राज्य में जैविक खाद की खरीद में गोलमाल का आरोप है। किसानों को गेहूं का ‘बीमार’ बीज सप्लाई करने के बाद अब एक नये मामले का खुलासा हुआ है। गेहूं, सरसों, बाजरा, गन्ना और सूरजमुखी के लिए किसानों को दी गई जैविक खाद में फर्जीवाड़ा सामने आया है। करनाल और हिसार सहित कई जिलों में इस खाद के सैम्पल फेल हो गए हैं। खाद सप्लाई करने वाली कंपनी के पते को लेकर भी विवाद है।
मामला मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर तक पहुंच चुका है। विधानसभा की अकाउंट्स कमेटी को भी शिकायत की गई है। राज्य के कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ के नोटिस में भी मामला लाया गया है। जैविक खाद की खरीद में कथित धांधली पिछले 2 वर्षों से होने की शिकायतें सरकार तक पहुंची हैं। पिछले वर्ष हैफेड के माध्यम से प्राइवेट कंपनी से जैविक खाद खरीदी गई थी। कृषि मंत्री धनखड़ से बात करने की कोशिश की लेकिन संपर्क नहीं हो सका। कृषि विभाग के निदेशक को भी फोन किया लेकिन उन्होंने रिसीव नहीं किया।
बाहर कुछ, अंदर कुछ : कंपनी ने 50-50 किलोग्राम के खाद के जो कट्टे सप्लाई किये, उन पर लिखा तो जैविक खाद ही था लेकिन इसकी संरचना का ब्योरा नहीं दिया गया। नियमों में स्पष्ट है कि कंपनी को कट्टे के ऊपर ही मिश्रण का विवरण देना होता है। जैविक खाद पशुओं के गोबर पर आधारित होती है लेकिन जो खाद सप्लाई की गई, वह सिटी कम्पोस्ट पर आधारित थी। इस वर्ष सरकार ने हरियाणा भूमि सुधार निगम के माध्यम से जैविक खाद खरीदी थी। कट्टे पर कंपनी का पता नयी दिल्ली के रोहिणी का दिया हुआ था जबकि इसका उत्पादन प्लांट पंजाब में बताया गया। वहीं भूमि सुधार आयोग के मुख्य तकनीकी अधिकारी ने कृषि निदेशक को लिखे पत्र में कंपनी का पता बरनाला रोड, सिरसा का बताया है। कृषि वैज्ञानिक रहे डॉ़ रामकंवार दुलीना का आरोप है कि जिस कंपनी से जैविक खाद खरीदी है, उसका नाम कंपनी एक्ट के तहत रजिस्टर्ड नहीं है।
350 रुपये में बेचा गया कट्टा
भूमि सुधार आयोग ने 660 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से जैविक खाद खरीदी थी। किसानों को 350 रुपये प्रति कट्टा (50 किलोग्राम) के हिसाब से बेचा गया। सूत्रों के अनुसार जब जैविक खाद के लिए टेंडर मांगे गये तो फिरोजपुर की एक कंपनी ने सबसे कम 550 रुपये प्रति क्विंटल की पेशकश की थी। बताते हैं कि इस कंपनी को नाममात्र का आर्डर मिला। 660 रुपये के हिसाब से दूसरी कंपनी से ज्यादा खरीद हुई।
फसल नहीं बढ़ी
गाजियाबाद के केंद्र में जांच में सैम्पल फेल मिले। किसानों को प्रति एकड़ 100 किग्रा यानी जैविक खाद के दो-दो कट्टे दिये गये। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय की सिफारिश है कि एक एकड़ में 6 टन जैविक खाद डले। ऐसे में 100 किलोग्राम जैविक खाद से न तो फसलों को कुछ फायदा हुआ, न इससे भूमि की उपजाऊ क्षमता बढ़ी।