मैसूर विश्वविद्यालय में महिला साइंस कांग्रेस के उद्घाटन समारोह में मानव संसाधन विकास मंत्री ने विज्ञान में महिलाओं के पिछड़ने के लिए पुरुषों के रवैये को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा कि सांइस प्लूटोनियम को संवर्धित कर सकती है, लेकिन पुरुषों के दिलों को नहीं बदल सकती। यदि ऐसा होता, तो महिलाओं को आगे लाने के लिए महिला साइंस कांग्रेस जैसे आयोजन की जरूरत नहीं पड़ती। आंकड़े बताते हैं कि भारत के उच्च संस्थानों में 10 से 15 प्रतिशत ही महिला वैज्ञानिक हैं और अंतरिक्ष एजेंसी में महिला इंजीनियरों की संख्या भी 10 प्रतिशत ही है। अध्ययन बताते हैं कि विज्ञान के विषयों में महिलाओं के पिछड़ने की सबसे अहम वजह उनका पारिवारिक जिम्मेदारियों में उलझकर रह जाना है। इंडियन साइंस अकादमी के एक अध्ययन के मुताबिक, करीब 15 प्रतिशत महिला वैज्ञानिकों ने विवाह नहीं किया।
यह सोच भारतीय मानसिकता का एक अहम हिस्सा है कि स्त्री होना तभी सार्थक होता है, जब वे विवाह करके पारिवारिक उत्तरदायित्व को संभालती हैं। इसी सोच के चलते उन्हें करियर के तौर पर हर उस विषय को स्कूली स्तर से चुनने के लिए हतोत्साहित किया जाता है, जो कथित पारिवारिक दायित्वों के आड़े आ सकता है। स्त्री को पारिवारिक दायरे तक सीमित रखने की मानसिकता किस कदर है, इसका अंदाजा ब्रिटेन के नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक टिम हंट के वक्तव्य से लगाया जा सकता है कि महिलाओं का प्रयोगशाला में प्रवेश निषेध कर देना चाहिए।
महिलाओं के बारे में दो और बातें कही जाती हैं, जिनका उत्तर खोजना भी जरूरी है। पहला यह कि क्या वाकई लड़कियों की दिलचस्पी विज्ञान जैसे विषय में नहीं होती? और दूसरा, स्कूली स्तर पर विज्ञान में उच्चतम स्थान प्राप्त करने के बाद वे एकाएक उच्च शिक्षा में अलग विषय क्यों चुन लेती हैं? गणित और विज्ञान जैसे विषयों में लड़कियों का प्रदर्शन लड़कों से कमतर नहीं रहा है। आंकड़े बताते हैं कि 75 प्रतिशत लड़कियों को पढ़ने-लिखने और नई चीजें खंगालने में रुचि है, जबकि लड़कों के मामले में यह प्रतिशत 50 ही है। किसी की भी क्षमता उसके जन्म से नहीं, उसके सामाजीकरण से तय होती है।
हम यह चाहते हैं कि हमारी बेटियां आत्मनिर्भर हों, पर अक्सर हम उन्हें वही क्षेत्र चुनने की स्वतंत्रता देते हैं, जिससे परिवार के प्रति उनकी प्राथमिकताएं बाधित न हों। बेटियों का सामाजीकरण भी त्याग, समर्पण व दायित्वों का महिमा-मंडन उनके दिमाग में ठूंसकर किया जाता है। इनका सम्मोहन उन्हें जीवन भर बांधे रहता है। एक तरफ, हम बेटियों पर धन कमाने का दायित्व डाल रहे हैं और दूसरी ओर, इस भूमिका को ढेर सारी सीमाओं में भी बांध रहे हैं। यह मानसिकता सीमित ढंग से उनकी क्षमताओं का फायदा उठाने की है, उन्हें एक अबाध उड़ान के लिए आसमान देने की नहीं।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)