देशी-विदेशी पर्यटकों के बीच अपनी कुदरती खूबसूरती के लिए मशहूर केरल पूर्ण शराबबंदी की राह पर चल पड़ा है। अगस्त 2014 में केरल सरकार ने पूर्ण शराबबंदी की घोषणा कर दी थी, जिसे बार और होटल मालिकों ने चुनौती दी थी। लेकिन पिछले साल के आखिरी दिनों में सुप्रीम कोर्ट ने शराबबंदी पर केरल सरकार के फैसले को बहाल रखा और अब वहां सिर्फ पांच सितारा होटलों में ही शराब परोसी जाएगी। चांद पर बस्ती बसाने का सपना देखने जा रहे भारत में शराबबंदी एक ऐसी कसरत है, जिसे शुरू करने के बाद हर राज्य सरकार का दम फूलने लगता है। बिहार में मिले जनादेश से अभिभूत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सत्ता संभालने के एक हफ्ते के अंदर ही शराबबंदी की घोषणा कर दी थी जो आने वाले एक अप्रैल से लागू होगी। सरकार ने इसके लिए चार महीने का वक्त लिया, ताकि अब तक आबंटित किए गए ठेके चालू रहें और सरकार किसी कानूनी अड़चन से बच जाए।
हालांकि, नीतीश कुमार चाहते तो शराबबंदी की घोषणा को तुरंत लागू कर सकते थे। लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि प्रदेश में महागठबंधन को महिलाओं का अभूतपूर्व समर्थन मिला है और वह चुनावों के दौरान नीतीश कुमार की शराबबंदी के वादे के कारण ही संभव हुआ। नीतीश कुमार ने पांचवीं बार प्रदेश की कमान संभाली है। वे एक सुलझे हुए राजनेता हैं। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला ने तो उन्हें प्रधानमंत्री पद का दावेदार भी मान लिया। लिहाजा हम भी मानते हैं कि उन्होंने यह घोषणा बहुत सोच-समझ कर, अतीत में दूसरे राज्यों के तजुर्बे से सीख कर और इससे राज्य की आर्थिक सेहत पर पड़ने वाले असर का आकलन करने के बाद ही यह फैसला किया होगा।
लेकिन मद्य-निषेध के मामले में हरियाणा का नुस्खा काफी भयावह तस्वीर की याद दिलाने वाला है। जब बंसीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री थे, तब उन्हें दो साल के भीतर शराबबंदी के अपने फैसले को पलटना पड़ा था। उस समय उनकी सहयोगी भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें मझधार में छोड़ कर 1999 में पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला का हाथ थाम लिया था। भाजपा और चौटाला के मौके के गठजोड़ ने बंसीलाल सरकार गिरा दी और अगले चुनाव में बंसीलाल को मैदान में कहीं का नहीं छोड़ा। चौटाला ने अपनी सरकार 2000 में जनादेश के साथ बनाई। बंसीलाल ने मतभेदों के कारण कांग्रेस से अलग होकर जो हरियाणा विकास पार्टी बनाई थी, उसे फिर से कांग्रेस में ही मिला दिया गया।
बहरहाल, शराबबंदी का नारा महिलाओं की जरूरत से शुरू होता है और उन्हीं से इस नारे को ताकत मिलती है। लेकिन पुराने अनुभवों से ऐसा लगता है कि हड़बड़ी और बिना तैयारी के शराबबंदी के नियम को लागू करना नुकसानदेह सिद्ध होता है। जिन महिलाओं की मांग का खयाल रख कर इस तरह के नियम को लागू किया जाता है, बाद में वही उसे हटाने की दरख्वास्त भी करती देखी गई हैं। हरियाणा के गांवों में महिलाओं ने अपनी शिकायतें मंत्री के पास पहुंचानी शुरू कर दी थीं कि उनके पति शाम होते ही सीमा सेसटे पंजाब, उससे आगे राजस्थान या दूसरे राज्यों में भी निकल जाते हैं और फिर अक्सर अवैध शराब हाथ में होने की वजह से पुलिस की गिरफ्त में आ जाते हैं। इसके अलावा, विपक्ष ने भी सरकार को राजस्व में कमी से होने वाले घाटे और महंगाई पर घेरना शुरू कर दिया था।
अब बिहार पर भी नजर डाल लेते हैं। यह सच है कि बिहार में महिलाएं, खासतौर पर दलित वर्ग की महिलाएं मुख्यमंत्री से यह शिकायत करती रही हैं कि शराब ने उनका घर बर्बाद कर दिया है, इसलिए राज्य में शराब पर प्रतिबंध लगाया जाए। लेकिन शराब से करीब 3000 करोड़ से भी ज्यादा का राजस्व कमाने वाली सरकार के हाथ-पैर इसके खयाल से ही फूल जाते थे। आखिर इतने बड़े नुकसान की भरपाई कहां से होगी? हरियाणा की तरह अगर दूसरी चीजों पर कर लगाया गया तो गुस्सा सब ओर फूटेगा। ऐसा अनुमान है कि पिछले साल बिहार में शराब की बिक्री से 3300 करोड़ का राजस्व कमाया गया, जो दूसरे करों की कमाई से सात-आठ सौ करोड़ रुपए ज्यादा था। इस साल सरकार का अनुमान है कि शराब से राजस्व प्राप्ति 4000 करोड़ से ऊपर निकल जाएगी। जाहिर है, विपक्ष के दबाव में यह चुनावी वादा पूरा करने की जल्दबाजी महंगी भी पड़ सकती थी। इसलिए अप्रैल तक सब कुछ ठोक-बजा कर ही शराबबंदी को लागू करने का इरादा बनाया गया है।
यों बिहार से पहले आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, मिजोरम और हरियाणा में शराबबंदी का प्रयोग नाकाम हो चुका है। आंध्र में पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने यह कह कर शराबबंदी हटा दी थी कि इसे पूरी तरह लागू कर पाना संभव नहीं। एक लंबे समय बाद बंसीलाल ने भी यही बात दुहराई कि यह संभव नहीं। हालांकि उन्होंने कभी कहा था, ‘मैं शराब पर पाबंदी हटाने के बजाय घास काट लूंगा’। बाद में शराबबंदी के नियम को वापस लेने की घोषणा के लिए उन्होंने अपनी सरकार के शराबबंदी मंत्री और भाजपा के नेता गणेशीलाल को चुना था। इतिहास गवाह है कि जब यह घोषणा की गई तो जनमानस इतना हर्षित हुआ था, जितना शायद शराबबंदी लागू होने पर भी नहीं हुआ था। शराबबंदी के इक्कीस महीनों में ही इससे जुड़े किस्सों की भयावहता और उपहास ने अपनी तमाम हदें लांघ दी थीं।
हरियाणा में शराबबंदी से हुए राजस्व के नुकसान को अगर भूल भी जाएं तो उन इक्कीस महीनों के दौरान प्रदेश में एक लाख के करीब शराब से जुड़े मुकदमे दर्ज किए गए। तेरह लाख के करीब शराब की बोतलें बरामद की गर्इं। बरामद बोतलों की संख्या ही यह बताने के लिए काफी है कि हरियाणा में तस्करी के जरिए कितनी बोतलें आई होंगी। वहां जहरीली शराब पीने की एक घटना में साठ लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। तब विरोध के कारण प्रदेश के मंत्रियों का गांवों में जाना मुश्किल हो गया था। ऐसा माना जाता था कि शराब की तस्करी के लिए स्कूली बसों और सरकारी वाहनों तक का दुरुपयोग हो रहा था। गांव के लोगों का दूसरा ठिकाना थाने व चौकियां बन गए थे, जहांवेअपने लोगों को छुड़ाने के लिए पहुंचते थे। हालांकि, शराब तस्करी के आधिकारिक संरक्षण के आरोप भी लगे। नतीजा यह रहा कि सरकार ने शराबबंदी के फैसले को वापस ले लिया और शराबबंदी को अपना मिशन बताने वाले खुद बंसीलाल ने भी शराबबंदी हटाने के पक्ष में ही अपनी राय दी।
हरियाणा की ही तर्ज पर बिहार के साथ भी कई राज्यों की सीमा लगती है। इसका सबसे बड़ा फायदा सीमा पार के अपराधी तत्त्व ही उठाते हैं। दरअसल, सब कुछ जानते हुए भी पुलिस अपराधी तत्त्वों तक नहीं पहुंच पाएगी और बेरोजगारी या दूसरी वजहों से इस जंजाल में उलझे लोग इस तस्करी में संलिप्त होंगे, वे थाने, कचहरी के चक्कर लगाएंगे।
शराबबंदी वाले राज्य में सबसे बड़ा संकट इसकी तस्करी से ही होता है जिसे रोकना कोई आसान काम नहीं। इसी तरह शराबबंदी के दौर में गांव के घर-घर में शराब निकालने का जो सिलसिला शुरू हो जाता है, लोग इससे जल्द ही आजिज आ जाते हैं। ऐसे में जहरीली शराब कहां से बन कर लोगों के हलक में पहुंच जाती है, यह पता लगाना तक प्रशासन के लिए चुनौती बन जाता है। इसी जहरीली शराब के सेवन की वजह से देश के अलग-अलग इलाकों से बड़ी तादाद में लोगों के मरने की खबरें आती रही हैं। ऐसी हर घटना के बाद समझा जाता है कि दूसरी जगहों के लोग सस्ती शराब को लेकर सावधानी बरतेंगे और शराब से मरने की घटनाएं सामने नहीं आएंगी। लेकिन हर कुछ महीने के दौरान किसी जगह जहरीली शराब से दर्जनों लोगों की जान चली जाती है।
एक दूसरा, लेकिन गौण पहलू यह है कि शराबबंदी का परोक्ष असर किसी राज्य की पर्यटन व्यवस्था पर भी नकारात्मक पड़ता है। हालांकि, शराबबंदी के दौर में भी आम तौर पर फाइव स्टार होटलों को शराब बेचने के मामले में छूट रहती है, लेकिन हर पर्यटक की पहुंच वहां तक नहीं होती है। यह देखा गया है कि शराबबंदी के कारण पर्यटन उद्योग को तो मार झेलनी ही पड़ती है, किसी भी राज्य में फैली भयंकर बेरोजगारी में और इजाफा होता है। दरअसल, शराबबंदी का पहला असर डिस्टिलरीज के बंद होने के तौर पर सामने आता है। बिहार में एक बड़ा तबका इन डिस्टिलरीज के अलावा ठेकों, अहातों, होटलों, रेस्तराओं और परिवहन से भी जुड़ा है। शराबबंदी के बाद ऐसे लोग अक्सर बेरोजगारी का शिकार हो जाते हैं और कई बार अपने हालात से तंग आकर गलत कदम उठा लेते हैं। फिर शराबबंदी के कारण इससे जुड़े बहुत से दूसरे उद्योग भी बंद होने की कगार पर पहुंच जाते हैं, जिनके कारण राज्य की आर्थिक व्यवस्था पर गहरी चोट लगती है। जाहिर है, शराबबंदी के बाद के नतीजों के कई आयाम हैं, जिनकी अनदेखी किसी भी राज्य और उसके प्रशासन पर भारी पड़ सकती है।
इस लिहाज से देखें तो आशा की किरण यह है कि नीतीश कुमार ने सत्ता संभालने के बाद शराबबंदी की घोषणा पर अमल के लिए चार महीने का समय ले लिया है, ताकि इस दौरान इन सब मुद्दों पर गौर फरमा लिए जाएं। अब सरकार औरबिहार के लिए बेहतर यह है कि किसी तरह इस फैसले से होने वाले राजस्व के नुकसान की भरपाई की अग्रिम व्यवस्था कर ली जाए। फैसला लागू होने के साथ ही अगर इससे होने वाली बेरोजगारी और दूसरी समस्याओं से निपटने की पूर्व योजना भी बना ली जाए तो वह किसी संभावित संकट से बचा लेगी। वरना ये सब समस्याएं मिलजुल कर एक ऐसी भयावह स्थिति पैदा कर देगी, जिससे निपटना किसी भी राज्य के लिए आसान नहीं होता।
दरअसल, बिहार में फिलहाल नीतीश कुमार की स्थिति कमोबेश वही है जो हरियाणा में एक समय बंसीलाल की थी। हरियाणा में बंसीलाल अगर ‘विकास पुरुष’ थे तो बिहार में नीतीश ‘विकास कुमार’ हैं। लेकिन अपनी इस छवि को बनाए रखने की खातिर उनके लिए यह जरूरी है कि वे शराबबंदी जैसे जोखिम भरे, लेकिन समाजोन्मुख फैसले को लागू करते समय असाधारण सावधानी से काम लें और आने वाले चार महीनों में इसके नफा-नुकसान को जांच कर ही इसे लागू करें। उन पर यह जिम्मेदारी ज्यादा इसलिए है कि अपने पिछले दो कार्यकाल में राज्य में पंचायत स्तर पर भी शराब की दुकानें खोलने का ‘श्रेय’ भी नीतीश कुमार को ही जाता है।
एक मामले में पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट की हाल की एक टिप्पणी रास्ता दिखाने वाली है। यह मामला राजमार्गों के किनारों पर खुले शराब के ठेकों को बंद करवाने के लिए दायर एक याचिका पर सुनवाई के दौरान सामने आया है। याचिका दायर करने वाले व्यक्ति का कहना था कि शराब की ये दुकानें दिन भर बंद रहती हैं, लेकिन शाम ढलते ही खुल जाती हैं। हाई कोर्ट के एक खंडपीठ ने इस पर सुनवाई करते हुए कहा, ‘अगर पंजाब सरकार को शराब से होने वाले राजस्व की इतनी ही चिंता है तो सचिवालय में भी शराब का ठेका खोल दे’। शराब की बुराई को खत्म करने के लिए हाई कोर्ट की यह टिप्पणी एक प्रकाशपुंज की तरह है। अगर सरकारों को बुराई से अर्जित होने वाले राजस्व की इतनी ही चिंता हो तो पहले विकल्प ढूंढ़ कर ही इसे लागू किया जाना चाहिए, ताकि फिर पीछे न हटना पड़े।
शराब एक अरसे से हमारे समाज को नासूर की तरह साल रही है। इसके कारण कितने ही परिवार उजड़ गए और कई लोगों को लाचारी का मुंह देखना पड़ा। दुर्भाग्य की बात यह है कि तंबाकू पर रोक लगाने के लिए तो फिर भी सरकार गंभीर दिखाई देती है, लेकिन शराब के प्रति वैसी तत्परता नहीं दिखाई जाती। यह राज्यों का विषय है और चूंकि उनकी आमदनी का मुख्य जरिया भी है, इसलिए सरकार इसके प्रति गंभीरता से मुंह मोड़ लेती है, जिसका हश्र समाज को भुगतना पड़ता है। इसलिए यह जरूरी है कि यह नीति चिरस्थायी तौर पर लागू हो न कि एक अरसे बाद सरकार अपने खाली होते खजाने से त्रस्त होकर इसे वापस ले ले। जैसे हरियाणा व दूसरे राज्यों में हुआ।
भारतीय संविधान के निर्देशक नियमों में धारा 47 में कहा गया है कि चिकित्सा उद्देश्य के अतिरिक्त स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नशीले पेयों और ड्रग्ज पर सरकार प्रतिबंधलगा सकतीहै।
विभिन्न राज्यों, जिनमें तत्कालीन मद्रास प्रोविंस और बॉम्बे स्टेट व कई अन्य राज्य शामिल थे, ने शराब के खिलाफ कानून पारित कर दिया। 1954 में भारत की एक चौथाई आबादी इस नीति के तहत आ गई।
तमिलनाडु, मिजोरम, हरियाणा, नगालैंड, मणिपुर, लक्षद्वीप, कर्नाटक शराबबंदी तो लागू की। लेकिन सरकारी खजाना खाली होते देख यह पाबंदी हटा दी गई।
इस नीति का लाभ सिर्फ इसे लागू करने वाली एजंसियों और अवैध शराब बनाने वालों को पहुंचा जिन्होंने खूब धन कमाया।
गुजरात : इन्हें दवा नहीं दारू की जरूरत है
महात्मा गांधी की जन्मभूमि रहे गुजरात में कोई भी सत्ताधारी दल शराबबंदी से पाबंदी हटाने की सोच भी नहीं सकता। लेकिन जहां चाह, वहां राह की तर्ज पर गुजरात में ऐसा मर्ज खोजा गया है, जिसका इलाज मदिरा से ही हो सकता है। सूबे में 1960 से शराबबंदी है। लेकिन वहां लगभग 60 हजार से ज्यादा ऐसे लोग हैं जिनके पास शराब खरीदने और पीने का परमिट है। राज्य में प्रोहेविशन विभाग से परमिट लेकर सिविल अस्पताल के डॉक्टर से वैसी बीमारी का सर्टिफिकेट लेना पड़ता है जो सिर्फ शराब पीने से ही ठीक हो सकती है। और जिनके पास शराब पीने के लिए हेल्थ परमिट नहीं है उनके लिए सूबे से सटे दमन और दीव व राजस्थान से तस्करी कर मंगाई गई शराब तो है ही।
केरल : जाम पर लगाम
शराबबंदी की कड़ी में शामिल होने वाला नवीनतम राज्य केरल है। केरल ने शराब पर सर्वाधिक कर लगाया है (लगभग 120 फीसद)। इससे इसे उच्च राजस्व की प्राप्ति होती है। 2009-10 में शराब पर लगाए करों से इसे कुल 5500.39 करोड़ रुपए का राजस्व मिला था। देश में केरल शराब का प्रति व्यक्ति सर्वाधिक सेवन करने वाला राज्य है। प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष 8 लीटर से अधिक है, जो पंजाब और हरियाणा जैसे पारंपरिक रूप से अधिक शराब पीने वाले राज्यों से आगे है। इसके वार्षिक बजट के लिए राजस्व का 40 फीसद से अधिक शराब बिक्री से आता है। 2014 में केरल की सरकार ने 10 साल की शराबबंदी की घोषणा की थी। इसके बाद बार और होटल के मालिकों ने इस फैसले को अदालत में चुनौती दी। इसके बाद पाबंदी में ढील दी गई और बार को बियर और शराब बेचने की इजाजत मिली। इसके बाद 29 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार के शराबबंदी कानून को जायज ठहराते हुए राज्य को 10 साल के भीतर शराब-मुक्त करने की नीति पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति विक्रमजीत सेन और न्यायमूर्ति शिवकीर्ति सिंह के पीठ ने राज्य सरकार की शराबबंदी नीति के खिलाफ कई होटलों और उनके संगठनों की ओर से दायर अपील खारिज कर दी। राज्य में दस सालों के भीतर शराब पर पूरी तरह रोक लगाने के तहत बनाई नीति के अनुसार सिर्फ पांच सितारा होटलों को शराब परोसने की इजाजत दी गई है। यहां सबसे ज्यादा 14.9 फीसद शराब की खपत है।
पाबंदी की तैयारी में महाराष्ट्र
महाराष्ट्र सरकार भी पूरी तरह से शराबबंदी की तैयारी कर रही है। अभी तीन जिलों में पूरीतरह शराब बेचना, पीना और पिलाना गैरकानूनी है। बताया जा रहा है कि फडणवीस सरकार महाराष्ट्र में शराबबंदी लागू करने के तौर-तरीकों को तलाशने में भी जुट गई है। लेकिन यह सूबे की तिजोरी पर काफी भारी पड़ेगा। अभी शराब से महाराष्ट्र सरकार को सालाना 12-13 हजार करोड़ की कमाई होती है। महाराष्ट्र के तीन जिलों वर्धा, गढ़चिरौली और चंद्रपुर में पहले से शराब पूरी तरह से प्रतिबंधित है।
प्रतिबंध के खिलाफ ओड़ीशा
ओड़ीशा में शराब के उपभोग और निर्माण पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने को वहां की सरकार ने अवास्तविक बताया है। ओड़ीशा के आबकारी मंत्री दामोदर राउत ने विभानसभा में कहा, ‘यह यथार्थवादी कदम नहीं होगा कि पूरे राज्य में शराब प्रतिबंध लागू कर दिया जाए’। राउत ने कहा, ‘यदि राज्य पूर्ण प्रतिबंध लगा भी देता है तो शराब पीने वालों का उससे लगाव खत्म करना असंभव है’। उन्होंने कहा कि शराब पर प्रतिबंध से शराब का अवैध व्यापार बढ़ेगा। अवैध शराब पीने से लोगों के मरने की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता। पूर्ण प्रतिबंध लगाने के बजाए लोगों के बीच उत्तम शराब की बिक्री और वितरण को नियमित करना उचित होगा। राउत ने यह भी स्पष्ट किया कि राज्य सरकार को ओड़ीशा में शराब की बिक्री से राजस्व अर्जित करने की मंशा भी नहीं है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने इस वित्त वर्ष में नवंबर के अंत तक 1139.83 करोड़ रुपये का राजस्व अर्जित किया है।
नशामुक्त बिहार का रोडमैप
1 अप्रैल 2016 से राज्य के सभी जिलों में देसी व मसालेदार शराब के उत्पादन और बिक्री पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया जाएगा। चार-पांच महीने के अंदर जब पहला चरण पूरी तरह से क्रियान्वित हो जाएगा तब दूसरे चरण में विदेशी शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया जाएगा। इस तरह राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू होगी। उत्पाद एवं मद्य निषेघ मंत्री जलील मस्तान ने कहा कि 1 अप्रैल से देसी और मसालेदार शराब की बिक्री पर रोक लगाई जाएगी, जबकि विदेशी शराब की बिक्री पर दूसरे चरण में रोक लगेगी। उधर, निबंधन, उत्पाद एवं मद्य-निषेध विभाग ने नई उत्पाद नीति तैयार कर ली है। नई नीति के तहत चरणबद्ध तरीके से राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू की जाएगी।
पहले गांव में बेची जा रही शराब होगी बंद
बिहार विधान परिषद परिसर में मीडिया से बातचीत में पूर्व मुख्यमंत्री और राजद विधानमंडल दल की नेता राबड़ी देवी ने कहा कि पूर्ण शराबबंदी नहीं होगी, पहले गांव-गांव में बेची जा रही देसी शराब पर रोक लगाई जाएगी।
मध्य प्रदेश : बंदी का विचार नहीं
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि मध्य प्रदेश में शराब की नई दुकान नहीं खुलेगी। शराब कारखानों को प्रोत्साहित नहीं किया जाएगा, लेकिन शराबबंदी का कोई विचार नहीं है।
दिल्ली : जाम पर पाबंदी नहीं
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया कह चुके हैं कि इस समय दिल्ली में शराब पर प्रतिबंध लगाने का हमारा कोई प्रस्ताव नहीं है।