बहराइच के मिहींपुरवा विकास खंड के सात वन ग्रामों में एक टेडिय़ा निवासी शिवबचन की पत्नी भानमती मजदूरी कर अपना व परिवारीजनों का पेट पालती थीं। उन्हें न तो आसानी मजदूरी मिलती थी और मताधिकार हासिल था। वन ग्रामवासियों के साथ नागरिक अधिकारों के लिए ‘वनग्राम आजादी आंदोलन’ शुरू करने वाले सामाजिक संस्था देहात (डेवलपमेंटल एसोसिएशन फॉर ह्यूमन एडवांसमेंट) के मुख्य कार्यकारी डॉ. जितेंद्र चतुर्वेदी के संपर्क में आईं तो भानमति की जिंदगी ही बदल गई।
आंदोलन से जुड़ी अनपढ़ भानमती को सीखने व बोलने की क्षमता ने महिला नेतृत्वकर्ता की भूमिका में ला खड़ा किया। महिला अधिकार मंच की तीन हजार महिलाओं ने भानमती को अगुवा चुना और फिर देहात संगठन के जरिए मनरेगा में महिला हिस्सेदारी, भ्रष्टाचार, ग्राम सभा में महिला हकदारी, लिंगगत भेदभाव, शराबखोरी आदि मुद्दों पर हल्ला बोलना शुरू किया।
वनग्राम वासियों के संगठन वन ग्राम अधिकार मंच के साथ जुड़कर वनग्राम वासियों के नागरिक अधिकारों के लिए पदयात्रएं, आमरण अनशन, धरना-प्रदर्शन आदि से अधिकार सुनिश्चित करने में भूमिका निभाई। भानमती के हौसले व संघर्ष को कई बार राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा दिलाई। इसी का नतीजा रहा कि हाल ही में महिला व बाल विकास मंत्रालय ने फेसबुक के साथ मिलकर वोटिंग के जरिए महिला हकों की लड़ाई लड़ रही महिलाओं को चयनित करने का अभियान शुरू किया।
विश्व से हुई वोटिंग के जरिए भानमती भारत की शक्तिशाली 100 महिलाओं में चुनी गईं। देहात संस्था के मुख्य कार्यकारी जितेंद्र चतुर्वेदी इसे संस्था की अनमोल कमाई बताया। संस्था व उन्हें कई राष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं, किन्तु ज्यादा खुशी इसलिए है क्योंकि जिस समुदाय को सशक्त बनाने की मुहिम छेड़ी थी वह अब पुरस्कृत हो रहा है।