नई दिल्ली। दिल्ली की एक कोर्ट का कहना है कि देश में प्रभावी कानून व मुकदमे की प्रक्रिया का अभाव होने से नीम-हकीमों को बढ़ावा मिल रहा है जबकि इन अनैतिक लोगों के धंधे रूकना चाहिए। इस कठोर टिप्पणी के साथ ही उसने अनुचित दवाइयों से इलाज करने वाले एक व्यक्ति को दोषमुक्त कर दिया।
दोषमुक्त किए गए व्यक्ति पर इंजेक्शन लगाने के बाद बच्चे की मौत होने का एक अलग मामला भी चल रहा है। कोर्ट ने कहा कि इस व्यक्ति के खिलाफ सबूत का अभाव था, जिससे पूरे केस को झटका लगा। आरोपी को दोषमुक्त करते हुए मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट पंकज शर्मा ने कहा-"समाज में नीम-हकीमी बढ़ रही है, अनैतिक लोग एलोपैथी व आयुर्वेदिक दवाइयों से इलाज शुरू कर देते हैं, जबकि कई बार वह अबोध लोगों की जान ले लेती है।
दंतहीन कानून से ऐसे लोगों को बढ़ावा मिल रहा है, बजाए उन पर रोक लगने के।" सेना में चिकित्सा सहायक थाआरोपी सेना की मेडिकल कोर में चिकित्सा सहायक था, न कि डॉक्टर। इसके बावजूद वह इलाज करने लगा था। कोर्ट ने कहा कि दिल्ली भारतीय चिकित्सा परिषद् (डीबीसीपी) कानून 1998, जिसके तहत उस पर आरोप लगाए गए थे, छापे के दौरान दवाएं बरामद करने का अधिकार नहीं देता।
उसके पास न डिग्री थी और न इलाज की अन्य पात्रता, फिर भी वह मरीजों को दवाइयां दे रहा था। इससे साबित होता है कि नीम-हकीमी के मामलों में प्रभावी केस के लिए सशक्त कानून का अभाव है।