खुली अर्थव्यवस्था, खर्च करने के लिए तैयार विशाल आबादी और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था-ये सारी चीजें एक ऐसे भारत का निर्माण कर रही हैं, जहां व्यापार करने की अपार संभावनाएं हैं। इसके बावजूद आंकड़ों में अभी भारत बहुराष्ट्रीय कंपनियों के व्यापार के लिए आदर्श देश नहीं बन पाया है। मॉर्गन स्टेनली की ताजा रिपोर्ट में कहा गया कि भारत के शहर अब भी मूलभूत सुविधाओं के अभाव से जूझ रहे हैं। इस रिपोर्ट में देश के दौ सौ शहरों का अध्ययन किया गया है। इन शहरों में से छियासठ प्रतिशत के पास अब भी कोई सुपर मार्केट नहीं है। कोल्ड स्टोरेज की पर्याप्त संख्या न होने के कारण ज्यादातर लोग दैनिक जीवन से जुड़ी चीजों की खरीद-फरोख्त आसपास की दुकानों से खरीदते हैं। पचहतर प्रतिशत भारतीय शहरों में पांच सितारा सुविधाओं से युक्त होटल नहीं है।
अर्थव्यवस्था तेज गति से तभी दौड़ेगी, जब निवेश तेजी से होगा, और विदेशी निवेश तभी तेजी से बढ़ेगा, जब आधारभूत सुविधाओं की उपलब्धता होगी। हमारे शहर आधारभूत सुविधाओं के अभाव का सामना कर रहे हैं। अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए सरकार ने मेक इन इंडिया और स्मार्ट सिटी पर काम शुरू किया।
लेकिन इन कार्यक्रमों की सफलता कई बातों पर निर्भर करती है। सबसे पहला मुद्दा है एक ऐसी जगह से आधारभूत ढांचे का विकास, जहां से व्यवसाय का विकास किया जा सके। इसमें सड़क,बिजली और रेल व्यवस्था का नेटवर्क जरूरी है। पर भारत अब भी पर्याप्त सड़कें नहीं बना पाया है। बंदरगाहों की संख्या और रेल नेटवर्क का विस्तार भी उस गति से नहीं हुआ है, जिसकी उद्योग जगत को दरकार है।
दो साल पहले पूर्वोत्तर के किसानों को अपनी बढ़िया फसल को औने-पौने दाम पर इसलिए बेच देनी पड़ी थी, क्योंकि परिवहन सुविधा न होने के कारण उसे बाहर भेजना संभव नहीं था। आधारभूत सुविधाएं एक दिन में विकसित नहीं हो सकतीं। इसके लिए सरकार को प्रयास करना होगा। फिर यह निवेश महज आर्थिक न होकर सामाजिक और ग्रामीण भी होना चाहिए। आर्थिक जगत टैक्स सुधारों का लंबे समय से इंतजार कर रहा है, जिनमें समान वस्तु एवं सेवा कर, इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स पॉलिसी और बैंकरप्सी कोड जैसे अहम सुधार शामिल हैं, जिन पर लंबे समय से फैसला लंबित है। पिछले साल विश्व बैंक की इज ऑफ डूइंग बिजनेस इंडेक्स में भारत 12 स्थान चढ़कर 130 वें नंबर पर पहुंचा, फिर भी हमारा देश अभी मैक्सिको और रूस से काफी पीछे है, जो क्रमश: 38वें और 51वें स्थान पर हैं।
एक और चुनौती, जिससे भारत जूझ रहा है, वह है, विकास की इस दौड़ में गांवों के पीछे छूट जाने का भय। मेक इन इंडिया में होने वाला अधिकांश निवेश शहर या उन जगहों पर केंद्रित है, जहां आधारभूत ढांचा पहले से उपलब्ध है। ऐसे में हमारे गांव उस तेजी से आगे बढ़ने से वंचित रह जाएंगे, क्योंकि आधारभूत ढांचे का सबसे बुरा हाल तो वहीं है।
शहर केंद्रित विकास का यह मॉडल यहां कितना सफल होगा, यह देखना अभी बाकी है, क्योंकि विकास का तात्पर्य समेकित विकास से है, न कि सिर्फ शहरों के विकास से है। मेक इन इंडिया की सफलता इसीबात पर निर्भर करती है कि सरकार व्यवस्थागत खामियों को कितनी जल्दी दूर करती है और आधारभूत सुविधाएं कितनी जल्दी उपलब्ध कराती है।