जमीन अधिग्रहण के बदले सरकार जाे मुआवजा देती है, वह रैयताें तक नहीं पहुंच पाता. बिचाैलिये खा जाते हैं. पूरा रैकेट है. अफसराें-दलालाें की सांठगांठ ने गरीब आदिवासियाें काे सड़क पर ला दिया है. ऐसे ताे यह पूरे राज्य में हाे रहा है, लेकिन धनबाद में सबसे ज्यादा. धनबाद से सटा दुहाटांड़ गांव में सरकार ने रिंग राेड के लिए आदिवासियाें की 269़ 5 डिसमिल जमीन अधिग्रहीत की. कुल 4.46 करोड़ रुपये मुआवजा देना था, लेकिन इसका 10 फीसदी पैसा भी रैयताें काे नहीं मिला. छाेटे-छाेटे दलाल -कर्मचारी ताे पकड़े गये लेकिन असली सरगना अब तक पकड़ा नहीं गया. स्थिति यह है कि जिन्हें कराेड़ मिलना चाहिए था, आज वह दाने-दाने के लिए तरस रहे हैं. पढ़िए ऐसे रैयताें की कहानी…
दुहाटांड़ से लौट कर आनंद मोहन
दुहाटांड़ के रहनेवाले गणेश मुरमू की 29़ 5 डिसमिल जमीन रिंग रोड के लिए अधिग्रहीत हुई़ 63 लाख रुपये मुआवजा तय हुआ़ मुआवजा राशि उसके नाम से बैंक के माध्यम से धनबाद के धनसार पैक्स में पहुंची़ लेकिन बिचौलियों ने यहीं खेल कर दिया़ मुआवजे की इस 63 लाख रुपये में उसके पट्टीदारों का भी हिस्सा था़ गणेश बताते हैं : विपिन राव नाम का आदमी बार-बार गांव आता था़ एक दिन उसने कहा कि तुम्हारी जमीन रिंग रोड में जा रही है़ बैंक में खाता खुलवाना होगा, सभी ने खुलवा लिया है, तुम भी खुलवा लो़ हम पैसा दिलाने में मदद करेंगे़ वह बताते हैं कि एक दिन दो-तीन लोग आये और मुझे धनसार लेकर चले गये़ धनसार पैक्स में हमें चेक दिखाया और हस्ताक्षर करने को कहा़ वह बताता है कि हम पैसा मांगते, तो कभी पांच हजार कभी 10 हजार रुपये दिया जाता़ 10-12 किस्तों में 90 हजार रुपये हमें दिया गया़.
विपिन राव ने पैसे दिये थे़ गणेश बताते हैं, जब उसे मालूम चला कि उसके नाम से ज्यादा पैसे की निकासी हुई है, तो बिचौलियों ने हाथ खड़ा कर लिया़ कहने लगे कि जितना मिला था, उतना दे दिया़ अब गणेश मुरमू लाचार है़ इस बार धान की खेती भी नहीं हुई है़ धनबाद में मजदूरी कर पेट पाल रहा है़ मुआवजा के पैसे में चाचा का भी हिस्सा था़ चाचा सहदेव राम मुरमू बीमार है़ं पिछले कई महीनों से उनकी दवा भी नहीं चल रही है़ पेट चलाये या बीमारी से लड़े परिवार, समझ नहीं पा रहा है़ सहदेव के बेटा उमेश मुरमू मैट्रिक पास है़ नौकरी की तलाश में भटक रहा है़ सहदेव मुरमू की पत्नी अंजली देवी का पूरा दिन पति की सेवा में गुजरता है़ एक टूटे खाट में सहदेव बेसुध पड़े रहते है़ं करवट बदलने के लिए भी मदद की जरूरत है़ पूरा शरीर लकवा ग्रस्त है़ पहाड़ की तरह मुसिबत से जूझने के लिए इसपरिवार की कमर पहले ही बिचौलियों ने तोड़ दी है़ अब जमीन भी नहीं बची है़ थोड़ी बहुत खेती है, उससे परिवार का पेट चलना मुश्किल है़
बिचौलियों के रैकेट ने कैसे किया खेल
बिचौलियों के रैकेट ने तरीके से खेल किया़ सबसे पहले भू-अर्जन कार्यालय के अधिकारी-कर्मचारी की मिलीभगत से बिचौलियों ने पता लगाया कि किस जगह की जमीन अधिग्रहीत होनेवाली है़ उसका पूरा रिकॉर्ड हासिल किया़ इसके बाद बिचौलिये गांव पहुंचे़ विपिन राव नाम के बिचौलिये का पहले से उस गांव में आना-जाना था़ उसने ही सूचना दी कि गांव के किस-किस लोग की जमीन जा रही है़ भोले-भाले आदिवासियों को पता भी नहीं था कि उनकी जमीन जा रही है़ उसने गांववालों का भरोसा जीता़ भरोसा दिलाया कि वह उनको मुआवजा का पैसा दिला देगा़ भाग-दौड़ करने से ग्रामीण बच जायेंगे़ इसके बाद विपिन राव कुछ लोगों के साथ गांव पहुंचा़ विपिन ने गांववालों से उनका परिचय डीसी ऑफिस के कर्मचारी के रूप में दिया़ गांववालों को अंचल कार्यालय के दस्तावेज और सादे कागज पर हस्ताक्षर करने को कहा़ हालांकि गांव के कुछ लोगाें ने उसका विरोध भी किया था़ उसने किसी तरह उनको समझाया़ जो हस्ताक्षर कर सकते थे, उनका हस्ताक्षर लिया़
जिन्हें लिखना- पढ़ना नहीं आता, उनके अंगूठे के निशान लिये. कुछ दिन बाद सभी बिचौलिये इनको जोरा पोखर के पैक्स ले गये़ रैयतों की पूरी खातिरदारी की़ होटल में खिलाना-पिलाना सबकुछ हुआ़ पैक्स पहुंचने के बाद इन बिचौलियों ने इन आदिवासियों का खाता खुलवाया़ दस्तावेज भी बताते हैं कि ये लोग खाता खुलवाने में पहचानकर्ता बने़ खाता खुलाने के साथ ही इन लोगों ने रैयतों से सादे चेक पर हस्ताक्षर और जरूरत के हिसाब से अंगूठे के निशान लिये. इसके बाद पैसे निकासी का खेल शुरू हुआ़ प्रबंधन के हस्तक्षेप के बाद रैयतों के मुआवजा के चेक के पीछे इन बिचौलियों ने भी दस्तख्त किये़ कई बार इन बिचौलियों ने प्रबंधक को पटा भी लिया और बिना अपने हस्ताक्षर के केवल रैयतों के हस्ताक्षरवाले चेक जमा कर भी पैसे निकाल लिये़ यही नहीं, चेक से पैसा अपने एकाउंट में भी ट्रांसफर कराया़ अलग-अलग चेक जमा कर किस्त में पैसे निकाले गये़ रैयतों का चेक एकाउंट पेइ था़, इसलिए उनके हस्ताक्षर की जरूरत थी़ इसलिए बिचौलियों ने चेक के दोनों तरफ रैयतों के हस्ताक्षर या अंगूठा लगवा कर अपने पास रखे थे. पैक्स के लोग भी इस खेल में शामिल थे़ उन्हें मालूम था कि ये सभी असली रैयत नहीं हैं, फिर भी भुगतान हुआ़ एकाउंट ट्रांसफर पर भी रोक नहीं लगाया़ इस तरह अंचल कार्यालय से लेकर पैक्स तक जाल बिछा कर दलालों ने पूरे पैसे हड़प लिये़
बिचौलियों के साथ मिले थे अंचल कार्यालय के अधिकारी-कर्मचारी
ऐसेहुई अनदेखी-
अधिकारियों और कर्मियों की मिलीभगत का प्रमाण है कि रैयतों को मुआवजा भुगतान के लिए भू-अर्जन अधिनियम की धारा 17-3 और न ही धारा 12-2 के तहत कोई नोटिस नहीं दिया गया़ इसकी सूचना रैयतों को बिचौलियों से मिली और अंचल कार्यालय में जाकर नोटिस लेने से लेकर सारी औपचारिकता हुई़
– भू-अर्जन अधिनियम के तहत आदिवासी और दलितों के मामले में मुआवजे का भुगतान शिविर लगा कर किया जाना है़ इसमें जनप्रतिनिधि की उपस्थिति भी चाहिए. लेकिन ऐसा नहीं हुआ़
– भुगतान की वीडियोग्रॉफी या फोटो ग्राफी भी हो सकती थी, लेकिन नहीं किया गया.
-बिचौलिये बहला-फुसला कर आदिवासियों को खाता खुलवाने पैक्स ले गये़ पैक्स में प्रबंधन ने किस आधार पर बिचौलियों को पहचानकर्ता बनाया़
– जांच के बाद इस बात का भी खुलासा हो गया है कि आदिवासियों को शराब के नशे में पैक्स लाया गया था, तो फिर उन्हें प्रबंधक ने कैसे हस्ताक्षर और अंगूठे लिये़ दरअसल यह काम बिचौलियों ने पहले कर लिया था़
– भू-अर्जन कार्यालय की ओर से यह सुनिश्चित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया कि मुआवजा रैयतों को मिल रहा है या नही़ं
गणेश मुरमू की जमीन व मुआवजा का फैक्ट शीट
दुहाटांड़ मौजा – खाता सं : 108 व 89
प्लॉट : 896, 897 व 398
अधिग्रहीत जमीन का रकबा : 21, 8़ 5
जोरापोखर पैक्स में खाता संख्या : 200299 से एकाउंट खुला़बैंक खाता खुलवाने में पहचानकर्ता : विपिन राव. इसी ने गणेश मुरमू से संपर्क साधा था़
निकासी : गणेश मुरमू के पैक्स के खाते से राकेश कुमार के नाम नाै लाख, हयान महतो के नाम नाै लाख, राम सिन्हा के नाम 15 लाख और विपिन कुमार राव के नाम 30 लाख रुपये की निकासी हुई़
केस स्टडी-02
मजदूरी कर परिवार चला रहा रसिक को मिलना था 27 लाख, मिले कुछ हजार
रसिक मुरमू की 25 डिसमिल जमीन रिंग रोड में चली गयी़ 27 लाख मुआवजा मिलना था, लेकिन िमला िसर्फ कुछ हजार. रिंग रोड में रसिक की जमीन जा रही है, उसे जानकारी भी नहीं थी़ विपिन राव, आलोक बरियार नाम के दो व्यक्ति उसके पास आये़ उसे इन लोगों ने ही बताया की उसकी जमीन जा रही है़ इन लोगों ने कहा कि चिंता की बात नहीं है, डीसी ऑफिस से खूब पैसा मिलेगा़ हम तुम्हारा पैसा दिलाने में मदद करेंगे़ इन लोगों ने सादे कागज पर रसिक से अंगूठे का निशान व हस्ताक्षर कराया़
जोरा पोखर पैक्स में रसिक का खाता भी इन लोगों ने ही खुलवाया़ रसिक बताता है कि इन लोगों ने खुद को डीसी ऑफिस का आदमी बता कर चेक बुक पर भी हस्ताक्षर कराया़ ये लोग पैक्स ले गये़ विपिन राव के घर ठहराया गया़ 10 हजार रुपये दिये गये. रसिक को मालूम ही नहीं था कि उसके खाते में 27लाख रुपये आये है़ं पैक्स से सारे पैसे बिचौलियों ने निकाल लिया़ पैक्स से मिले कागजात के अनुसार आलोक बरियार, रोहित और काजल विश्वास के नाम से 27 लाख की निकासी की गयी है़
रसिक मुरमू मजदूरी कर अपने बच्चों का पेट पाल रहा है़ वह बिचौलियों से जब कभी पैसा मांगने जाता, तो उसे दस-पांच हजार थमा दिया जाता. दुहाटांड़ में उसके पास खेती की जमीन भी है़ उसके घर के बगल से निकलनेवाले रिंग रोड के लिए चिह्नित जमीन देख कर उसे इस बात का मलाल होता है कि पुरखाें की उसकी जमीन भी चली गयी, लेकिन वह अपने परिवार के लिए कुछ कर नहीं पाया़ टूटे-फूटे घर के एक कमरे में वह परिवार के साथ रहता है़ मजदूरी मिलती है, तो चूल्हा जलता है़ पत्नी बसंती देवी व परिवार के लोगों को भरोसा नहीं है कि पैसा मिलेगा़
रसिक मुरमू की जमीन और मुआवजा का फैक्ट शीट
मौजा दुहाटांड़- खाता सं-32 प्लॉट-700, 709, जमीन अधिग्रहण- 20 डिसमिल, 05 डिसमिल, जोरा पोखर पैक्स धनसार में खाता संख्या : 200300 से एकाउंट खुला
बैंक खाता खुलवाने में पहचानकर्ता : विपिन राव. खाता खुलवानेवाले पहचानकर्ता बिचौलियों ने ही भूमिका निभायी़ पैक्स के सादे चेक पर हस्ताक्षर करा लिया़
पैक्स से निकासी करनेवाले : आलोक बरियार, रोहित व काजल विश्वास (तीनों ने नाै-नाै लाख निकाले).