थोक मुद्रास्फीति शून्य से नीचे फिर भी खाद्य महंगाई संकट

नई दिल्ली। सरकार भले ही थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति को काबू कर शून्य से नीचे रखने में कामयाब रही हो लेकिन खाद्य वस्तुओं की बढ़ती महंगाई दर बड़ी चुनौती बनी हुई है। खाद्य महंगाई दर लगातार बढ़ते हुए दिसंबर में 8.17 प्रतिशत पर पहुंच गई है।

खास बात यह है कि केंद्र की तमाम कोशिशों के बावजूद दलहन की महंगाई दर थमने का नाम नहीं ले रही है। वहीं प्याज सहित विभिन्न सब्जियों की कीमतें भी चुनौतियां पेश कर रही हैं। सरकार ने गुरुवार को थोक महंगाई दर के आंकड़े जारी किए।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार दिसंबर 2015 में थोक महंगाई दर मामूली चढ़कर -0.73 प्रतिशत पर पहुंच गई है जो कि नवंबर 2015 में -1.99 प्रतिशत थी। दिसंबर 2014 में थोक महंगाई दर -0.50 प्रतिशत थी। इस तरह नवंबर 2014 के बाद महंगाई दर लगातार 14वें महीने जीरो से नीचे नकारात्मक क्षेत्र में है। हालांकि पिछले चार महीने में इसमें धीरे-धीरे वृद्धि जरूर हुई है।

सबसे चिंताजनक खाद्य महंगाई दर है जो दिसंबर 2015 में 8.17 प्रतिशत रही है जबकि नवंबर में यह 5.20 प्रतिशत थी। दिसंबर में दलहन की महंगाई दर 55.64 प्रतिशत और प्याज की 25.98 प्रतिशत रही है। वहीं सब्जियों की कीमत में 20.56 प्रतिशत वृद्धि देखने को मिली है। हालांकि फलों की महंगाई दर मात्र 0.76 प्रतिशत रही।

उल्लेखनीय है कि खुदरा महंगाई दर में भी लगातार पांचवे महीने वृद्धि हुई है। दिसंबर 2015 में खुदरा महंगाई दर 5.61 प्रतिशत रही जो कि आरबीआई के छह प्रतिशत के लक्ष्य के करीब है। ऐसे में माना जा रहा है कि रिजर्व बैंक दो फरवरी को जब मौद्रिक नीति की समीक्षा करते वक्त ब्याज दरों में कटौती से परहेज कर सकता है।

वैसे उद्योग जगत ने महंगाई दर लगातार महंगाई दर शून्य से नीचे रहने के मद्देनजर रिजर्व बैंक से ब्याज दरों में कटौती की मांग की है। फिक्‍की का कहना है कि थोक महंगाई दर लगातार जीरो से नीचे रहने का मतलब है कि अर्थव्यवस्था में मांग कमजोर है। इसलिए उम्मीद है कि आरबीआई औद्योगिक क्षेत्र को मंदी से उबारने के लिए उपयुक्त कदम उठाएगी।

उद्योग जगत की ब्याज दर कटौती की मांग इसलिए भी प्रासंगिक है क्योंकि औद्योगिक का प्रदर्शन काफी खराब रहा है। नवंबर 2015 में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में 3.2 प्रतिशत रही है। आईआईपी में यह गिरावट बीते चार साल में सर्वाधिक है।

 

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