अगर सरकार अपने इरादे में कामयाब हो जाती है, तो यह बैंकिंग क्षेत्र में हाल के वर्षों में सबसे बड़ा सुधारवादी कदम होगा। लेकिन राजग सरकार के लिए इसके समर्थन में राजनीतिक सहमति जुटाने में काफी चुनौती का सामना करना पड़ेगा। वजह यह है कि इस फैसले को लागू करने के लिए दो दर्जन कानूनों में संशोधन करना होगा। लेकिन इससे फंड की भारी किल्लत से जूझ रहे सरकारी बैंकों को विदेश से अच्छी खासी राशि मिल सकती है।
सरकारी बैंकों को अगले चार वर्षों में 2.40 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि की जरूरत है। इसमें सरकार ने 70 हजार करोड़ रुपये उपलब्ध कराने का एलान किया है। शेष राशि बैंकों को स्वयं ही जुटानी है। अगर एफडीआई की सीमा बढ़ जाती है, तो यह काम आसान हो जाएगा।
वित्त मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक पिछले दो वर्षों में लगभग अधिकांश क्षेत्रों में एफडीआई सीमा बढ़ाई जा चुकी है। लेकिन बैंकिंग क्षेत्र में अभी तक विदेशी निवेश को लेकर कोई बड़ा फैसला नहीं किया गया है। सरकारी बैंकों में केंद्र की एफडीआई सीमा 51 फीसद करने का फैसला हुआ है तो सरकार को महसूस हो रहा है कि विदेशी वित्तीय संस्थानों को भी इनमें ज्यादा निवेश का मौका मिलना चाहिए।
मौजूदा नियमों के मुताबिक सरकारी बैंकों में बाकी 49 फीसद हिस्सेदारी घरेलू वित्तीय संस्थानों को हस्तांतरित की जा सकती है। लेकिन इसमें विदेशी निवेश की सीमा 20 फीसद से ज्यादा नहीं हो सकती है। वैसे भी निजी बैंकों में विदेशी निवेश से जुड़े नियमों को पिछले वर्ष काफी उदार बना दिया गया था। इन बैंकों में देशी और विदेशी संस्थागत निवेशकों व विदेशी निवेशकों को 74 फीसद तक हिस्सेदारी रखने की छूट दी गई थी।