा तो बैंकें कर्ज देने और ब्याज दरें घटाने, दोनों के लिए बेहतर स्थिति में होंगी।

साथ ही सरकार को एक उपयुक्त पर्सनल टैक्स फ्रेमवर्क बनाने की भी जरूरत है। उसे यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि उपभोक्ताओं के हाथों में खर्च करने के लिए पर्याप्त रकम रहे। इससे घरेलू मांग में भी उछाल आएगा और अर्थव्यवस्था गति पकड़ेगी। सरकार को यह नहीं भूलना चाहिए कि रोजगार के अवसर सृजित करने के उसके वादे ने उसे सत्ता दिलाने में अहम भूमिका निभाई है और यह उसकी सबसे बड़ी जिम्मेदारियों में से है। आज देश के पास बहुत बड़ी युवा आबादी है, जिसके डेमोग्राफिक डेविडेंड की बातें हम अकसर सुनते रहते हैं। सरकार ने इस दिशा में कोशिशें तो की हैं, लेकिन युवा बेरोजगारों की फौज को देखते हुए कहना पड़ता है कि अभी इस दिशा में बहुत कुछ और किए जाने की दरकार है।

स्टार्टअप इंडिया एक सराहनीय प्रयास है। इसमें सरकार केलिए मेरी तरफ से दो सुझाव हैं। पहला यह कि सरकार स्टार्टअप बिजनेस को छूट देने वाली आयकर योजना प्रारंभ कर सकती है। इसे स्टार्टअप रिबेटेड टैक्स या केवल स्टार्ट कहा जा सकता है। इससे निश्चित ही स्टार्टअप्स को प्रोत्साहन मिलेगा। दूसरे, सरकार को एंजेल इंवेस्टर्स और वेंचर कैपिटलिस्ट्स को भी छोटे स्टार्टअप्स में निवेश के लिए प्रोत्साहित करने के लिए करों में छूट प्रदान करनी चाहिए। कई देश ऐसा करते हैं। अमेरिका तो स्टार्टअप्स में पैसा लगाने वाले निवेशकों की आमदनी पर सौ प्रतिशत तक की कर-छूट प्रदान करता है। वह लघु उद्योगों में निवेश करने वालों को रोल-ओवर भी मुहैया कराता है और निवेश पर होने वाली क्षतियों की भरपाई के लिए सौ प्रतिशत तक की छूट भी देता है। सिंगापुर में इसी तरह से निवेशकों को प्रोत्साहित करने वाली योजनाएं हैं। स्टार्टअप बिजनेस को इसी तरह बढ़ावा मिलता है।

कराधान प्रणाली को सरल-सुगम बनाना सरकार के समक्ष मौजूद एक अन्य चुनौती है। उम्मीद है कि बजट में कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती की जाएगी। अल्पकालीन अवधि के लिए लगाए गए विभिन्न् सरचार्जों और उपकरों को भी अब समाप्त करने की जरूरत है। बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं के लिए जितने पैमाने पर धनराशि की दरकार है, उसको ध्यान में रखते हुए सरकार को नेशनल इंवेस्टमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर फंड जैसा कोई कोष बनाने की जरूरत है। सबसे अंत में यह कि कोयला, उर्वरक, रक्षा उत्पादों आदि के आयात पर निर्भरता घटाने के लिए घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने की जरूरत है। वैश्विक आपूर्ति तंत्र में भारत मजबूती से उभरे, यह हमारे लिए बहुत जरूरी है। शुरुआत तो हो चुकी है, आज पेश किए जाने वाले बजट से सरकार की दशा-दिशा का भी पता चल जाएगा।

 

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