चंद्रशेखर बड़सीला, बागेश्वर। अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय में दो बार विधायक रहे पूरन चंद्र आर्या की पत्नी को पेंशन पाने में 16 साल तक दौड़ लगानी पड़ी। कभी लखनऊ तो कभी देहरादून में सरकार और शासन से फरियाद करते-करते उनकी पत्नी माया थक गईं।
तब क्षेत्रीय विधायक ने उन्हें न्याय दिलाने का जिम्मा अपने हाथ में लिया। मुख्यमंत्री हरीश रावत तक बात पहुंची। उन्होंने माया को पेंशन देने की सहमति जताई। पेंशन और सरकारी सुविधाओं के लिए आम आदमी को कितने पापड़ बेलने पड़ते होंगे, यह बात इस कहानी से समझी जा सकती है।
सुरक्षित सीट बागेश्वर से 1977 में जनता पार्टी और 1989 में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर विधायक चुने गए पूरन चंद्र आर्य के परिजन आर्थिक विपन्नता के बीच जीवन गुजार रहे हैं। उत्तराखंड राज्य का गठन वर्ष 2000 में हुआ। इसी दौरान पूर्व विधायक आर्य का निधन हो गया। उनके निधन के बाद पत्नी व पुत्र के समक्ष रोजी रोटी का संकट पैदा हो गया।
उत्तराखंड में भाजपा व कांगे्रस की बारी-बारी से सरकारें बनीं, तब भी पूर्व विधायक के परिवार को न्याय नहीं मिला। माया देवी व पुत्र अशोक वर्धन ने न्याय की गुहार लगाते-लगाते हार ही मान ली थी। इस बीच कपकोट के विधायक ललित फर्स्वाण ने पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने के लिए मुख्यमंत्री हरीश रावत से मुलाकात कर पेंशन शुरू करने की मांग की।
मुख्यमंत्री ने पूर्व विधायक आर्य के परिवार के साथ हमदर्दी जताते हुए पेंशन देने की घोषणा की। इस बाबत सीएम ने उन्हें पत्र भेजकर भी सूचित किया है।