ताकि मौत को गले न लगाएं अन्‍नदाता – एनके सिंह

सरकार का यह कदम किसानों का भाग्य बदल सकता है और उन्हें आत्महत्या करने से बचा सकता है। हाल ही में केंद्र सरकार ने चिर-अपेक्षित नई फसल बीमा योजना मंजूर की, जो न केवल व्यावहारिक है, किसानों के लिए बेहद उत्साहजनक भी है। केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह के अनुसार इस नई नीति के तहत किसानों को मात्र 1.5 से 2.5 प्रतिशत फसल बीमा राशि का अंश देना होगा। बाकी अंश का वहन केंद्र और संबंधित राज्य सरकारें करेंगी। नतीजा यह होगा कि किसान एक छोटा-सा अंशदान कर अपनी फसलों से अनुमानित आय सुनिश्चित कर सकेगा। इस योजना के कारण किसान नुकसान से बगैर डरे संवेदनशील फसलों जैसे दलहन और तिलहन की भी खेती कर सकेंगे। फल उत्पादन में लगे बड़े किसान अपनी फसल के मूल्य का 40 प्रतिशत तक प्रीमियम के रूप में देते थे, उसे भी घटाकर मात्र 5 प्रतिशत कर दिया जाएगा, ताकि छोटे किसान भी फलोत्पादन में अभिरुचि दिखाएं।

खाद्य एवं कृषि संगठन के ताजा आंकड़ों के अनुसार भारत में चावल 4.4 करोड़ और गेहूं लगभग 3 करोड़ हेक्टेयर में पैदा किया जाता है। हमारी औसत जोत 1.33 हेक्टेयर है, जबकि चीन की इससे आधी यानी 0.6 हेक्टेयर है। इसके बावजूद उसकी उत्पादकता भारत से तीन गुनी है। किसानों की स्थिति पर ध्यान न देने के कारण व्यवसाय की शर्तें लगातार किसानों के खिलाफ रही हैं। खाद में यूरिया में तो कम लेकिन अन्य फॉस्फेटिक खादों में तीन गुना बढ़ोतरी के कारण किसान की स्थिति खराब होती रही है और जो रोजमर्रा की वस्तुएं किसान खरीदता है वे लगातार महंगी होती रही हैं।

ऐसे में केंद्र सरकार ने किसानों की बेहतरी के लिए बीड़ा उठाया है। फसल बीमा योजना के अलावा दो और नए उपक्रम किए हैं। पहला जमीन के लिए हेल्थ कार्ड ताकि किसानों को पता चले कि उसके खेत में नाइट्रोजन (यूरिया) की कितनी जरूरत है। दूसरा यूरिया पर नीम की परत चढ़ाना ताकि खेतों को यह महंगा नाइट्रोजन धीरे-धीरे मिले और हवा में जल्द विलीन न हो।

नई नीति के तहत उन तमाम कमियों को सुधारा गया है, जिनके कारण फसल बीमा योजना पिछले 30 सालों से असफल रही है। ये पुरानी बीमा योजनाएं इसलिए विफल रहीं, क्योंकि उनका उद्देश्य मूलत: किसान के नुकसान की भरपाई से ज्यादा बैंक द्वारा किसानों को दिए जाने वाले कर्ज को संरक्षित करना रहा। लिहाजा बड़े किसान जो नगदी फसल बोते थे, वही मजबूरी में बीमा कराते थे। देश में सकल बहुफसलीय क्षेत्र 18.5 करोड़ हेक्टेयर है, जिसमें मात्र 5 प्रतिशत ही बीमा से कवर हो पाता था। राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना हो या वर्तमान परिवर्तित बीमा योजना या फिर मौसम आधारित बीमा योजना, इन सभी में व्यावहारिक पक्ष गौण रखा गया। अल्प स्वीकार्यता की वजह से बीमा कंपनियां भी प्रीमियम ज्यादा रखती थीं।

लेकिन नई योजना में बीमा कंपनियों को भी नुकसान नहीं होगा और वे अपनी शाखाओं का विस्तार देश के हर जिले में कर सकेंगी। अभी तक की बीमा योजनाओं की सबसे बड़ी कमी यह थी कि बीमा का प्रीमियम कंपनियों को चार गुना रखना पड़ता था।चूंकि व्यापक गरीब कृषक समाज प्रीमियम चुकाने में सक्षम नहीं था, लिहाजा कंपनियां अपना खर्च वहन करने में सक्षम नहीं होती थीं, खासकर सुदूर क्षेत्रों में। नतीजतन 95 प्रतिशत फसलें या देश का 80 प्रतिशत से ज्यादा किसान सीने पर हाथ रखकर खेती करता था और मौसम के अंगड़ाई लेते ही जब सबेरे खेत पर जाकर देखता था कि गेहूं के पौधे रात के आंधी-पानी में लेट गए हैं तो सामने के आम के पेड़ से लटक जाता था। पिछले 20 सालों में हर रोज 2052 किसान खेती छोड़ रहे हैं और हर 36 मिनट पर एक किसान आत्महत्या कर रहा है। इस अवधि में अब तक लगभग तीन लाख किसान मौत को गले लगा चुके हैं।

भारत में एक हेक्टेयर में औसत उत्पादन 31 क्विंटल है। उसे एमएसपी से गुणा कर दीजिए। कुल आय निकल आएगी। फिर प्रति हेक्टेयर लागत खाद, बीज, सिंचाई, गोड़ाई, मजदूरी जोड़ लीजिए। पता चल जाएगा कि गोदान का होरी मरा क्यों? एक हेक्टेयर में साल भर में मात्र 28000 रुपए बचते हैं बशर्ते जमीन अपनी हो। यानी पूरे परिवार को 2333 रुपए में जिंदा रखना, निरोग रखना और लिखाना-पढ़ाना। इसमें पाला, बाढ़, सूखा, रोग की मार जोड़ लीजिए! 75.42 प्रतिशत किसानों के पास एक हेक्टेयर से कम खेती है। गत 20 सालों में यह प्रति किसान आधी रह गई है।

किसान का दु:ख क्या है, यह जानने के लिए आइंस्टीन के दिमाग की जरूरत नहीं है। आज देश में अगर नई बीमा स्कीम 50 फीसदी पर भी स्वीकार्य होती है तो बीमा कंपनियां ब्लॉक स्तर तक पहुंच बना पाएंगी, क्योंकि उनका व्यापार दस गुना बढ़ जाएगा और लागत घट जाएगी। नई योजना के तहत गेहूं की फसल के लिए मात्र 1.5 प्रतिशत, धान के लिए 2.5 प्रतिशत, तिलहन के लिए 2 प्रतिशत और अन्य खाद्य पदार्थों के लिए 2 से 2.5 प्रतिशत किसानों को प्रीमियम के रूप में देना होगा, यानी अगर एक हेक्टेयर गेहूं में 40000 का बीमा कराया है तो उसे मात्र 800 रुपए देने होंगे, जबकि सरकार बाकी 2400 रुपए देगी। अभी तक किसानों को राज्य सरकारों के भ्रष्ट राजस्वकर्मियों के कारण फसल की क्षति का अनुमान सही ढंग से नहीं हो पाता था, लेकिन अब यह अनुमान ड्रोन उड़न-मशीन करेगी और उन चित्रों से क्षति का अहसास केंद्र या राज्य मुख्यालय में बैठे विशेषज्ञ करेंगे। और बेहतर होता अगर केंद्र सरकार इस क्षति आंकलन के आधार पर बीमा कंपनियों से बीमित राशि लेकर सीधे किसानों के खाते में डालती।

-लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *