वर्ष 1967 में अमेरिकी अर्थशास्त्री विलियम और पॉल पैडॉक ने कहा था कि भारत की बढ़ती आबादी से कोई उम्मीद नहीं की जा सकती, इन लोगों को केवल गुलाम बनाया जा सकता है। एक लंबे समय तक भारत के बारे में दुनिया का यही नजरिया था।
बहरहाल, जैसे ही हमारी जनसंख्या ने एक अरब का आंकड़ा पार किया, एक ऐसा ‘डेमोग्राफिक डिविडेंड" उभरकर सामने आया, जो कि दुनिया में किसी के भी पास नहीं था, यानी कार्यक्षम आबादी (युवाओं) की एक बड़ी फौज। जबकि इसी दौरान चीन के साथ इससे ठीक उल्टा हुआ। जनसंख्या नियंत्रण की अपनी कड़ी नीति की वजह से आज वह एक बूढ़ा मुल्क बनकर रह गया है। इसे चंद तथ्यों के जरिये समझें :
भारत दुनिया का सबसे युवा देश है। आज भारत की आबादी का 50 प्रतिशत हिस्सा 25 वर्ष से कम और 65 प्रतिशत हिस्सा 35 वर्ष से कम आयु वालों का है।
हमारी युवा आबादी पश्चिमी यूरोप और अमेरिका की कुल आबादी के बराबर है!
वर्ष 2020 तक भारत की आबादी का 64 प्रतिशत हिस्सा कार्यक्षम जनसंख्या की श्रेणी में आएगा, जिसकी औसत आयु 29 वर्ष होगी। यह दुनिया की कुल कार्यक्षम आबादी का पांचवा हिस्सा होगा!
इंटरनेट का उपयोग करने वाले 76 प्रतिशत से भी अधिक भारतीय 35 वर्ष से कम आयु वाले हैं और इनमें भी 42 प्रतिशत 15-24 वर्ष आयु समूह के हैं।
आज भारत का हर तीसरा व्यक्ति युवा है।
पिछले दस सालों के भीतर ही भारत की युवा आबादी 35.3 करोड़ से बढ़कर 43.0 करोड़ हो गई है।
2014 के आम चुनावों में 15 करोड़ नए मतदाताओं ने वोट दिए थे। नतीजा, 30 साल बाद केंद्र में पूर्ण बहुमत वाली सरकार।
भारत के कुल मोबाइल फोन उपयोगकर्ताओं में से दस करोड़ गांवों में रहते हैं। इनमें बड़ी तादाद ग्रामीण युवाओं की है।
बहरहाल, अगर हमने जल्द ही अपनी युवा आबादी को कार्यकुशल बनाने के प्रयास नहीं किए तो वर्ष 2020 तक भारत में बेरोजगारों की संख्या बढ़कर 48 करोड़ तक भी पहुंच सकती है!
एक स्याह हकीकत यह है कि आज भारत की कुल कार्यक्षम आबादी का महज 5 प्रतिशत हिस्सा ही कार्यकुशल है। वर्ष 2020 तक भारत की कार्यक्षम आबादी 90 करोड़ के आसपास होगी। ऐसे में स्किल डेवलपमेंट की हमें सख्त दरकार है।
2009 में राष्ट्रीय कौशल विकास निगम की स्थापना जरूर की गई थी, लेकिन यह अभी अपने लक्ष्य से कोसों दूर है।
जवानी है, हुनर चाहिए
यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड्स (यूएनएफपीए) ने अपनी ‘1.8 अरब नौजवानों की ताकत" नामक रिपोर्ट जारी करते हुए कहा था कि युवा इनोवेटर, बिल्डर और लीडर होते हैं, लेकिन ऐसा वे तभी कर सकते हैं, जब उनके पास कौशल, अवसर, स्वास्थ्य व निर्णय लेने की क्षमता हो। दुनिया के इन 1.8 अरब युवाओं में से लगभग 36 करोड़ युवाओं वाले भारत ने अगर जल्द ही ऐसा सुनिश्चित करने की कोशिश नहीं की तो हमारा ‘डेमोग्राफिक डिविडेंड" एक ‘डेमोग्राफिक डिजास्टर" भी बन सकता है।