अरहर के महंगे दामों से परेशानी झेल रही जनता के लिए राहत की खबर है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान(आईएआरआई) ने अरहर दाल की एक नई किस्म तैयार की है जो 120 दिन में तैयार हो जाती है और 20 क्विंटल प्रति हैक्टेयर का उत्पादन देती है। अरहर की वर्तमान किस्मों को तैयार होने में 160 से 180 दिन लगते हैं। बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में अरहर जून जुलाई में बोई जाती है और मार्च-अप्रैल में इसकी कटाई की जाती है। वहीं महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों में 160 से 180 दिनों की अवधि के लिए अरहर की खेती होती है। अरहर की वर्तमान पौध में फली लगने की निश्चित सीमा नहीं होती है। आईएआरआई के किसानों ने अब जो फसल बोई है उसमें फली लगने की सीमा है और यह 120 दिन में 20 क्विंटल की पैदावार देती है। आईएआरआई के ज्वॉइंट डायरेक्टर केवी प्रभु ने बताया कि, ‘नई किस्म बिलकुल अलग तरह की पौध है। इसके तने पर केवल फूल लगते हैं। पुरानी किस्म में कोशिकाएं बंटती रहती है जबकि नई पौध में ऐसा नहीं है।’ अरहर की सामान्य किस्म में भी बाद में उगने वाली शाखाएं एक ही समय पर उपज नहीं देती है। इसलिए कटाई के समय कुछ में फलियां लगी रहती हैं जबकि कुछ तैयार हो रही होती हैं। पीएडीटी-16 नाम वाली नई किस्म में फूल खिलने और फलियां लगने की प्रक्रिया साथ चलती है और 120 दिन बाद कटाई के लायक हो जाती है। इस किस्म को प्रभु और आरएस राजे की टीम ने तैयार किया है। राजे बताते हैं कि, ‘यह किस्म मुश्किल से 95 सेमी लंबी होती है। दो कतारों के बीच की दूरी भी केवल 30 सेमी ही होती है। इसके चलते प्रति यूनिट एरिया में ज्यादा पौधे लगाए जा सकते हैं।’ इसके दो फायदे हैं, पहला- कीटनाशक छिड़कने में आसानी होती है। दूसरा-एक बार ही पूरी अरहर की कटाई की जा सकती है। जानकारों का मानना है कि जब तक पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान दालों की खेती नहीं करेंगे तब तक भारत का दाल उत्पादन नहीं बढ़ सकता। इस बारे में प्रभु ने ताया कि, ‘ पंजाब के किसान इसी तरह की किस्म चाहेंगे। छोटी और जल्द तैयार होने वाली यह किस्म उन जरूरतों को पूरा करती है।’ नई किस्म की बाजार में उपलब्धता के बारे में पूछे जाने पर प्रभु ने बताया कि 2018 तक इसका वाणिज्यिक उत्पादन शुरु हो सकता है। वर्तमान में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय को इसका बीज मुहैया कराया गया है।
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