फिर लौटेगी सार्वजनिक उपक्रमों के विनिवेश की नीति

नई दिल्ली। करीब एक दशक बाद सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण की नीति को फिर से सक्रिय किया जा रहा है। मुनाफा अर्जित करने वाले सार्वजनिक उपक्रमों समेत सभी पीएसयू की रणनीतिक बिक्री को लेकर सरकार जल्द एक व्यापक नीति लेकर आ सकती है। इस संबंध में बजट में भी एलान हो सकता है।

प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राजग सरकार के वक्त 1999 से 2004 के दौरान कई सार्वजनिक उपक्रमों में रणनीतिक विनिवेश हुआ था। लेकिन 2004 में केंद्र में संप्रग की सरकार बनने के बाद अगले दस वर्ष तक विनिवेश में इस नीति को छोड़ केवल अल्पमत इक्विटी हिस्सेदारी के विनिवेश पर जोर रहा। लेकिन अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार फिर से रणनीतिक विनिवेश को लेकर आगे बढ़ने पर विचार कर रही है।

विनिवेश सचिव नीरज कुमार गुप्ता के मुताबिक रणनीतिक विनिवेश की नई नीति व्यापक होगी और उसमें बहुमत हिस्सेदारी की बिक्री, कीमत तय करने के आधार और प्रक्रिया का पूरा ब्यौरा होगा। नीति में रणनीतिक विनिवेश के प्रत्येक पहलू का ध्यान रखा जाएगा। यहां तक कि रणनीतिक विनिवेश के लिए पीएसयू की पहचान किए जाने की प्रक्रिया तक का ब्यौरा शामिल किया जाएगा।

हालांकि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने साल 2015-16 के बजट में भी रणनीतिक विनिवेश के जरिए 28500 करोड़ रुपये राजस्व जुटाने का लक्ष्य रखा था। लेकिन इस वर्ष रणनीतिक विनिवेश पर कोई स्पष्ट नीति के अभाव में सरकार इस पर आगे नहीं बढ़ पाई। इन्हीं दिक्कतों को ध्यान में रखकर सरकार अब अगले वित्त वर्ष में विनिवेश को राजस्व के एक बड़े स्त्रोत के रूप में इस्तेमाल करने पर विचार कर रही है।

पूर्व की राजग सरकार ने अपने कार्यकाल में 2001 से 2004 के बीच बाल्को, हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड, सीएमसी, आइटीडीसी, वीएसएनएल, मारुति सुजुकी, जैसॉप, होटल कॉरपोरेशन और इंडियन पेट्रोकेमिकल्स में रणनीतिक विनिवेश के जरिये सरकारी इक्विटी की बिक्री की गई थी।

 

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